Sensex meaning in Hindi [जानिये सेंसेक्स क्या है]
आपने समाचार पत्रों के बिजनेस या व्यावसायिक पृष्ठों पर शेयर बाजार की खबरों के बीच सेंसेक्स का नाम देखा होगा। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि यह सेंसेक्स कौन सी बला है, इससे क्या होता है, यह देश की इकोनॉमी को कैसे प्रभावित करता है, इस सेंसेक्स के उतार चढ़ाव कंपनियों के शेयर में गिरावट या ऊंचाई क्यों आती है, शेयर बाजार में सेंसेक्स का इतना अधिक महत्व क्यों होता है? दुनिया भर के निवेशकों की नजर इस सेंसेक्स पर क्यों होती है और इसका निजी निवेश पर किस प्रकार असर पड़ता है? आइये जानते सेंसेक्स की इन सारे रहस्यों को।
सेंसेक्स यानी संवेदी सूचकांक
हम लोग जिसे साधारण भाषा में सेंसेक्स के नाम से जानते हैं । वह अंग्रेजी के दो शब्दों से मिल कर बना है। ये दो शब्द हैं सेंसेटिव और इन्डेक्स इसको हम हिन्दी भाषा में संवेदी सूचकांक कहते हैं। मुंबई स्टाक एक्सचेंज के सर्वोच्च 30 कंपनियों के शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक को बीएसई सेंसेक्स या बीएसई 30 सेंसेक्स कहते हैं। सेंसेक्स की तरह निफ्टी सूचकांक है । नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सूचकांक को निफ्टी कहते हैं। इस सूचकांक में 50कंपनियों के शेयरों का हालचाल रहता है।
आम आदमी को यदि मुंबई शेयर बाजार के ताजा हालचाल लेने हों तो उसको सबसे पहले सेंसेक्स के उतार चढ़ाव को देखना होगा। सुबह-सुबह बाजार खुलने के साथ ही सेंसेक्स के उतार चढ़ाव से इसमें शामिल कंपनियों की आर्थिक हालात का पता चलता है। सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनी के शेयरों की सूची समय समय पर बदलती रहती है। मुंबई शेयर बाजार आवश्यकता के अनुसार अपने शेयरों की सूची में बदलाव करता रहता है। चाहे जितना उलटफेर हो लेकिन इस सेंसेक्स में शेयरों की संख्या 30 ही रहती है।
सेंसेक्स को असल में एस एंड पी बीएसई सेंसेक्स यानी एस एंड पी बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में केवल सेंसेक्स कह कर काम चलाया जाता है। सेंसेक्स मुंबई शेयर बाजार में 30 बड़ी एवं स्थापित सूचीबद्ध कंपनियों के फ्री फ्लोट मार्केट वेटेड स्टॉक मार्केट इन्डेक्स है।
बीएसई यानी बंबई स्टाक एक्सचेंज में सबसे अधिक कारोबार और सबसे अधिक सक्रिय बड़े पैमाने पर कारोबार करने वाले शेयरों मे से ऐसी 30 कंपनियों को चुना जाता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। ये कंपनियां विभिन्न आद्योगिक क्षेत्रों का भी प्रतिनिधित्व करतीं हैं। ऐसी ही तीस शेयरों के इंडेक्स को सेंसेक्स कहते हैं।
सेंसेक्स का आधार वर्ष 1978-79 माना गया है। उसके बाद इस सेंसेक्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी गहरी जड़ें जमानी शुरू कीं और 1 जनवरी 1986 तक इसने अपनी स्थिति मजबूत कर ली। इसके बाद बीएसई सेंसेक्स को भारत के घरेलू शेयर बाजारों में सबसे बड़ा और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राण के रूप में माना जाने लगा था। तब से यह लगातार अपनी प्रगति करने में लगा है। हालांकि बीच-बीच में विभिन्न विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के चलते कभी कभी करारा झटका भी लगता रहता है।
कैसे बनता है सेंसेक्स?
