Warranty vs Guarantee in Hindi [अंतर समझें ]
गारंटी और वारंटी शब्द आपने सुने होंगे। यें दोनों ही शब्द व्यापार से जुड़े होते हैं। इन दोनों शथ्दों का इस्तेमाल बिजनेसमैन द्वारा अपने बिजनेस को चलाने और ग्राहक को आकर्षित करने के लिए होता है। बिजनेस मैन के अलावा अनेक ब्रांडेड कंपनियां अपने प्रोडक्ट को मार्केट में पापुलर करने और ग्राहकों को पूर्ण संतुष्टि देने के लिए गारंटी व वारंटी शब्द का इस्तेमाल करतीं हैं। गारंटी और वारंटी शब्द से अधिकांश ग्राहक भ्रमित हो जाते हैं और इन दोनों शब्दों को एक ही चीज समझते हैं।
गारंटी और वारंटी को लेकर होते हैं अक्सर विवाद
आपने बाजार में बिजनेस मैन और ग्राहक के बीच गारंटी और वारंटी को लेकर अक्सर तू तू-मैं मैं होती देखी होगी। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:-
- गलतफहमी: इस तरह के विवाद दोनों पक्षों के बीच हुई गलतफहमी के कारण होते हैं।
- गलतफहमी कम चतुराई ज्यादा: इसमें ज्यादा दोष चतुर चालाक व्यापारी का होता है क्योंकि वह बहुत ही चतुराई से अपने ग्राहक को आकर्षित करने के लिए गारंटी वारंटी के बीच कन्फ्यूज कर देता है। बिजनेस मैन को यह डर होता है यदि गारंटी वारंटी के बीच की हकीकत ग्राहक जान जायेगा तो वह सामान लेने से इनकार भी कर सकता है। इसलिये वह ग्राहक को उलझन में डाल कर अपना सामान बेचने की कोशिश करता है।
- हालांकि सारे बिजनेस मैन ऐसा नहीं करते हैं। नये ग्राहक को एक बार सामान बेच कर मुनाफा कमाने वाले बिजनेस ऐसा करते हैं। बिजनेस के प्रति ईमानदार बिजनेस मैन अपने ग्राहक को सारा कुछ स्पष्ट बता देता और वह यह भी समझा देता है कि गारंटी क्या होती है और वारंटी क्या होती है। इसके अलावा कंपनी द्वारा प्रोडक्ट के लिए दी जाने वाली गारंटी वारंटी के बारे में बताता ही नहीं ं बल्कि उसे गारंटी या वारंटी कार्ड भी देता है और उसे स्पष्ट रूप से बता देता है कि गारंटी वारंटी की पीरियड तक इस कार्ड को संभाल कर रखना तभी आपको इसका लाभ मिल पायेगा अन्यथा नहीं।
- दूसरी ओर ग्राहक जो कम खरीद-फरोख्त करते हैं और कम पढ़े लिखे होते हैं। वो गारंटी वारंटी का भेद नहीं जानते हैं। वो दोनों ही चीजों को एक ही बात मानते हैं। वो दोनों ही चीजों को गारंटी ही मानते हैं। इसी गारंटी के चक्कर में अक्सर ग्राहक और दुकानदार के बीच विवाद होते रहते हैं। दुकानदार यह समझाने की कोशिश करता है कि कंपनी ने वारंटी दी है जबकि ग्राहक उसे गारंटी कह कर उसका विरोध करता है कि जब सामान लेने आये थे तब आपने इस सामान की गारंटी दी थी और जब खराब हो गया तब आप वारंटी का बहाना बना रहे हो जबकि दुकानदार कहता है कि जब यह कंपनी अपने प्रोडक्ट की गारंटी देती ही नहीं है तो आपको हम गारंटी कहां से देंगे।
- इसलिये बिजनेस मैन और कस्टमर दोनों को ही चाहिये कि गारंटी और वारंटी के बीच की गलतफहमी न रखें । जहां ग्राहक को गारंटी और वारंटी के बारे में सामान खरीदते वक्त खरीदें और बिजनेस मैन से प्रोडक्ट की कंपनी का गारंटी वारंटी कार्ड ले लें।
