मेक इन इंडिया के तहत नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने होंगे?

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मेक इन इंडिया के तहत नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने होंगे?

क्या है " मेक इन इंडिया " ?

मेक इन इंडिया भारत सरकार का एक मुख्य राष्ट्रीय प्रोग्राम है। डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री और इंटरनल ट्रेड, मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्री द्वारा संचालित यह मेक इन इंडिया प्रोग्राम भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी लाएगा। भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इस समय जीडीपी में 16 प्रतिशत की भागीदारी कर रहा है। साल 2025 तक उम्मीद है कि यह सेक्टर 25 प्रतिशत तक डिलीवर करेगा। आने वाले 5 सालों में भारत को  मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक प्रतियोगी देशों में गिने जाने की संभावना है।

क्या है उद्देश्य ?

मेक इन इंडिया का प्राथमिक उद्देश्य भारत में वैश्विक इन्वेस्टमेंट को बढ़ाकर मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर मज़बूत करना है। मौजूदा भारतीय टैलेंट बेस का इस्तेमाल करना, सेकेंडरी एवं टर्शियरी सेक्टर को मज़बूत करना और अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है।

"मेक इन इंडिया" और रोज़गार

मेक इन इंडिया प्रोग्राम ऑटोमोबाइल, बायोटेक्नोलॉजी , डिफेन्स , फ़ूड प्रोसेसिंग आदि जैसे 25 सेक्टरों पर फोकस करता है। हालाँकि इस प्रोग्राम के लॉन्च के बाद से नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने पैदा हो पाए यह पता कर पाना थोड़ा अस्पष्ट रहा है। साल 2022 तक मेक इन इंडिया प्रोग्राम से भारत सरकार 100 मिलियन नयी नौकरियों के अवसर तैयार कर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के असीमित अवसर लाना चाहती है। सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम से मैन्युफैक्चरिंग पर दिए जा रहे ज़ोर के कारण आने वाले सालों में कई नयी नौकरियां निकलने की संभावना है।सरकार साल 2022 तक 100 मिलियन जॉब्स देने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

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क्या है उम्मीदें ?

उम्मीद है कि अगले एक-आध साल में लगभग 8 लाख अस्थायी नौकरियां तैयार हो सकती हैं। जैसे जैसे मैन्युफैक्चरिंग, इंजीनियरिंग और सम्बंधित सेक्टर में इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा, वैसे वैसे मौजूदा नौकरियों में भी बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं। मेक इन इंडिया की पहल से ई-कॉमर्स और अन्य इंटरनेट से जुड़े सेक्टर में भी नौकरियां बढ़ी हैं। मेक इन इंडिया प्रोग्राम से स्किल डेवलपमेंट ने भी काफी ज़ोर पकड़ा है। 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य से भी जॉब्स बढ़ने के आसार हैं।

"मेक इन इंडिया" पर क्यों हैं चर्चा ?

दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के लिए भारत सरकार का प्रगतिशील "मेक इन इंडिया " प्रोग्राम चर्चा का विषय बन गया है। इसके तहत देश को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की तैयारी की जा रही है। भारतीय मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में कुछ बुनियादी बदलाव करके मेक इन इंडिया प्रोग्राम इस सेक्टर को और मज़बूत करने का लक्ष्य रखता है। हालाँकि जैसे जैसे यह लक्ष्य तेज़ी पकड़ेगा, वैसे वैसे जॉब मार्किट में भी कई बदलाव आने की संभावना है।

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेज़ी लाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोज़गार और उत्पादन दोनों में बढ़त आना ज़रूरी है।  विशेषज्ञ अच्छी और बुरी दोनों संभावनाओं से इंकार नहीं कर रहे हैं। हालाँकि उम्मीद की किरण 'मेक इन इंडिया' द्वारा जॉब्स क्रिएट किये जाने की तरफ ज़्यादा है।

मेक इन इंडिया कैंपेन से कैसे बढेंगी जॉब्स ?

