FMCG क्या है? FMCG से जुड़ी सभी जानकारी जो आप जानना चाहते हैं
एफएमसीजी (FMCG) यानि फ़ास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स।
कंज़्यूमर गुड्स वह प्रोडक्ट होते हैं जो एक सामान्य कंज़्यूमर द्वारा इस्तेमाल के लिए खरीदे जाते हैं।
इनको तीन केटेगरी में बांटा गया है –
ड्यूरेबल, नॉन ड्यूरेबल और सेवाएं।
टिकाऊ उत्पादों यानि ड्यूरेबल गुड्स की शेल्फ लाइफ तीन साल या इससे अधिक हो सकती है, वहीं नॉन ड्यूरेबल गुड्स की शेल्फ लाइफ एक साल से कम होती है। एफएमसीजी यानि फ़ास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स, कंज़्यूमर गुड्स का सबसे बड़ा सेगमेंट है। ये नॉन ड्यूरेबल केटेगरी में आता है क्योंकि इसकी शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है।
इन प्रोडक्ट्स की शेल्फ लाइफ कम होती है क्योंकि यह प्रोडक्ट्स ज़्यादा लम्बे समय तक स्टोर करके नहीं रखे जा सकते हैं। साथ ही उपभोक्ताओं के बीच इनकी मांग अधिक रहती है। जैसे- मीट, डेयरी प्रोडक्ट्स, बेक किए गए उत्पाद आदि। यह प्रोडक्ट्स ज़्यादातर खरीदे जाते हैं और तेज़ी से इस्तेमाल भी किए जाते हैं। इनके दाम कम होते हैं पर ये बिकते बड़ी मात्रा में हैं।
इनके विपरीत स्लो मूविंग कंज़्यूमर गुड्स वे होते हैं जिनकी शेल्फ लाइफ लम्बी होती हैं यानि जो ज़्यादा समय तक चलते हैं और काफी समय बाद भी खरीदे जा सकते हैं। जैसे - फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक एप्लायंसेज आदि।
दुनिया में लगभग हर कोई अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में फ़ास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहा है। यह किराना, सुपरमार्केट आदि में छोटे स्केल पर ग्राहकों द्वारा खरीदे जाने वाले प्रोडक्ट्स हैं। जैसे - दूध, फल, सब्जियाँ, दवाएं जैसे एस्पिरिन आदि। ग्राहकों द्वारा किया जाने वाला आधे से भी ज़्यादा खर्च इन एफएमसीजी उत्पादों पर होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था का चौथा सबसे बड़ा सेक्टर है एफएमसीजी सेक्टर। घरेलु और व्यक्तिगत देखभाल के उत्पाद इस इंडस्ट्री की सेल का 50 प्रतिशत बनाते हैं, स्वास्थ्य उत्पादों का योगदान 31-32 प्रतिशत है वहीं बाकी का बचा हुआ 18-19 प्रतिशत खान-पान के उत्पादों से आता है।
भारत में एफएमसीजी का इतिहास :
सं 1950 और 1980 के बीच एफएमसीजी सेक्टर में काफी सीमित निवेश किया गया था। स्थानीय लोगों की खरीदने की क्षमता कम थी, जिसके कारण वे प्रीमियम प्रोडक्ट्स न लेकर सिर्फ ज़रूरत का ही कुछ सामान खरीदते थे। भारतीय सरकार लोकल दुकानदारों को सपोर्ट करना चाहती थी। हालाँकि 1980 और 1990 के बीच, लोगों के बीच वैरायटी की मांग होने लगी जिसने एफएमसीजी कंपनियों को अपने उत्पादों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