- वहीं दुकानदार को चाहिये कि कस्टमर के नाराज होने के डर से गारंटी और वारंटी के बीच में कन्फ्यूजन न करे और ग्राहक को किसी तरह से गारंटी वारंटी के बीच में उलझाये नहीं। वो कस्टमर को स्पष्ट रूप से गारंटी वारंटी कार्ड के आधार पर बात करे तो कभी भी गलतफहमी नही नहीं होगी और न ही किसी तरह को कोई विवाद ही होगा।
गारंटी और वारंटी क्या है
1. पुराने जमाने के बिजनेस में किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं होती थी। उस समय किसी प्रकार की गारंटी वारंटी की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। इसलिये उस समय गारंटी और वारंटी को लेकर विवाद ही नहीं होता था। धीरे-धीरे कुछ कंपनियों ने अपने व्यापार को चमकाने के लिए गारंटी शब्द का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। गारंटी का मतलब सीधा यही होता था कि एक निर्धारित समय में किसी प्रोडक्ट के खराब हो जाने पर दुकानदार या कंपनी उसे बदल कर नया सामान देगी। यह गारंटी शब्द बहुत दिनों तक चलता रहा। ग्राहकों को इसकी आदत ही पड़ गयी। भले ही वो सामान गारंटी की अवधि में खराब न हो लेकिन ग्राहक उस पर भरोसा अधिक करता था।
2. इसी भरोसे का फायदा उठाते हुए बिजनेस मैन या कंपनियां गारंटीशुदा चीजों के दाम बढ़ाकर मनमानी करते थे। उनको तो यह मालूम था कि गारंटी पीरियड में प्रोडक्ट कभी भी खराब नहीं होगा। एकाध खराब भी हुआ तो कंपनी ने पहले ही दाम बढाकर अतिरिक्त मुनाफा कमा ही लिया है।
3. धीरे-धीरे बाजार में वारंटी शब्द का प्रचलन शुरू हो गया। अनेक कंपनियों ने वारंटी शब्द का जमकर प्रचार किया। इस प्रचार के साथ दुकानदारों ने भी ग्राहकों को यह समझाने की कोशिश की कि गारंटी और वारंटी में ज्यादा फर्क नहीं है। इसी बात से बिजनेस मैन कस्टमर को आकर्षित करने लगे। नतीजा 4. यह हुआ कि शुरू शुरू में तो ग्राहकों को यह समझ ही नहीं आया कि वारंटी गारंटी से कुछ अलग है। लोग इसे गारंटी ही समझते थे जो आज तक समझते आये हैं।
5. केवल अंतर इतना हो गया है कि जो लोग शॉपिंग माल या अन्य शहरी इलाकों में शॉपिंग करते हैं वे वारंटी और गारंटी को अच्छी तरह से जानते हैं और जो लोग कम शॉपिंग करते हैं और कस्बाई व देहाती इलाकों में सामान खरीदते हैं वे आज भी वारंटी को गारंटी की समझते हैं। दूकानदार अधिक सामान बेचने के प्रयास में वारंटी को स्पष्ट नहीं करता है।
गारंटी और वारंटी के बीच का अंतर क्या है
गारंटी और वारंटी शब्द देखने-सुनने में एक जैसे लगते हें, जिससे साधारण तौर पर भ्रम होना स्वाभाविक है लेकिन इन दोनों ही शब्दों के मायनों और ग्राहक के कानूनी अधिकार में जमीन आसमान का अंतर है।
गारंटी क्या होती है?
गारंटी शब्द का अर्थ यह होता है कि जो वस्तु खरीदी गयी है, उसको बनाने वाली कंपनी या उसको बेचने वाले दुकानदार की ओर से एक निश्चित समय में खराब होने पर उसको बदल कर नयी दी जायेगी।
इस गारंटी के कारण ग्राहक प्रोडक्ट की लाइफ से पूर्ण रूप से संतुष्ट होता है कि अमुक वस्तु इतने दिन तो चलेगी ही और यदि न चली तो उसे बदल कर नई मिल जायेगी। गारंटी देने वाली कंपनी अपने प्रोडक्ट का दाम बाजार में चल रहे अन्य इसी तरह के प्रोडक्ट से बढ़ा कर लेती हैं।
वारंटी क्या होता है?
