कोई नया बिजनेस शुरू करना आसान काम नहीं हैं। नया बिजनेस शुरू करने वाले व्यवसायी को व्यवसाय से जुड़ी बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारी जुटानी होती है। इसके लिए उसे बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है। लोगों से विचार विमर्श भी करना होता है। नया बिजनेस शुरू करने से पहले व्यापारी को नये बिजनेस से जुड़ी बहुत सी जरूरी बातों पर सौ बार सोचना पड़ता है। जैसे कि बिजनेस कैसे शुरू किया जायेगा। जमीन, शॉप, स्टोर खरीदना होगा या किराये पर लेने होगा, इन पर कितना खर्च होगा। बिजनेस शुरू करने के लिए कितनी पूंजी लगेगी, कहां से आयेगी। बिजनेस चलाने के लिए कितनी मशीनों की जरूरत होगी। कितने प्रकार के उपकरण लगेंगे। कर्मचारियों की कितनी टीमें काम करने के लिए जरूरी होंगी। कच्चा माल कहां से खरीदा जायेगा, उससे प्रोडक्ट कैसे तैयार किया जायेगा। प्रोडक्ट के तैयार होने के बाद उसे मार्केट में कैसे बेचा जायेगा अथवा ग्राहकों तक माल कैसे पहुंचाया जायेगा। उसमें कब और कितना मुनाफा मिलेगा। इन सब बातों पर विचार करते समय नये बिजनेस मैन का पूरा फोकस मुनाफे पर ही होता है। होना भी चाहिये क्योंकि कोई भी बिजनेसमैन बिजनेस में पूंजी, मेहनत यही सोच कर तो लगाता है कि इससे उसे अधिक से अधिक मुनाफा मिलेगा।
व्यापार शुरू करने से पहले की कुछ जरूरी बातें
नया बिजनेस शुरू करने के लिए व्यापारी इन तमाम व्यवसायी एवं बाजारी जरूरतों के साथ सफल व्यवसाय करना चाहता है। साथ में वह यह भी चाहता है कि उसका बिजनेस बिना किसी बाधा के सफलता पूर्वक चले। सफलता पूर्वक बिजनेस चलाने के लिए व्यापारी बिजनेस संबंधी सभी जरूरत का सामान जुटाना ही केवल जरूरी नहीं है बल्कि उसको सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देश यानी गाइडलाइन का भी पालन करना जरूरी है। गाइडलाइन के साथ कुछ सरकारी नियम भी हैं, जिनका व्यवसायी को पालन बहुत जरूरी होता है। यदि व्यवसायी ने सरकार के सारे नियमों व कानूनों का सही तरीके से ईमानदारीपूर्वक पालन किया और उन नियमों-कानूनों से जुड़ी सारी प्रक्रियाओं को सही तरह से पूरा किया तो वह व्यापारी निश्चिन्त होकर अपना व्यवसाय स्वतंत्रता पूर्वक कर सकता है। इसके लिए व्यापारी को अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले इन सरकारी नियमों और कानूनों की प्रक्रिया के लिए थोड़ी भागदौड़ अवश्य करनी पड़ेगी।
क्यों जरूरी है सरकारी नियमों का पालन करना ?
व्यापार शुरू करने से पहले की यह भागदौड़ व्यापार और व्यापार दोनों के हित में रहती है। यदि व्यवसायी किन्हीं कारणों से सरकारी नियमों, कानूनों की प्रक्रिया को अपनाये बिना ही अपना बिजनेस शुरू कर देता है तो उसे उस समय बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है जब बिजनेस आगे बढ़ने की स्थिति में आ जाता है और उसी समय सरकारी नियमों व कानूनों का पालन न करने पर सरकार की ओर से दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। इसलिये यह आवश्यक है कि व्यवसायी को अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले जहां सारी जरूरतों को पूरा करता है वहीं सरकारी नियमों की प्रक्रिया को भी अपनाये।
कौन-कौन से हैं प्रमुख सरकारी नियम व कानून ?