एफएमसीजी कंपनियों को बढ़ावा मिलने लगा और कई नयी कंपनियों ने भी इंडस्ट्री में कदम रखा। मीडिया इंडस्ट्री भी उसी समय उभर रही थी, जिसकी वजह से कंपनियों को अपने बिज़नेस को और लाभकारी बनाने के बेहतर मौके मिले। 1991 में भारत में वैश्वीकरण और उदारीकरण होने से पहले स्थानीय ग्राहकों के लिए विदेशी कपड़ा और विदेशी खानपान उपलब्ध नहीं था। आम आदमी को ब्रांड की पहचान तक नहीं थी। 1991 के बाद, एफएमसीजी इंडस्ट्री अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों से प्रभावित हुई और धीरे-धीरे विदेशी एफएमसीजी कंपनियों को भी भारत में एंट्री मिली।
एफएमसीजी प्रोडक्ट्स के प्रकार :
प्रोसेस्ड फ़ूड - दूध, दही, मक्खन, अनाज आदि के प्रोडक्ट्स, पका हुआ पास्ता आदि।
प्रिपेयर्ड फ़ूड - 'रेडी टू ईट' खाद्य पदार्थ आदि।
पेय-पदार्थ - बोतलबंद पानी, एनर्जी ड्रिंक ,जूस आदि।
बेक किए हुए प्रोडक्ट्स - कूकीज , ब्रेड ,बिस्कुट आदि।
फ्रेश, फ्रोज़ेन और शुष्क पदार्थ - फ्रूट्स, सब्जी ,ड्राई फ्रूट आदि।
दवाएं - बिना पर्चे के ली जाने वाली दवाएं जैसे एस्पिरिन,पेनकिलर आदि ।
साफ़ सफाई के आइटम - दरवाज़े, खिड़की, फर्श आदि साफ़ करने वाले उत्पाद।
सौंदर्य प्रसाधन - हेयर केयर, कंसीलर, टूथपेस्ट, साबुन आदि।
ऑफिस सप्लाई - पेन, पेंसिल मार्कर आदि।
एफएमसीजी इंडस्ट्री और निवेश :
एफएमसीजी उत्पादों की कम समय में अधिक बिक्री होने के कारण यह मार्किट न सिर्फ बड़ा है, बल्कि काफी प्रतियोगी भी है। विश्व की बड़ी कंपनियां जैसे टाइसन फूड्स, कोका कोला, यूनीलेवर, प्रॉक्टर एंड गैंबल आदि के बीच इस इंडस्ट्री में मार्किट शेयर के लिए प्रतिस्पर्धा रहती है। यह कंपनियां ग्राहकों को अपनी और खींचने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए प्रोडक्ट पैकेजिंग उत्पादन प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है। एफएमसीजी को कंज़्यूमर पैकेज्ड गुड्स भी कहा जाता है। कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए अमूमन रसद और वितरण प्रणाली में कई स्तरों पर पैकेजिंग की आवश्यकता पड़ती है। यूनिट पैक, यानी उत्पाद की वो पैकेजिंग जिसमें वह ग्राहक को बेचा जाता है ,उत्पाद सुरक्षा और शेल्फ लाइफ के लिए काफी ज़रूरी है। साथ ही यूनिट पैक पर दी गयी जानकारी ग्राहकों को सही प्रोडक्ट चुनने में मदद भी करती है ।एफएमसीजी बड़ी मात्रा में बेचे जाते हैं इसलिए ये राजस्व के एक विश्वसनीय स्रोत हैं। अधिक बिक्री से होने वाला मुनाफा इसके हर एक सेल पर कम प्रॉफिट मार्जिन के नुकसान को भी छिपा लेता है। अगर इन्हें इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखा जाए तो कम ग्रोथ के साथ भी यह एक सुरक्षित सौदा है जिसमें उम्मीद के मुताबिक़ फायदे ,स्थिर रिटर्न और नियमित लाभांश हैं।
फायदे और नुकसान :