यह तो सभी को मालूम है कि सेंसेक्स बंबई स्टॉक एक्सचेंज यानी बीएसई का प्रमुख हिस्सा है। सेंसेक्स भारत की प्रमुख 30कंपनियों के शेयरों के भावों से मिलकर बनता है। हालांकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में 6000 से ज्यादा कंपनियां सूचीबद्ध हैं। लेकिन जब सेंसेक्स की गणना की जाती है तब सूचीबद्ध 30 कंपनियों के शेयरों के भावों को मिलाया जाता है। इन 30 कंपनियों को सेंसेक्स में शामिल किये जाने का प्रमुख कारण यह है कि इन सभी 30 कंपनियों के शेयर सबसे ज्यादा खरीदे और बेचे जाते हैं।
दूसरा कारण यह होता है कि यह 30 कंपनियों वे कंपनियां होती है, जिनकी मार्केट की वैल्यू बीएसई में सूचीबद्ध सभी शेयर्स का आधी होती है। यह अपने आप में बहुत बड़ा अचीवमेंट है।
तीसरा कारण यह है कि ये 30 बड़ी-बड़ी कंपनियां विभिन्न 13 सेक्टरों का प्रतिनिधित्व करतीं है। इन 30 कंपनियों का चयन इसलिये किया जाता है क्योंकि ये अपने-अपने सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनियां होतीं हैं। ये सभी कंपनियां भारतीय अर्थ व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखतीं हैं।
इन सभी 30 कंपनियों का चयन स्टॉक एक्सचेंज की इंडेक्स कमेटी करती है। इस कमेटी में सरकारी और गैर सरकारी प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इस इन्डेक्स कमेटी में सरकारी अधिकारी, बैंकों के अधिकारी, जाने माने अर्थशास्त्री भी शामिल किये जाते हैं।
कैसे चुना जाता है शीर्ष 30 कंपनियों को
जैसे कि पहले ही यह बता दिया गया है कि सेंसेक्स में शामिल होने वाले 30 प्रमुख शेयरों वाली कंपनियों का चुनाव सेंसेक्स इंडेक्स कमेटी करती है। इंडेक्स कमेटी इन 30 शीर्ष कंपनियों का चुनाव करते वक्त जिस मापदण्ड को सामने रखतीं हैं, वे इस प्रकार हैं:-
- इंडेक्स कमेटी ऐसी कंपनी के नाम पर विचार करती है जिसके शेयर पिछले एक साल या इससे अधिक समय से स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हों।
- कमेटी उस कंपनी को सेंसेक्स के लिये चयन करती है जिसके शेयर पिछले एक साल के समय में जितने दिन खुला है, उन सभी दिनों में उस कंपनी के शेयर का खरीदा या बेचा जाना अनिवार्य होता है यानी पूरे साल में हर दिन उस कंपनी के शेयर की खरीद फरोख्त होनी जरूरी है।
- यही नहीं प्रत्येक दिन की औसत ट्रेड की संख्या और वैल्यू के हिसाब से ये कंपनियां देश की सबसे बड़ी 150 कंपनियों में अवश्य शामिल होनी चाहिये।
टॉप 30 कंपनियां कौनी सी होती हैं
सेंसेक्स में शामिल 30 टॉप कंपनियां कौन सी होती हैं और उनमंैं कौन सी क्षमता होती है और वे क्या कहलातीं हैं? ये कंपनियां अपने आप में बहुत ताकतवर कंपनियां होतीं हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की पूरी क्षमता रखतीं हैं।
1986 में पहली बार सेंसेक्स में 30 कंपनियों को शामिल किया गया था। ये सभी कंपनियां वित्तीय क्षमता मे काफी बड़ी होतीं हैं और ये मार्केट कैप के हिसाब से भी बहुत बड़ी होतीं हैं। इन कंपनियों के शेयरों की डिमांड स्टॉक मार्केट में हमेशा ही बनी रहती है। इन कंपनियों के शेयर हमेशा ही बाजार में कोहराम मचाये रहते हैं। ऐसी कंपनियों को बाजारी भाषा में ब्लू चिप कंपनियां कहा जाता है।