व्यवसाय शुरू करने से पहले सरकारी नियमों व कानूनों का पालन करना होता है। विभिन्न व्यवसायों के लिए विभिन्न तरीके के सरकारी नियम कानून लागू हैं। इन नियमों में कुछ ऐसे नियम हैं जो सभी तरह के बिजनेस को लागू करने ही होते हैं। आइये जानते हैं, कि नया बिजनेस किस प्रकार से शुरू किया जाता है और कौन-कौन से जरूरी नियम व कानून हैं।
किस तरह का व्यापार शुरू करना है, सोचें
सबसे पहले तो व्यवसायी को नये बिजनेस के बारे में यह सोचना चाहिये कि वह किस वस्तु या सेवा का व्यापार करना चाहता है। उस बिजनेस का कितना बड़ा आकार हो सकता है। यह भी सोचना चाहिये कि वह मैन्यूफैक्चरिंग का काम करना चाहता है, वस्तुओं की खरीद-फरोख्त करना चाहता है या कोई महत्वपूर्ण सेवा शुरू करने का बिजनेस शुरू करना चाहता है, थोक या फुटकर व्यापार करना चाहता है। इन सारी बातों पर विचार करके उस बिजनेस का बिजनेस प्लान बनाना चाहिये और सरकारी कानूनों की जानकारी जुटाकर उनकी प्रक्रिया पूरी करनी चाहिये।
किस तरह का व्यापारिक संगठन बनाना है ?
यह तय करना चाहिये कि वह किस तरह की फर्म या कंपनी खोलना चाहता है। भारत के व्यापार जगत में चार तरह के व्यापारिक संगठन बनाये जाते हैं। छोटे व्यवसाय के कामकाज करने के तौर तरीके अलग होते हैं और बड़े व्यवसाय के काम करने के तरीके अलग होते हैं। छोटे बड़े बिजनेस का चुनाव करने के बाद ही उसी हिसाब से तैयारी करनी चाहिये।
व्यावसायिक संगठन का प्रारूप तय करें
नया बिजनेस इस तरह से शुरू किया जा सकता है। बिजनेस, मार्केट, के लिये जमीन, दुकान, शॉप, स्टोर, ग्राहकों आदि की सर्वे करने के बाद अपनी क्षमता के अनुसार फर्म का आकार तय करना चाहिये। आकार करने के बाद व्यावसायिक संगठन का प्रारूप तय करना होता है। नया बिजनेस शुरू करने के लिए व्यावसायिक संगठन के प्रमुख प्रारूप इस प्रकार के होते हैं:-
- सोल प्रोप्राइटरशिप यानी एकल स्वामित्व वाली फर्म
- ओपीसी यानी वन पर्सन कंपनी
- पार्टनरशिप फर्म
- एलएलपी फर्म यानी लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप
- प्राइवेट लिमिटेड कंपनी
- पब्लिक लिमिटेड कंपनी
सोल प्रोप्राइटरशिप यानी एकल स्वामित्व वाली फर्म
कोई व्यक्ति अपना नया बिजनेस शुरू करने के लिए सोल प्रोप्राइटरशिप यानी एकल स्वामित्व वाली फर्म खोल सकता है। इस तरह की फर्म खोलने के लिये सरकारी नियम व कानून की औपचारिकताएं अधिक नहीं होती हैं। इस तरह फर्म के हानि-लाभ के लिए फर्म का मालिक पूरी तरह से जिम्मेदार होता है।
ओपीसी यानी वन पर्सन कंपनी
ओपीसी यानी वन पर्सन कंपनी भी सोल प्रोप्राइटरशिप की तरह ही होती है। इसमेंं फर्म को कंपनी का प्रारूप दे दिया जाता है। इसमें केवल कंपनी का नाम और कंपनी के मालिक का नाम अलग-अलग होता है। बाकी सारी जिम्मेदारी कंपनी के मालिक की होती है।
पार्टनरशिप फर्म
पार्टनरशिप फर्म दो या उससे अधिक साझीदारों यानी पार्टनरों द्वारा खोली जाती है। इस फर्म के घाटा-मुनाफा के लिए सभी पार्टनर समान रूप से भागीदार होते हैं।
एलएलपी फर्म यानी लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप
एलएलपी फर्म यानी लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप फर्म वो फर्म होती है। इसमें कई पार्टनर होती है लेकिन पार्टनरशिप फर्म में जहां जिम्मेदारी अलग से तय नहीं होतीं हैं, वहीं इस लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप वाली फर्म में डायरेंक्टरों की अलग-अलग तरह की जिम्मेदारी तय की गयीं होतीं हैं। हानि-लाभ, विवाद की स्थिति में ये डायरेक्टर अपनी-अपनी तय जिम्मेदारी के अनुसार ही अपनी भूमिका निभाते हैं।
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर काम करता है। सभी डायरेक्टरों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय होती है। इसमें डायरेक्टर अपनी-अपनी भूमिका के तय की गई जिम्मेदारी के अनुसार निभाते हैं। इस तरह की कंपनी का रजिस्ट्रेशन भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के तहत कराया जाता है।
पब्लिक लिमिटेड कंपनी
पब्लिक लिमिटेड कंपनी व्यापार जगत की सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती है। इस तरह की कंपनी बनाने के लिए कम से कम 7 डायरेक्टर होने चाहिये। कंपनी की सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसे आईपीओ में सूचीबद्ध यानी लिस्टेड कराया जाता है। इसके बाद पब्लिक के बीच कंपनी के शेयर जारी किये जा सकते हैं।
व्यावसायिक संगठनों के लिये निर्धारित सरकारी नियम
1. सोल प्रोप्राइटरशिप यानी एकल स्वामित्व वाली फर्म: इस तरह की फर्म के लिए शॉपिंग एण्ड इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराने के अलावा कोई अन्य सरकारी महत्वपूर्ण औपचारिकता का पालन नहीं करना होता है। इसमें व्यक्तिगत कर यानी पर्सनल टैक्स व आयकर यानी इनकम टैक्स जमा करना होता है। साथ ही जीएसटी के दायरे में आते ही जीएसटी नंबर लेना होता है। तथा जीसएसटी जमा करना होता है।
2. ओपीसी यानी वन पर्सन कंपनी : इसमें कंपनी से जुड़ कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होतीं हैं और इसे अलावा पर्सनल टैक्स व इनकम टैक्स तथा जीएसटी देना होता है। इस कंपनी का प्रारूप लगभग सोल प्रोप्राइटरशिप फर्म की तरह होता है तो इस फर्म पर भी वही कानून लागू होते हैं जो सोल प्रोप्राइटरशिप फर्म पर लागू होते हैं।
3. पार्टनरशिप फर्म: इस तरह के फर्म के मालिक चाहें तो उद्योग विभाग और एमएसएमई में रजिस्ट्रेशन कराना चाहें तो करा सकते हैं। यह कोई अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा इस तरह की फर्म की हानि-लाभ व विवाद से निपटने की इनकी अपनी सारी स्वयं की जिम्मेदारी होती है। इसमें दो या दो अधिक पार्टनर का होना जरूरी है। पार्टनरशिप फर्म के लाभ पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत निर्धारित स्लैब के अनुसार सरचार्ज और सेस लगाया जाता है। पार्टनरशिप में किसी विदेशी नागरिक को नहीं रखा जा सकता है। न तो कोई बैठक ही बुलानी अनिवार्य है। न ही कंपनी रजिस्ट्रार के पास वार्षिक रिपोर्ट ही देनी होती है केवल पार्टनरशिप प्राफिट पर इनकम टैक्स ही देना होता है।
