फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी कैसे शुरू करें? जेनेरिक दवा निर्माता कैसे बनें?
आज दुनिया में कोई ऐसा इंसान नहीं है जिसको दवा की जरूरत न होती हो। इसका मतलब तो यही हुआ कि विश्व में प्रत्येक व्यक्ति को दवा की जरूरत होती है। दवा जीवन रक्षक होती है, इसलिये इसका कोई मोल नहीं होता। दवा की कीमत जो कंपनी द्वारा निर्धारित होती है, प्रत्येक व्यक्ति उसको देने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो जाता है। वैसे भी आज के समय में बढ़ते औद्योगिकीकरण और बढ़ती आबादी के कारण पर्यावरण प्रदूषण से प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त रहता है। इसके अलावा आज की आधुनिक जीवन शैली की भागमभाग और उल्टे सीधे खान-पान ने मानव जीवन में अनेक गंभीर बीमारियों ने डेरा डाल लिया है। आज किसी भी गंभीर बीमारी के लिए कोई उम्र नहीं रह गयी है। पहले जमाने में कैंसर, हृदय रोग, टीबी, ब्लड प्रेशर, डायबिटिक, अस्थमा, थायरायड जैसी अनेक गंभीर बीमारियां एक उम्र तय होतीं थीं। वो आज के खान-पान, रहन-सहन के तौर तरीकों ने खत्म कर दी है। आज तीन साल के बच्चे को भी कैंसर हो जाता है। कभी कभी एक साल या इससे कम उम्र के बच्चे को गंभीर बीमारियों के होने की खबरें सामने आतीं हैं। इस तरह की खबरों को देखते हुए दवा यानी फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग का व्यवसाय सबसे अधिक अच्छा और सबसे अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है।
सरकारी योजनाओं का लाभ उठायें
भारत सरकार आत्म निर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम चला कर उद्यमियों को तरह-तरह से प्रोत्साहित कर रही है। उद्यम शुरू करने के लिए लाइसेंसिंग आदि के लिए भागदौड़ व भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। उद्यमियों को इसका लाभ उठाते हुए नये-नये उद्यम स्थापित करना चाहिये। भारत सरकार इसके साथ ही जेनेरिक दवाओं के कारोबार को भी प्रोत्साहित कर रही है। प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी पहल करते हुए डॉक्टरों से मरीजों को जेनरिक दवाएं लिखने का आग्रह किया है। इसलिये जो उद्यमी फार्मास्युटिकल कंपनी को शुरू करने का विचार कर रहे हैं। उनके लिए यह बहुत ही अच्छा आइडिया है। इस व्यवसाय की भारत में अपार संभावनाएं हैं और प्रॉफिट की कोई सीमा नहीं है।
कोविड-19 से दवाओं और उपकरणों की डिमांड बहुत अधिक बढ़ गयी है
2019 से पूरा विश्व कोरोना वायरस की महामारी चपेट में हैं। दो साल होने को आ रहे हैं और यह महामारी दिनोंदिन अपने नये-नये रंगरूप दिखाकर मानव जाति को डरा रही है। लाखों लोगों को अकाल मौत के मुंह में धकेलने के बाद भी यह महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है। इस महामारी के प्रकोप के चलते दवाओं और उपकरण बनाने वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों की डिमांड बहुत तेजी से बढ़ गयी है। कोविड-19 की महामारी में काम आने वाली दवाओं और उपकरणों का दुनिया भर में अकाल है। यहां तक ये डिमांड पूरी नहीं हो पा रही है। दवाओं के लिए मार्केट में जमकर मारामारी चल रही है। ऐसे समय में फार्मास्युटिकल कंपनी शुरू करने का यह सुनहरा अवसर है। फार्मास्युटिकल कंपनी शुरू करने के लिए आवश्यक सरकारी नियमों व कानूनों का पालन करके बिजनेस शुरू करना चाहिये। इसके लिए सरकार से लाइसेंस व परमीशन भी लेनी होती है।
क्या सबसे जरूरी है इस बिजनेस के लिए?