सेंसेक्स में कैसे आता है उतार चढ़ाव
सेंसेक्स का प्रमुख काम स्टाक एक्सचेंज मं शेयरों के उतार-चढ़ाव की पल-पल की जानकारी देना है। यह सेंसेक्स खुद की सूचीबद्ध 30कंपनियों के शेयरों के दामों में होने वाले उतार चढ़ाव पर नजदीकी नजर रखता है। यदि सेंसेक्स मेंं सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार में शेयरों के दाम बढ़ रहे हैं तो सेंसेक्स भी बढ़ जाता है और ऊपर चला जाता है। वहीं यदि इसके विपरीत इन कंपनियों के शेयरों के दाम गिरने लगते हैं तो सेंसेक्स में गिरावट आने लगती है।
इन कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन ही उनके शेयरों के दामों मे ंउतार चढ़ाव का प्रमुख कारण होता है। माना कि किसी कंपनी ने कोई नया और बड़ा प्रोजेक्ट लांच किया है और उसका कारोबार बढ़ने वाला है तो निश्चित रूप से उस कंपनी के शेयरों के दामों में आशा से अधिक उछाल आ जायेगा। इस कंपनी के शेयरों की स्टॉक एक्सचेंज में मारामारी होने लगती है।
वहीं इसके विपरीत यदि किसी कंपनी पर कोई वित्तीय संकट आ जाता है या किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई होती है या कंपनी को किसी प्रकार से वित्तीय हानि पहुंचती है उस समय उसके शेयरों के दाम में गिरावट आने लगती है और एक बार गिरावट आने पर कंपनी के शेयर बहुत नीचे तक जाने लगते हैं और उस कंपनी के शेयर बाजार में धड़ाधड़ बिकने लगते हैं। कोई भी उस कंपनी के शेयरों को अपने पास रख कर घाटे का सौदा नही करना चाहता। इसके फलस्वरूप सेंसेक्स गिरने लगता है।
सेंसेक्स से कौन-कौन से फायदे होते हैं
सेंसेक्स में आने वाले उतार चढ़ाव के प्रदर्शन का कंपनियों के अलावा शेयरों में निवेश करने वाले निवेशकों को अनेक फायदे होते हैं। इसके माध्यम से निवेशक स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगा कर अपनी पूंजी सही तरीके से लगा सकते हैं। इसके अलावा सेंसेक्स के कई अन्य फायदे भी होते हैं जो इस प्रकार हैं:-
- सेंसेक्स पर नजर रखने वाले निवेशक हमेशा अनुमान लगाकर फायदे का सौदा करते हैं और घाटे के सौदे से बचते रहते हैं।
- वैसे लोग यह मानते हैं कि सेंसेक्स का सीधा कोई फायदा नहीं होता लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य ही सेंसेक्स का उन लोगों को फायदा होता है जो रुपये की चाल जानना चाहते हैं।
- रुपये की चाल जहां शेयरों को प्रभावित करती है वहीं देश की प्रमुख बाजारों की वित्तीय स्थिति को भी प्रदर्शित करती है। जैसे कि जब रुपया मजबूत होता है तो बाजार में चीजें सस्ती होनी लगतीं हैं और जब रुपया कमजोर होता है तो देश में चीजें महंगी होने लगतीं हैं।
- सेंसेक्स के ऊपर जाने से निवेशक भी उन कंपनियों में पैसा लगाने को इच्छुक होते है जिनके शेयर चढ़ रहे होते हैं, जब निवेशकों से बहुत ज्यादा पैसा इकट्ठा हो जाता है तो वे कंपनियां तरक्की करने लगतीं हैं यानी उनमें चढ़ाव आने लगता है। ये कंपनियां अपना विस्तार भी करने लगतीं हैं। जब किसी कंपनी का विस्तार होता है तो उस कंपनी को पहले से अधिक नए लोगों की आवश्यकता होती है। जब नए लोगों को नौकरी मिलेगी तो अवश्य ही देश से बेरोजगारी में कमी होगी वो परोक्ष रूप से देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी।