भारतीय एफएमसीजी इंडस्ट्री बड़े पैमाने पर लोगों को रोज़गार के मौके देती है। वर्तमान में 3 मिलियन से भी अधिक लोगों इस सेक्टर में काम कर रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। डिपार्टमेंटल स्टोर, किराना स्टोर और सुपरमार्केट ऐसी जगहें हैं जहाँ से उपभोक्ता अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज़रूरी सामान खरीदते हैं। इक्कीसवीं सदी में लोग घरेलु सामानों में भी विविधता चाहते हैं परन्तु उन्हें खरीदने के लिए ज़्यादा ट्रेवल नहीं करना चाहते, इसलिए सुपरमार्केट् ग्राहकों को उन्हीं के आसपास में कई प्रकार के सामान उपलब्ध कराते हैं। यह उन ग्राहकों के लिए काफी सुविधाजनक साबित हो रहा है। रिलायंस रिटेल, बिग बाज़ार, इजी डे, स्पेंसर, स्टार बाजार, हाइपर सिटी आदि कुछ ऐसे ही सुपरमार्केट हैं। सुपरमार्केट्स काफी प्रॉफिट देते हैं हालाँकि, इन सब के बीच, लोकल किराना स्टोर्स अधिक वैरायटी न दे पाने के कारण नुकसान उठा रहे हैं।
एफएमसीजी और ई-कॉमर्स :
वहीं एक कदम आगे बढ़ते हुए आज दुनियाभर के ग्राहकों का रुझान ऑनलाइन स्टोर्स के प्रति देखने को मिला है। इसकी वजह हैं घर पर डिलीवरी, ज़्यादा विकल्प, कम दाम जैसी सुविधाएं जो ऑफलाइन दुकानें उन्हें नहीं दे पा रही हैं।
ई-कॉमर्स केटेगरी में फिलहाल सबसे पॉपुलर हैं गैर-उपभोज्य टिकाऊ (नॉन कंज़्यूमेबल ड्यूरेबल) वस्तुएं। हालाँकि जैसे-जैसे कंपनियां अपने डिलीवरी सिस्टम में सुधार कर उसे पहले से बेहतर और तेज़ बना रही हैं ,किराना और अन्य उपभोज्य (कंज़्यूमेबल) प्रोडक्ट्स का ऑनलाइन मार्केट भी अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है और लोग एफएमसीजी खरीदने के लिए भी अब ई-कॉमर्स चैनल का इस्तेमाल करने लगे हैं।
एफएमसीजी इंडस्ट्री से क्या हैं उम्मीदें?
दुनिया भर के एफएमसीजी बाज़ारों की अपेक्षा भारतीय एफएमसीजी सेक्टर अभी भी सही तरह से उभर नहीं पाया है और काफी परम्परागत है। हालाँकि बढ़ते शहरीकरण और ग्राहकों की बढ़ती इनकम के साथ इस सेक्टर में अभी बढ़त के काफी स्कोप हैं। देश के नयी सदी के उपभोक्ताओं के सेवन स्वभाव के कारण मार्केट में एक व्यावहारिक बदलाव आया है। आसार हैं कि साल 2030 तक भारतीय ग्राहकों में सामान खरीदने को लेकर प्राथमिकताएं बदल चुकी होंगी। नए ज़माने के ग्राहक आज अधिक जागरूक हैं ,उन्हें अपने स्वास्थ्य और पोषण की अधिक चिंता है और साथ ही उनके पास खर्च करने की क्षमता भी अधिक है। इन्हीं बदलावों के कारण मौजूदा समय में एफएमसीजी सेक्टर के अंतर्गत ही एक नए सेक्टर ने जन्म लिया है जो लोगों को केमिकल और प्रदूषण रहित जीवन देने का दावा कर रहा है जैसे एयर और वाटर प्यूरीफायर, आर्गेनिक फ़ूड आदि। इस तरह के ट्रेंड एफएमसीजी सेक्टर को और अधिक विस्तार देंगे।
परम्परागत एफएमसीजी सेक्टर में बढ़त और आज से पहले नदारद इन नए सब-सेक्टर्स के उत्थान के साथ भविष्य में इस इंडस्ट्री का फ्यूचर ब्राइट दिखता है इसलिए निवेशकों के लिए एएफएमसीजी इंडस्ट्री एक अच्छी चॉइस हो सकती है।
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