अक्सर दुकानदार को यह कहते सुना होगा कि गारंटी वारंटी में ज्यादा फर्क नहीं होता है लेकिन गारंटी और वारंटी में जमीन आसमान का अन्तर होता है। वारंटी देने वाली कंपनी या दुकान अपने प्रोडक्ट की तय अवधि में खराब हो जाने या काम न आने की स्थिति में उसे सुधार कर या सुधरवा कर ग्राहक को वापस देने को बाध्य होता है। वारंटी देने वाली कंपनी या दुकानदार अपने प्रोडक्ट के खराब हो जाने की स्थिति में उसे बदल कर उसके स्थान पर नया प्रोडक्ट देने को बाध्य नहीं होता है।
वारंटी का लाभ किस प्रकार मिलता है
- वारंटी का लाभ लेने के लिए उपभोक्ताके पास खरीदे गये सामान का पक्का बिल होना चाहिये या कंपनी द्वारा वारंटी कार्ड होना चाहिये, जिसमें समय आदि का जिक्र स्पष्ट रूप से होना चाहिये।
- किसी भी प्रोडक्ट की वारंटी का एक निश्चित समय होता है। अक्सर यह अवधि एक साल की होती है। उपभोक्ता एक साल की अवधि के भीतर ही अपने प्रोडक्ट की खराबी की शिकाय करके उसे ठीक करवा सकता है। अवधि बीत जाने के बाद उपभोक्ता वारंटी के लाभ लेने का दावा नहीं कर सकता है।
- किसी तरह के विवाद होने की स्थिति मे उपभोक्ता के पास इंसाफ पाने के लिए उपभोक्ता फोरम जाने का पूरा अधिकार होता है। उपभोक्ता फोरम इंसाफ करते हुए संबंधित पक्ष को निर्देशित करता है, जिसे मानना होता है।
गारंटी का लाभ किस तरह से लिया जाता है
गारंटी का लाभ भी वारंटी की तरह ही लिया जा सकता है। इसमें कोई विशेष अंतर नहीं होता है। इसमें एक ही अंतर यह होता है यदि प्रोडक्ट में सुधार करने यानी रिपेयर करने की गुंजाइश होती है तो कंपनी या दुकानदार उसे रिपेयर करवा कर देता है। यदि प्रोडक्ट में इतनी खराबी आ गयी है कि उसमें सुधार नहीं हो सकता है अथवा प्रोडक्ट ही ऐसा होता है जिसमें एक बार खराबी आने के बाद सुधार करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है तो वह गारंटी पीरियड में बदल कर नया देता है। लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें हैं, जो इस प्रकार हैं:-
- गारंटी का लाभ लेने के लिए उपभोक्ता को दुकानदार की जुबानी जमा खर्च पर भरोसा नहीं करना चाहिये। यानी दुकानदार लाख गारंटी देने की बात करे तो उस पर विश्वास नहीं करना चाहिये। बल्कि उससे पक्की रसीद ले लेनी चाहिये। पक्की रसीद पर गारंटी का स्पष्ट जिक्र होना चाहिये। यदि दुकानदार पक्का बिल नहीं देता है या आपको टैक्स का बोझ दिखाकर गारंटी की बात कह कर आपको कच्चा बिल दे देता है जिसमें कुछ लिखा भी नहीं होता है तो आपको गारंटी का लाभ नहींं मिल सकता है। इसलिये आपको गारंटी लेने के लिए पक्का बिल लेना चाहिये अथवा कंपनी का गारंटी कार्ड ले लेना चाहिये।
- गारंटी का लाभ लेने के लिए उपभोक्ता को चाहिये कि प्रोडक्ट की खरीद के समय इस बात को ध्यान से देखें कि जो वस्तु खरीदी जा रही है उसके कार्ड में गारंटी के लिए कितना समय दिया जा रहा है। उस समय तक कंपनी या दुकानदार जो भी विक्रेता हो, उसके द्वारा दिया गया पक्का बिल या गारंटी कार्ड संभाल कर रखना चाहिये। साथ ही संभव हो तो प्रोडक्ट की पैकिंग भी संभाल कर रखनी चाहिये। तभी आप गारंटी का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