- जब शेयर बाजार में उछाल आता है और सेंसेक्स ऊपर जाता है तो देश में स्थानीय निवेशकों के अलावा दुनिया भर के निवेशक भी आने लगते हैं और वे भी भारतीय कंपनियों में निवेश करने लगते हैं, जिससे रुपये में तेजी आने लगती है। इस तरह से भारतीय रुपया विदेशी मुद्रा की अपेक्षा में मजबूत होने लगता है। जब रुपया मजबूत होता है तो भारतीय बाजारों को फायदा होने लगता है क्योंकि जब रुपया मजबूत होने लगता है तो विदेशों से आयात किये जाने वाला सामान पहले से कम कीमतों में मिलने लगता है।
- इसके विपरीत जब शेयरों में गिरावट आती है तो सेंसेक्स भी गिरने लगता है और रुपये मेेंं भी गिरावट आने लगती है। रुपये में गिरावट आने के साथ ही चीजें महंगी होने लगतीं है और विदेश से आयात की जाने वाली वस्तुओं के लिए हमें पहले से और अधिक रुपये देने पड़ते हैं क्योंकि रुपया विदेशी मुद्रा की अपेक्षा सस्ता हो जाता है।
हाल की वैश्विक महामंदी के बाद भारतीय शेयर बाजार की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई है। भारतीय शेयर बाजार लगातार ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहा है। एक समय जब इसकी शुरुआत हुई थी तब 1990 में सेंसेक्स केवल एक हजार अंकों का हुआ करता था लेकिन आज के समय में सेंसेक्स का यह आंकड़ा पांच अंकों में पहुंच गया है। वर्तमान समय में सेंसेक्स 30,000 को पार कर गयाहै ओर प्रतिदिन नया रिकार्ड बना रहा है। जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही शुभ है।
कैसे आंकी जाती है कंपनियों की वित्तीय ताकत
कंपनियों की वित्तीय शक्ति को मार्केट कैप कहते हैं। ये मार्केट कैप किसी कंपनी की बाजार पूंजीकरण यानी मार्केट कैपिटलाइजेशन होती है जो कंपनी की ताकत होती है। कंपनी की इस वित्तीय शक्ति को उसके द्वारा जारी कुल शेयरों की संख्या को प्रति शेयर बाजार भाव से गुणा करके जाना जा सकता है। मान लीजिये कि किसी एक कंपनी ने दस-दस रुपये की कीमत वाले एक लाख शेयर जारी किये तो कंपनी की मार्केट कैप दस लाख रुपये हो गयी। अब यदि इस कंपनी ने एक शेयर की कीमत 50 रुपये रखी तो इसकी कीमत 50लाख रुपये हो जायेगी।
अब यदि इस कंपनी में प्रमोटरों का हिस्सा 40 प्रतिशत है और पब्लिक का हिस्सा 60 प्रतिशत है तो इस कंपनी में फ्री फ्लोट फैक्टर 0.6 ही होगा। इस तरह से इंडेक्स की गणना के अनुसार इस कंपनी की मार्केट कैप का हिस्सा 60 प्रतिशत ही होगा। इसी तरह पूरे इंडेक्स का फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन निकाला जाता है।
क्यों रहती हैं दुनिया भर के निवेशको की सेंसेक्स पर नजर
भारतीय सेंसेक्स जिस तरह से ऊंचाई के नये रिकार्ड बना रहा है। उससे दुनिया भर के निवेशकों को अच्छी आमदनी की उम्मीद रहती है तथा भारतीय सेंसेक्स के अच्छे भविष्य की उम्मीदें रहतीं हैं। इसलिये दुनिया भर के निवेशक भारत के सेंसेक्स और निफ्टी में विशेष रुचि लेते हैं और भारतीय कंपनियों में अच्छा खास निवेश भी करते हैं।
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