फार्मास्युटिकल कंपनी शुरू करने से पहले बिजनेस मैन के पास केमिकल का व्यवसाय शुरू करने के लिए बी फार्मा यानी फार्मेसी का डिप्लोमा या डिग्री होनी चाहिये। यदि ये डिग्री या डिप्लोमा नहीं है तो वो बिजनेस मैन ये कंपनी की शुरुआत नहीं कर सकते हैं। वैसे इसका विकल्प यह है कि बिजनेस मैन किसी अनुभवी फार्मासिस्ट को अपने बिजनेस के साथ जोड़ लें यानी सैलरी पर रख ले और उसके प्रमाण पत्र को बिजनेस को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ भी बिजनेस मैन को फार्मेसी यानी दवाओं के कारोबार का अच्छा अनुभव होना चाहिये। यदि अनुभव न हो तो उसे किसीं संस्थान से ट्रेनिंग या अनुभव ले लेना चाहिये।
मार्केट में साल्ट के बारे में रिसर्च करना जरूरी है
कंपनी शुरू करने से पहले यह विचार कर लेना चाहिये कि कंपनी में किस तरह की दवाएं या उपकरण का उत्पादन किया जायेगा। इसके बारे में बिजनेसमैन को अपने पास उपलब्ध दवा के फार्मूले यानी साल्ट को लेकर अपने बिजनेस वाले एरिया के दवा मार्केट में रिसर्च कर लेनी चाहिये। यदि आपके फार्मूले वाली दवा की मार्केट में अच्छी डिमांड है और उसकी सप्लाई कम है या नहीं है। तभी उस दवा के उत्पादन के बारे में सोचना चाहिये।
प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनायें
जब आप फार्मास्युटिकल कंपनी को शुरू करने का पक्का इरादा कर लें तो आपको उसकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनानी होगी। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में आपको जगह-जमीन से लेकर दवा उत्पादन व सेल करने के सभी तरीके, फंड आदि का विस्तार से जिक्र करें। इसके अलावा कंपनी को स्थापित करने के भारत सरकार और जिस राज्य में कंपनी को खोलना है, उस राज्य सरकार के फार्मास्युटिकल कंपनी खोलने के कानून व शर्तों का पालन करना चाहिये। आपको ड्रग लाइसेंस लेने के लिए कंपनी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट की जरूरत होगी। इसलिये कंपनी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में सारी छोटी-बड़ी बातों का विस्तार पूर्वक जिक्र होना चाहिये। इसके आधार पर आपको सरकार से लोन, सब्सिडी एवं अन्य तरह के लाभ भी प्राप्त हो सकते हैं।
बिजनेसमैन को सख्त चेतावनी
फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग का मतलब यह है कि कच्चा माल खरीद कर दवाओं, फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट व मेडिकल उपकरणों को तैयार करके उनकी पैकिंग करके मार्केट में बेचना होता है। इसके लिए आपको फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने से पहले फार्मास्युटिकल सेक्टर की बेसिक जानकारी हासिल करना जरूरी है। इस तरह की जानकारी के बिना फार्मास्युटिकल कंपनी की शुरुआत करना काफी खतरनाक हो सकता है। बिजनेस मैन को फार्मास्युटिकल सेक्टर की जानकारी के बिना भारी पूंजी से शुरू करने वाला बिजनेस बैठ भी सकता है। इस तरह से भारी नुकसान हो सकता है। इसके लिए बिजनेस मैन को सतर्क रहना चाहिये।
इस तरह शुरू करें अपना बिजनेस
सबसे पहले कंपनी के लिए जमीन व बिल्डिंग की तलाश करना बहुत ही मुश्किल काम है। इस तरह की बिल्डिंग को तलाशने के बाद उसे जीएमपी स्टैण्डर्ड के अनुसार तैयार कराना होगा। साथ ही केन्द्र व राज्य सरकारों की कंपनी की इमारत के बारे में आवश्यक शर्तों का भी पालन करना होगा। कंपनी परिसर में अनेक विभागों के अनुसार पर्याप्त जगह होनी चाहिये। जैसे:-
- कच्चे माल को रखने के लिए आवश्यक स्टोर
- निर्माण की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए आवश्यक जगह
- मशीन आदि लगाने की जगह
- क्वालिटी कंट्रोल सेक्शन के लिए जगह
- ऑफिस के लिए जगह
- वेस्टेज गुड्स स्टोर के लिए जगह
इस बिल्डिंग में अनेक तरह की औषधियों के लिए अलग अलग सेक्शन भी बनाया जाना जरूरी है, जैसे:-
1. बाहरी इस्तेमाल की जाने वाले दवाओं क्रीम, आइन्टमेंट आदि के लिए 30 वर्ग मीटर की जगह चाहिये
2. लिक्विड डोज यानी तरल दवाओं जैसे सीरप, सस्पेंशन आदि के लिए 30 वर्ग मीटर की जगह चाहिये
3. सॉलिड डोसेज वाली दवाओं जैसे टेबलेट्स, कैप्सूल, पाउडर के लिए लिए मशीन आदि लगाने के लिए 120 वर्ग मीटर की जगह की आवश्यकता होगी। टेबलेट सेक्शन के लिए 60 वर्ग मीटर इसलिये चाहिये क्योंकि उसमें कोटेड और अनकोटेड टेबलेट की व्यवस्था बनायी जायेगी। इसके अलावा कैप्सूल के प्रोडक्शन के लिए 30 वर्ग मीटर तथा पाउडर प्रोडक्शन के लिए 30 वर्ग मीटर की जगह चाहिये।
कौन-कौन से लाइसेंस चाहिये ?
फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चर कंपनी की स्थापना के लिए अन्य तरह के बिजनेस से अलग हटकर सरकारी कार्रवाई पूरी करनी होती है। इसके लिए कई तरह की परमीशन की भी आवश्यकता होती है। कंपनी के लिए आवश्यक लाइसेंसों में जो प्रमुख लाइसेंसकी आवश्यकता होती है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
- कंपनी का अच्छा सा आकर्षक नाम चुनें
- कंपनी को कंपनी रजिस्ट्रार के यहां शॉप एण्ड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करायें
- कंपनी का प्रारूप तय करें ओपीसी, पार्टनरशिप, एलएलपी या प्राइवेट कंपनी बनानी है
- केन्द्र ,राज्य सरकारों के साथ स्थानीय प्रशासन के नियमों का भी पालन करने के लिए आवश्यक प्रमाण पत्र लें
- ड्रग मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस
- ड्रग डिस्ट्रीब्यूशन लाइसेंस
- टेस्टिंग लैबोरेटरी लाइसेंस
- जीएसटी
- आवश्यकता पड़ने पर संबंधित विभागों के अनापत्ति प्रमाण पत्र , जैसे फायर, पॉल्यूशन आदि विभाग
मैन्यूफैक्चरिंग लाइसेंस की प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज
फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट या दवाओं के निर्माण के लिए आवश्यक लाइसेंस जिसे ड्रग लाइसेंस भी कहते हैं उसे ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया (डीसीजीआई) के माध्यम से बनवाना होता है। इसके अलावा राज्यों की राजधानियों में राज्य ड्रग कंट्रोलर भी नियुक्त होते हैं, उनसे यह लाइसेंस बनवाना होता है। यह स्टेट ड्रग कंट्रोलर राज्य सरकार द्वारा डीसीजीआई की गाइडलाइन के अनुसार ही नियुक्त किया जाता है। आप स्टेट ड्रग कंट्रोलर के यहां ही ड्रग लाइसेंस के लिए आवेदन करें।
ऑनलाइन या ऑफ लाइन आवेदन करने के साथ कुछ आवश्यक दस्तावेज भी जमा करने होते हैं। जब यह आवेदन दस्तावेजों के साथ स्टेट ड्रग कंट्रोलर को प्राप्त हो जाते हैं तो वहां से एक अधिकारियों की टीम आपके संस्थान में निरीक्षण करने के लिए आती है। यह टीम वहां का बारीकी से निरीक्षण करती है और जब उसे इमारत में निर्माण एवं बचाव के साधन आदि नियमानुसार मिलते हैं और वह टीम अपनी जांच में संतुष्ट हो जाती है तो आपको ड्रग लाइसेंस दे देती है। उसके बाद आप अपना निर्माण कार्य शुरू कर सकते हैं।
यदि टीम को आपके संस्थान के निर्माण आदि में सरकारी नियमों का उल्लंघन या कोई कमी मिलती है तो वो आपसे उस कमी को दूर करने के लिए कहेगी हैं, उस कमी को दूर करने के साथ आपको प्रमाण के साथ उसे स्टेट ड्रग कंट्रोलर के यहां जमा करना होता है। उसके बाद पुन: कार्रवाई की जाती है। उसके बाद आपको ड्रग लाइसेंस प्रदान कर दिया जाता है।
मशीनरी और एनालिटिकल इक्विपमेंट
फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी में वि•िान्न विभागों में तरह-तरह की दवाएं बनाने के लिए कई तरह की मशीनों और एनालिटिकल टेस्टिंग इक्विपमेंट की जरूरत होती है। इस काम में आने वाले कुछ प्रमुख मशीनें इस प्रकार हैं:-