- गारंटी पीरियड समाप्त हो जाने के बाद या बिना उचित कागज के आप दुकानदार से गारंटी देने की बात कहेंगे तो वह आपको गारंटी का लाभ देने से इनकार भी कर सकता है। वह आपसे साफ मुकर सकता है कि उसने वस्तु को खरीदते समय कोई भी गारंटी नहीं दी थी क्योंकि इस वस्तु के लिए कंपनी की तरफ से कोई गारंटी आती ही नहीं है तो मैं कहां से दूंगा।
- गारंटी की अवधि में खराब हुए प्रोडक्ट को दुकानदार या कंपनी के सर्विस सेंटर में ले जायेंगे और आपके पास उचित कागजी सबूत होंगे तभी आपका सामान बदला जायेगा और आपको गारंटी का लाभ मिल सकता है।
गारंटी-वारंटी की कुछ और खास बातें
गारंटी और वारंटी के बीच कुछ और अंतर भी होते हैं। इन बारीक अंतर के बारे में जानते हैं, जो इस प्रकार हैं:-
- वारंटी हमेशा कुछ समय के लिए होती है, जिसे कंपनी या दुकान की शर्तों के अनुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है जबकि गारंटी एक फिक्स टाइम के लिए होती है, जिसको घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है।
- गारंटी कुछ ही खास प्रोडक्ट्स पर कंपनियों द्वारा दी जाती है। यदि आम भाषा में कहें तो बहुत ही कम वस्तुओं पर गारंटी की सुविधा कंपनियां देतीं हैं, जबकि वारंटी लगभग प्रत्येक वस्तु पर मिलती है।
- वारंटी का समयकाल लम्बा होता है। उसमें दुकानदार या कंपनी वस्तु पर वारंटी की सुविधा का समय कुछ पैसे देकर बढ़ा भी सकता है लेकिन गारंटी कम समय की होती है और उसमें किसी तरह का बदलाव नही किया जा सकता है।
- बाजार में गारंटी का महत्व अधिक होता है क्योंकि उपभोक्ता गारंटी वाली वस्तुओं को खरीदना अधिक पसंद करता है क्योंकि गारंटी के मतलब उस प्रोडक्ट की लाइफ पर पूरा भरोसा होता है,जबकि वारंटी का मतलब यही होता है यह वस्तु दिये गये समय तक चल सकती है लेकिन इसमें खराबी भी आ सकती है। इसलिये उस वस्तु पर आम उपभोक्ताजल्दी से भरोसा नहीं कर पाता है।
- आप उपभोक्ताओं को गारंटी देने वाली कंपनी या दुकान अपने प्रोडक्ट के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होता है। यदि कोई प्रोडक्ट कस्टमर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है तो उसे वह बदलने को विवश होता है। जबकि वारंटी के मामले में ऐसा नहीं होता है। वारंटी प्रोडक्ट के खरीदते समय यह वादा नहीं करती कि पसंद न आने पर या दुकानदार द्वारा किये वादे पर खरा न उतरने पर वह बदलने को विवश होगा। इसलिये दुकान स्पष्ट कह देता है कि आप अभी अपने प्रोडक्ट को पसंद कर लो। बाद में बदलने की कोई संभावना नहीं है।
यह भी पढ़े :
1) Machinery Loan in Hindi [पूरी जानकारी]
2) PM Svanidhi Scheme in Hindi [पूरा पढ़ें ]
3) PM Kusum Scheme in Hindi [विस्तार से पढ़ें]
4) Udyog Aadhar in Hindi [पूरी जानकारी]
5) SFURTI Scheme In Hindi [विस्तार से पढ़ें]
OkCredit के ब्लॉग के साथ पाएँ बेस्ट बिज़नेस आइडीयाज़ और बिज़नेस टिप्स कई भाषाओं में जैसे की हिंदी, अंग्रेज़ी, मलयालम, मराठी और भी कई भाषाओं में.
डाउनलोड करें OkCredit अभी और छुटकारा पाएँ रोज़ की झंझट से.
OkCredit 100% भारत में बनाया हुआ ऐप है!