GST और बड़े व्यापारियों पर इसका असर
जीएसटी जिसका मकसद देश में (एक देश-एक कर) एक देश में केवल एक ही कर होना चाहिए की व्यवस्था को परिपूर्ण कर रहा है। जीएसटी लागू होने से कर भुगतान में पारदर्शिता आयी है साथ ही कर चोरी कम हुई है। हालाँकि इसके लागू होने पर काफी असमंजस की स्थिति की सामना करना पडा था क्योंकि इसकी पूरी जानकारी न व्यवपारियों के पास थी, न ही जीएसटी अधिकारीयों और न ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पास थी। जिससे बहुत ज्यादा भ्रम की स्थिति बन गयी थी। यहाँ तक की पूरी जानकारी न होने के कारण 20 लाख से कम आमदनी वाले व्यापारियों ने भी जीएसटी का रजिस्ट्रेशन ले लिया। अब उनकी समस्या ये हो गयी की वो तो टैक्स स्लैब में आते ही नहीं लेकिन अब जीएसटी का कुछ अंश देना ही होगा। जीएसटी नंबर कैंसिल करने पर भी कर देना पड़ रहा क्योंकि नियमानुसार पुराने माल को व्यापारी ने स्वतः वापस खरीद लिया है। वहीँ बात करें बड़े उद्द्यमियों की तो छोटे कारोबारियों से जिनका वार्षिक टर्नओवर 20 लाख नहीं है उसके बदले में उन्हें रिवर्स चार्ज भरना पड़ रहा है और इनपुट क्रेडिट भी नहीं मिल रहा है।
जैसा की हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा की जीएसटी लागू होने से किन-किन व्यवसायों पर सबसे अधिक इसकी मार पड़ी है और छोटे व मझोले व्यापारियों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है (आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें) हम इस आर्टिकल में बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों के बारे में समीक्षा करेंगे की कैसे उनको जीएसटी प्रभावित कर रहा है और नए नियम आने से क्या बदलाव हुए है। आइये समझते हैं:-
जीएसटी लागू होने के बाद सबसे ज्यादा समस्या छोटे व्यापारियों को आयी बड़े कारोबारियों पर इसका कुछ खास असर नहीं हुआ वरन उत्पादों के निर्माण में कम लागत आने पर उनको मुनाफा ही हुआ है। इन सब के बीच राहत की बात ये थी की केंद्र, राज्य सरकार और जीएसटी परिषद् आने वाली समस्याओं को लेकर सचेत थी और इसके लिए उसने कई अधिकारीयों को जिम्मा सौंप रखा था की किसी को कोई समस्या नहीं आये जिससे आने वाली हर परेशानी पर पूरी तरह से निगरानी राखी जा पा रही थी। सरकार की सचेतना के कारन ही मुश्किल भरा लगने वाला जीएसटी कई संसोधनो के बाद अब सुगम और आसान हो गया है साथ ही लागत में कमी आयी है।
लेकिन एक समस्या अभी भी सरकार और जीएसटी परिषद् के लिए परेशानी का सबब बानी हुई है और वो ये है की जीएसटी में व्यवसाइयों ने रजिस्ट्रेशन तो करवा लिया है पर वो कर अभी भी जमा नहीं कर रहे हैं। जीएसटी में रजिस्टर 30% व्यापारी और कारोबारी ऐसे हैं जो आय कर अभी भी जमा नहीं कर रहे हैं। वहीँ कम्पोजिशन के तहत होने वाले रजिस्टर व्यापारियों में 40% तक व्यापारी कर अदायगी नहीं कर रहे हैं।
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बड़े कारोबारियों की समस्या क्या है?