लिक्विड/सीरप/सस्पेंशन सेक्शन के लिए
- हाईस्पीड मिक्सर 1000 लीटर के लिए
- स्टोरेज टैंक 1000 लीटर वाला जिसमें पहिये व ढक्कन हों
- स्टोरेज टैंक 200 लीटर वाला जिसमें पहिये व ढक्कन लगा हो
- लिक्विड फिलिंग मशीन
- पैकिंग कैप सीलिंग मशीन
- लिक्विड छानने वाली मशीन
- मेज
कैप्सूल/टेबलेट/ पाउडर बनाने के लिए
- एयर कम्प्रेशर
- एयर कंडीशनर
- बिल्स्टर पैकिंग मशीन
- कैप्सूल फिलिंग मशीन
- कैप्सूल लोडर
- टेबलेट पंचिंग मशीन
- कोटिंग पैन
- सिफ़टर
- मिक्सर 100 किलोग्राम वाला
- ड्रायर ट्रे
- डबल कोन ब्लेंडर
- पाउडर भरने और सील करने वाली मशीन
इसके अलावा कुछ अन्य मशीनों की भी आवश्कता होती है, जो इस प्रकार हैं:-
- दवाओं के बैच प्रिंटिंग मशीन
- आरओ प्लांट
- लैब उपकरण
- एयर हैंडलिंग यूनिट
कंपनी में काम करने वाले टेक्निकल स्टाफ कितने चाहिये
अनेक तरह की फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के लिए अलग-अलग संख्या में कुशल अनुभवी टेक्निकल और अकुशल कर्मचारियों की जरूरत होती है। आम तौर पर बताया जाता है कि जीएमपी स्टैडर्ण्ड के नियमों के अनुसार किसी भी फार्मास्युटिकल कंपनी के लिए कम से कम दो टेक्निकल अनुभवी स्टाफ की आवश्यकता होती है। इसमें से एक टेक्नीकल स्टाफ कंपनी में हो रहे दवा निर्माण की प्रक्रिया की देखरेख के लिए तैनात होना चाहिये। वो अपनी देखरेख में दवाओं का निर्माण यानी उत्पादन कराये। किसी भी तरह की समस्या आने पर उसका तुरन्त समाधान भी कराये।
दूसरा टेक्नीकल स्टॉफ को चाहिये कि वह एनालिटिकल प्रॉसेस की मॉनिटरिंग करे। उसे चाहिये कि वह क्वालिटी कंट्रोल करे। मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रिया में काम करने वाले व्यक्ति का नाम मैन्युफैक्चरिंग केमिस्ट, प्रोडक्शन केमिस्ट, प्रोडक्शन ऑफिसर, सुपरवाइजर के रूप में लिखे। जो व्यक्ति एनालिटिकल प्रॉसेस को पूरा करवा रहा है उसका नाम क्वालिटी कंट्रोल केमिस्ट, एनालिटिकल केमिस्ट के रूप में लिखे। ताकि उन लोगों की जिम्मेदारियां तय की जा सकें और किसी तरह की समस्या होने पर उनको पहचाना जा सके और उनसे काम करवाया जा सके।
कंपनी स्थापित करने में कितनी लागत आती है
फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी स्थापित करना बड़ा काम है। इसमें बड़ी पूंजी लगायी जाती है। जो बिजनेस मैन एक बार में ही मोटी पूंजी लगाकर लम्बे समय तक मुनाफा कमाना चाहते हों उनके लिये यह बिजनेस आइडिया बिलकुल सही है। वैसे इस तरह की कंपनी को स्थापित करने के लिए कोई फिक्स लागत नहीं है क्योंकि विभिन्न शहरों के अनुसार जमीन या कंपनी इमारत की कीमत व किराया अलग-अलग होता है। इसके अलावा कई अन्य जरूरत के सामान की कीमत भी अलग-अलग होती है। इसके बावजूद इस बिजनेस के एक्सपर्ट का मानना है कि एक औसत दर्जे की कंपनी को स्थापित करने के लिए कम से कम 15 से 20 लाख रुपये की जरूरत होती है।