4. एलएलपी फर्म यानी लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप: इस तरह की फर्म का कारपोरेट अफेयर मिनस्ट्री में एलएलपी एक्ट 2008 के तहत रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। यह एक कानूनी इकाई है और इसके प्रमोटर्स एलएलपी के प्रति व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं होते हैं। एलएलपी के डायरेक्टर की अपनी अपनी जिम्मेदारी तय होती है। कम से कम दो व्यक्ति होने चाहिये। फर्म का मालिकाना हक ट्रांसफर के योग्य है यानी मालिक बदला जा सकता है। एलएलपी पर आयकर अधिनियम 1961 के तहत कर के अलावा सरचार्ज आदि लगाये जा सकते हैं। फर्म के व्यवसाय की वार्षिक स्टेटमेंट, वार्षिक रिटर्न की फाइल रजिस्ट्रार के समक्ष प्रतिवर्ष पेश की जानी जरूरी होती है। टैक्स रिटर्न की भी जानकारी हर साल देनी आवश्यक होती है। कंपनी लॉ बोर्ड के आदेश से बोर्ड को भंग भी किया जा सकता है। निवेशकों में विदेशी नागरिकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्वीकृति के बाद शामिल किया जा सकता है अथवा भारत सरकार की अनुमति से भी विदेशियों को निवेशकों में ही शामिल किया जा सकता है।
5. प्राइवेट लिमिटेड कंपनी : इस तरह की कंपनी को कारपोरेट अफेयर मिनिस्ट्री के साथ कंपनी अधिनियम 2013 के तहत रजिस्ट्रेशन कराया जाना अनिवार्य है। यह एक अलग कानूनी इकाई है। इसके प्रमोटर्स कंपनी के प्रति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं हैं। ओनरशिप बदली जा सकती है यानी शेयर को ट्रांसफर करके मालिक का बदलाव किया जा सकता है। प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लाभ पर आयकर अधिनियम 1961 के स्लैब के आधार पर आयकर, सरचार्ज व सेस लगाये जाते हैं। समय-समय पर बोर्ड की व जनरल मीटिंग बुलाया जाना जरूरी है। वार्षिक स्टेटमेंट, वार्षिक रिटर्न का लेखा-जोखा प्रतिवर्ष कंपनी के रजिस्ट्रार के समक्ष पेश करना जरूरी होता है। इसके साथ आयकर रिटर्न की डिटेल भी देनी जरूरी होती है।
बिजनेस लाइसेंस के लिए आवेदन
किसी भी लाइसेंस को चलाने के लिए लाइसेंस जरूरी होते हैं। भारत में विभिन्न बिजनेस के लिए विभिन्न तरह के लाइसेंस लेने होते हैं। आपको अपने बिजनेस के हिसाब से लाइसेंस की जानकारी जुटानी होगी और बिजनेस शुरू करने से पहले उन लाइसेंस को लेना ही सही रहेगा।
लाइसेंस के बिना सरकारी कार्रवाई और मुकदमेबाजी पर अनचाहा पैसा खर्च करना होगा और इसका असर आपकी योजना पर सीधा पड़ता है। लाइसेंस बिजनेस चलाने के लिए एक वैधानिक दस्तावेज हैं। इसके लिये रजिस्ट्रार कार्यालय में बिजनेस चलाने के लिए बिजनेस के रजिस्ट्रेशन की सरकारी कार्यवाही पूरी करनी होती है।
आम तौर पर सभी तरह के बिजनेस में शॉप एण्ड इस्टब्लिसमेंट एक्ट के तहत फर्म या कंपनी का रजिस्ट्रेशन सभी बिजनेस के लिए कराना अनिवार्य है। इसके अलावा अन्य लाइसेंस उद्योगों के अनुसार लेने होते हैं। उदाहरण के लिए फूड रेस्टोरेंट के लिए फूड सेफ्टी लाइसेंस, इन्वायरमेंट सर्टिफिकेट, हेल्थ डिपार्टमेंट से लाइसेंस चाहिये होता है। ई कॉमर्स कंपनी को वैट रजिस्ट्रेशन, सर्विस टैक्स रजिस्ट्रेशन कराना होता है तथा प्रोफेशन टैक्स का लाइसेंस लेना होता है।
कराधान यानी टैक्सेशसन व एकाउंटिंग कानूनो को समझें
किसी भी नये बिजनेस को शुरू करने से पहले उस बिजनेस से जुड़े टैक्सेशन व लेखा संबंधी कानून को अच्छी तरह से समझना जरूरी होता है। यह तो सभी को मालूम है कि टैक्स प्रत्येक बिजनेस का जरूरी हिस्सा है। ये बहुत तरीके के टैक्स होते हैं। वैसे मूलत: तीन अधिकार क्षेत्र वाले सरकारी अधिकारिया द्वारा ये टैक्स लगाये जाते हैं-
- सेंन्ट्रल टैक्स: इस प्रकार के टैक्स केन्द्र सरकार के विभागों द्वारा लगाये जाते हैं