1. माल ढुलाई
बड़े कारोबारी जो सामान का उत्पादन और निर्यात करते हैं अन्तर्राजीय और राज्य के बाहर उन्हें सबसे ज्यादा ट्रांसपोर्ट की दिक्कत आ रही है क्योंकि अब माल ढुलाई का भी ब्यौरा देना पड़ रहा है। आरसीएम सेवा कर के तहत लागू किया गया था और इस्तेमाल किए गए घरेलू सामानों के परिवहन के लिए 60% (40% कर योग्य) और सामान्य वस्तुओं के परिवहन के लिए 70% (30% कर योग्य) का चार्ज था। बाद में इसमें संसोधन किया गया और कृषि उपज आटा, दाल और चावल सहित दूध, नमक, अनाज, जैविक खाद, समाचार पत्र के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत समाचार पत्र या पत्रिकाएं, राहत सामग्री, रक्षा या सैन्य उपकरण के ऊपर से जीएसटी हटाया गया। इसके अलावा ढुलाई किये जाने वाले सामान पर 5% बिना ITC के और 12% ITC के साथ कर जमा करना होगा। राज्य में लगने वाली चुंगी, बिक्री कर और अन्य वसूली केंद्र हटाने से वाहनों के आवगमनो में आसानी हो रही है।
2. कस्टम ड्यूटी
जिन व्यापारियों का बिज़नेस विदेशों में हो रहा है उनको भी जीएसटी का दंश झेलना पड़ा क्योंकि सही दर मालूम न होने के कारण उनके द्वारा आयात किये गए सामान कई महीनो के लिए रोका रखा गया। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत तब आयी जब अधिकारीयों ने भी हाथ खड़े कर दिए जिससे बिज़नेस में गिरावट आयी। लेकिन अब आईजीएसटी (IGST) द्वारा कर लगाया जा रहा है।
3. इनपुट क्रेडिट
बड़े कारोबारियों की सबसे बड़ी चिंता इनपुट क्रेडिट न मिलने की। प्राप्तकर्ता को इनपुट क्रेडिट तभी मिलेगा जब आपूर्तिकर्ता द्वारा सरे दस्तावेज जमा किये गए हों और उससे प्राप्तकर्ता द्वारा जमा किये गए विक्रय चालान से मेल खाता हो पर छोटे व्यापारी को जीएसटी जमा करने की जरुरत ही नहीं है।
4. ई-कॉमर्स
ई-कॉमर्स पर सामान बेचने वाले बड़े कारोबारी को यहाँ भी इनपुट क्रेडिट का लाभ नहीं मिलता और देश में आपूर्ति करने के बाद एकल टैक्स की लेवि का भुगतान करना पड़ता है।
5. ई-वे बिल
पंजीकृत व्यापारी जिनके व्यापर में माल की आवाजाही 50000 रूपये से अधिक है उन्हें ई-वे बिल बनाना होता है और यह प्रक्रिया पूरी तरह परेशानी में डालने वाली है क्योंकि इसमें ट्रांपोर्टर, आपूर्तिकर्ता और प्राप्तकर्ता सबकी भागीदारी आवश्यक है जिसे जल्द से जल्द पूरा करना होता है।
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6. रिवर्स चार्ज
कोई पंजीकृत कारोबारी अपंजीकृत कारोबारी से कारोबार करता है तब पंजीकृत व्यापारी को "रिवर्स चार्ज" देना होता है। विभिन्न असंगठित क्षेत्रों में सेवा देने के लिए माल की बिक्री पर इस कर को लगाया जाता है। बड़े व्यापारी अगर अपंजीकृत व्यापारी से एक दिन में 5000 रूपये से अधिक की वास्तु और सेवा प्राप्त करते हैं तो उन्हें जीएसटी देनी ही होगी।
7. कोरोना
कोरोना महामारी के कारण भी बड़े कारोबारियों पर खासा प्रभाव डाला है इससे उनके निर्मित माल गोदाम में ही पड़ा हुआ है और ऊपर से जीएसटी की तारीख ने भी व्यापारियों को मुश्किल में डाल दिया है। क्योंकि पिछले 6 महीनो से पूरा बाजार ठप्प पड़ा है कर्मचारियों की आधी सैलरी देने के बाद भी व्यापारियों के अकाउंट केवल खाली ही हुए हैं। जिससे जीएसटी जमा करना उन पर अतरिक्त बोझ है। हालाँकि सरकार ने पहल करते हुए बहुत सी रियायत दी है जीएसटी जमा करने की तारीख को बढ़ा दिया है।
8. पंजीकरण
जिन कारोबारियों का एक से अधिक राज्यों में कारोबार फैला हुआ है उन्हें भी लग अलग राज्य का पंजीकरण लेना पड़ रहा है यह भी एक बड़ी परेशानी का कारण है। जीएसटी आने से राज्यों के एंट्री गेट पर चुंगी वसूली और अन्य वसूली जरूर रुके हैं।
9. स्टॉक राज्य के भीतर शाखा
यदि कोई डीलर एक ही राज्य में एक ही शाखा से किसी भी सामान या सेवा को उसी BIN (बिजनेस आइडेंटिफिकेशन नंबर) में स्थानांतरित कर रहा है, तो डीलर ऐसे लेनदेन पर GST का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
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निष्कर्ष
पूरे आर्टिकल की समीक्षा करने के बाद इनपुट क्रेडिट, रिवर्स चार्ज को छोड़ दिया जाये तो बड़े कारोबारियों की कोई खास हानि नहीं हुई है वरन उनको प्रॉफिट ही हो रहा है। सरकार और जीएसटी परिषद् का व्यापर संघ की कई बातों को मानकर उसका संसोधन किये जाने से भी व्यापारियों को लाभ हो रहा वही कुछ मामलों में अभी संसोधन चल रहा है। जीएसटी के पहले अधिकतर कंपनियों / उद्योगों के पास उत्पाद शुल्क, सेवा कर और वैट के लिए अलग-अलग सलाहकार होते थे जो करों के विलय के बाद से केवल एक सलाहकार की ही आवश्यकता है। अधिकांश कंपनियों के पास SAP जैसे जटिल सॉफ्टवेयर हैं इसे अपग्रेड करना उद्योगों के लिए एक बड़ी समस्या है। लेकिन जीएसटी के कारण अब इन्हे अपग्रेड करना जरुरी हो गया है। साथ ही होने वाले हर बदलाव पर निरंतर प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होगी।
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