इंडस्ट्री के लोगों में सरकार के इस कदम से काफी सकारात्मकता आई है। केंद्रीय सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत कई सेक्टरों में इन्वेस्ट कर रही है। जब इन्वेस्टमेंट बढ़ता है तो ग्रोथ भी बढ़ती है। ग्रोथ के कारण इन सेक्टर्स में जॉब की संख्या भी बढ़ेंगी। काफी लम्बे समय तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के अवसरों के बढ़ते रहने के आसार लगाए जा रहे हैं।

बदलेगा "लेबर लॉ"

कैंपेन के तहत लेबर लॉ में होने वाले बदलावों के कारण अब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने के लिए लगने वाले फ़िज़ूल के आबंध हट जाएंगे। इन रिफॉर्म्स के कारण अब यह सेक्टर और खुलेगा। लेबर लॉ रिफॉर्म्स के ज़रिये रोज़गार के अवसरों में भी तेज़ी आएगी। लेबर रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 10 जैसे कुछ लेबर कानून हैं जो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने पर बेवजह ही आबंध लगाते हैं। रिफॉर्म्स के बाद यह सब हट जाएगा। संभावनाएं है कि ऐसे क़दमों से यह सेक्टर पहले की तुलना में और भी तेज़ी से बढ़ेगा। जब लेबर काम पर रखने के लिए स्वतंत्रता होगी तो निश्चित रूप से अधिक जॉब्स के अवसर भी पैदा होंगे। घरेलू कंपनियां वैश्विक ब्रांड्स में तब्दील हो सकती हैं।

ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स

सरकार ने “ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स” पर भी ध्यान देना शुरू किया है।  भारत फिलहाल 190 देशों में ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस के पैमाने पर 63वें स्थान पर काबिज़ है। मौजूदा कानून और पेचीदा प्रक्रियाओं के कारण भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ काफी धीमी रही है। इस मेक इन इंडिया कैंपेन के तहत जो नयी पॉलिसीस लागू की जा रही हैं , उनसे भूमि अधिग्रहण और निकासी सम्बन्धी प्रक्रियाएं पहले से अधिक आसान और तेज़ होंगी।

स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स

देश के अलग अलग हिस्सों में स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स और ऐसी इकाइयां बनाए जाने की तैयारी है जो बिज़नेस यूनिट्स की दिक्कतों को 72 घंटों के भीतर सॉल्व करेंगी।  ऐसा करने से भारत दुनिया के लिए एक अनुकूल मैन्युफैक्चरिंग ठिकाना बन सकता है। भविष्य में इस अच्छी इमेज से भारत में इन्वेस्टमेंट के कई द्वार खुलेंगे। जब इन्वेस्टमेंट आती है तो मानव संसाधन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। अतः यह इन्वेस्टमेंट अपने साथ में रोज़गार के कई अवसर भी लेकर आएगी।

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अन्य सेक्टर्स पर प्रभाव

मेक इन इंडिया के तहत जो इन्वेस्टमेंट मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में होगा, उससे न सिर्फ उत्पादन बल्कि अन्य सेक्टर्स में भी तेज़ी आएगी। मूलभूत सुविधाओं और ऊर्जा के क्षेत्र में नयी कंपनियां स्थापित होने के बाद सर्विस सेक्टर में भी निश्चित ही नए रोज़गार बढ़ने की संभावना है।

आगे की राह

इस कैंपेन से यकीनन भारत की तरक्की को एक नयी और बेहतर दिशा मिली है। खासकर कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इस दिशा की काफी आवश्यकता थी। अब सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इन सब पॉलिसीस को कितना बेहतर ढंग से लागू किया जाता है। इन प्लान्स और स्कीमों का असर, आने वाले कुछ सालों में और भी साफ़ देखा जा सकेगा। विशेषज्ञों की मानें तो रोज़गार व नौकरियों के अवसरों में अच्छा उछाल आने की बहुत प्रबल संभावनाएं हैं , बशर्ते इन पॉलिसीस का, प्लान के हिसाब से ही क्रियान्वयन हो पाए।

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