- स्टेट टैक्स: इस प्रकार के टैक्स राज्य सरकार के अधीन विभागीय अधिकारियों द्वारा लगाये जाते हैं।
- लोकल टैक्स: इस प्रकार के टैक्स लोकल अथॉरिटी यानी ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, टाउन एरिया,नगर पालिका परिषद और नगर निगम के विभागीय अधिकारियों द्वारा लगाये जाते हैं।
श्रम कानूनों का पालन करना अनिवार्य होता है
किसी भी बिजनेस,संस्थान कंपनी में कर्मचारियों को सैलरी पर रखा जाता है। इस तरह के श्रमिकों के बारे में श्रम विभागों को सूचित करना होता है। श्रमिकों से जुड़ी सुरक्षा, प्राविडेंट फंड, कर्मचारी बीमा, वेतन भत्ते आदि के बारे में श्रम विभागों के नियमों का पालन करना जरूरी होता है।
इसके अलावा न्यूनतम वेतन, ग्रेच्युटी,साप्ताहिक अवकाश, मातृत्व अवकाश, शारीरिक शोषण, यौन उत्पीड़न, बोनस भुगतान आदि श्रमिकों से जुड़ी समस्याओं के बारे में श्रम विभाग के नियमों व कानूनों का भी पालन करना होता है।
सूचना तकनीक व निजता कानून को भी जानें
आज हम आधुनिक तकनीक के जमाने में रह रहे हैं। इस जमाने में हमें डिजिटली कानून के बारे में जानना जरूरी होता है। भारत सरकार द्वारा इन्फार्मेशन टेक्नॉलाजी एवं प्राइवेसी के बारे में कई कानून बनाये गये हैं। ये कानून बिजनेस को आगे बढ़ाने में तो लाभदायक है और उससे अधिक बिजनेसमैन और ग्राहक के बीच प्रत्येक तरह की डीलिंग को लीक होने से बचाने के काम में आते हैं। इन कानूनों को पालन करने वाले बिजनेस को साइबर क्राइम से होने वाले नुकसान से बचाने की पूरी कोशिश की जाती है। बिजनेस मैन को पूरी तरह से संरक्षण दिया जाता है। इसलिये नया बिजनेस आप यदि ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन भी शुरू करना चाहते हैं तो आपको अपने बिजनेस के रजिस्ट्रेशन के समय इसका उल्लेख अवश्य कर देना चाहिये। जिससे आपको डिजिटल कानून का लाभ मिल सके।
इन्फार्मेशन एक्ट व साइबर लॉ हैं बहुत उपयोगी
भारत सरकार द्वारा हाल ही में इन्फार्मेशन एक्ट, साइबर लॉ बनाया गया है। इस कानून के माध्यम से ऑलनाइन प्राइवेसी को बनाये रखने और अपनी पहचान को गुप्त बनाये रखने में काफी मदद मिलती है। यदि कोई व्यवसायी किसी संवेदनशील मामले में अपने ग्राहकों से व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करता है तो उद्यमियों के पास साउंड सिक्योरिटी वाली जगह होनी चाहिये। इसके अलावा अपने डेटा की संभावित चोरी की घटना से बचाने के लिए बिजनेस मैन को विशेषरूप से सतर्क रखना चाहिये तथा सरकार के संबंधित विभाग से मदद लेनी चाहिये।
सीनियर कंसलटेंट से अवश्य परामर्श करें
बिजनेस मैन को चाहिये कि नया बिजनेस शुरू करने से पहले सरकारी कानून की बारीकियों की जानकारी के लिए एक बार किसी कानून के अनुभवी जानकार यानी इस तरह के सलाहकार अधिवक्ता से सलाह मशविरा कर लेना चाहिये। समय के अनुसार सरकारी कानूनों में बदलाव भी होते रहते हैं। ये कानूनी सलाहकार इन बदलावों को अच्छी तरह से जानते हैं। वे अपनी मुवक्किल को अच्छी तरह से ऐसी जानकारी देते हैं जो उनकी समझ में आसानी से आ जाती है। क्योंकि ये अनुभवी अधिवक्ता अपने कस्टमर को उनकी सरल भाषा में ही समझाते हैं। ये कानून चाहे कितनी कठिन अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में लिखे गये हों।
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