मुनाफा कितना मिलता है
फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरिंग एवं इसका बिजनेस दो तरह से होता है। एक बिजनेस दवाओं के साल्ट को कंपनी अपने नाम से पेटेंट करा लेती है तो उस साल्ट पर उस कंपनी की मोनोपोली हो जाती है। उससे वह अपने सॉल्ट की कोई भी कीमत वसूल सकती है। उसका उदाहरण आजकल मार्केट में महंगी-महंगी दवायें हैं। इसका कारण यह है कि कंपनी अपने साल्ट को हिट कराने के लिए उसकी ऑनलाइन व आफ लाइन मार्केटिंग व ऑफर-स्कीम आदि पर बहुत अधिक खर्च करती है। उसका भी औसत उसे अपने सॉल्ट से ही निकालना होता है।
दूसरा आजकल भारत में जेनेरिक दवाओं का प्रचलन चल रहा है। इस तरह के बिजनेस में कोई भी जेनरिक दवा निर्माता किसी भी मशहूर कंपनी के सॉल्ट को लेकर कोई प्रोडक्ट तैयार करता है, उसका नाम अपनी इच्छानुसार रखता है यानी उसके नाम की नकल नहीं करता है। उस सॉल्ट का वह कोई बहुत बड़ा प्रचार नहीं करता है केवल डॉक्टरों व बड़े-बड़े अस्पतालों में अपने प्रोडक्ट के बारे मे जानकारी देता है। इसलिये वो अपना प्रोडक्ट पेटेंट दवाओं के रेट से बहुत कम रेट पर बेचता है।
इन दो तरीकों से इस बिजनेस को करने से बिजनेस मैन अलग अलग तरह का मुनाफा यानी प्राफिट मिलता है। पहले तरीके यानी पेटेंट कराने वाले बिजनेसमैन को अपने सॉल्ट पर 50से 60 प्रतिशत तक मुनाफा मिलता है। दूसरे तरीके से यानी जेनेरिक दवाएं बनाने वाले बिजनेस मैन को औसतन 25 से 30 प्रतिशत तक मुनाफा मिल सकता है।
जेनरिक दवाओं के निर्माता कैसे बनें
इसमें आपको कोई अलग से प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता नहीं होती है। सारी प्रक्रिया किसी भी तरह के फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरर की तरह ही पूरी करनी होती है। बस इसमें आवेदन करते समय जेनरिक दवाओं के बनाने का जिक्र करना होता है। साथ ही सरकार द्वारा चलायी जा रही मेक इन इंडिया और आत्म निर्भर भारत योजनाओं का भी हिस्सा बनना होता है। साथ ही एमएसएमई में रजिस्ट्रेशन कराकर उद्योग आधार हासिल कराना होता है। इसमें बिजनेस मैन का माइनस प्वाइंट यह है कि वह अपने द्वारा किसी तरह की बनाई गई दवा का पेटेंट नहीं करा सकता है।
इस तरह के बिजनेस में किसी तरह की बड़ी पाबंदी नहीं होती है। बिजनेसमैन सरकारी नियमों को ध्यान में रखते हुए कई तरह की सॉल्ट को लेकर प्रोडक्ट तैयार करके अपना व्यापार चला सकता है और उससे अधिक से अधिक लाभ भी हासिल कर सकता है।उसे मार्केटिंग के लिए अस्पतालों, क्लीनिकों, मेडिकल स्टोर, दवा मार्केट व हर गली-नुक्कड़ पर बैठे सभी तरह के डॉक्टरों से सम्पर्क करने के लिए एमआर यानी मेडिकल रिप्रजेंटेटिव की लम्बी चौड़ी फौज उतारनी होती है। इससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है।
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