GST क्या है? क्या हैं इसके फ़ायदे-नुक़सान? समझें आसान भाषा में

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GST क्या है? क्या हैं इसके फ़ायदे-नुक़सान? समझें आसान भाषा में

GST यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स। ये टैक्स तब लगता है जब हम किसी प्रोडक्ट या सर्विस को खरीदते हैं। इस तरह से जीएसटी हमारे ऊपर लगने वाला Indirect Tax है। साल 2017 में इस टैक्स को लागू किया गया। उसके पहले सेल्स टैक्स, एक्साइज टैक्स, सर्विस टैक्स जैसे कई तरह के टैक्स लिए जाते थे लेकिन अब जीएसटी में तमाम तरह के टैक्स को शामिल कर दिया गया है। Tax System का हिस्सा होने के कारण सामान्य कारोबारी और Common Man इससे जुड़ तो रहे हैं, पर इसका फंडा अब भी उनके लिए बहुत आसान नहीं है।

जीएसटी (GST) क्या है?

जीएसटी का Full Form है Goods And Services Tax। हिन्दी में इसे वस्तु एवं सेवा कर कहा जाता है। इसके नाम से ही साफ होता है कि इस टैक्स को माल और सर्विस पर लगाया जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि किसी भी एक समान पर इसका Rate पूरे देश में एक जैसा होगा। यानी देश के किसी भी कोने में मौजूद Consumer को उस वस्तु पर एक बराबर Tax चुकाना पड़ेगा।

पहले के सिस्टम में क्या थी गड़बड़ी?

पुरानी व्यवस्था में टैक्सों का मकड़जाल बहुत गहरे तक फैला था। उदाहरण के लिए जैसे ही माल Factory से निकलता था, सबसे पहले उस पर लगता था उत्पाद शुल्क यानी Excise Duty । कई बार कई सामानों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क यानी Additional Excise Duty भी लगता था। यही माल अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में जा रहा है तो राज्य में घुसते ही Entry Tax लगना था। इसके बाद जगह-जगह चुंगियां अलग से।जब माल बिकने की बारी आई तो Sales Tax  यानी VAT की मार। कई मामलों में Purchase Tax भी लगता था। सामान अगर विलासिता से जुड़ा है तो Luxury Tax  अलग से। होटलों या रेस्टोरेंट आदि में वह सामान उपलब्ध कराया जा रहा हो तो Service Tax अलग से। मतलब यह कि Consumer के हाथों में पहुंचने से पहले सामान या सेवा कई स्टेजों पर कई Duties या Taxes से होकर गुजरती थी। इस तरह किसी सामान या सेवा के कस्टमर के हाथों में पहुंचने तक, कई चरणों में अलग-अलग रेट के कई टैक्स लग जाते थे और यही वह कारण है जिसके चलते जीएसटी लाने की स्थिति बनीं।

दरअसल Indian Constitution में Indirect Taxes संबंधी जो पुराने नियम थे, उनमें वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है। जबकि,वस्तुओं की बिक्री पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है।सबने अपने-अपने हिसाब से नियम बना डाले और श्रेणियां तय कर दीं। इसी चक्कर में एक-एक सामान पर कई-कई Tax और कभी-कभी टैक्स के उपर Tax के हालात भी बन गए। छोटे व्यापारी और कंपनियां अक्सर इन नियम कानूनों में उलझ जातीं थी।इन परिस्थितियों को दूर करने के लिए जीएसटी को ऐसे एकीकृत कानून के रूप में लाया गया है, ​जो माल एवं सेवा दोनों के Production से लेकर Sale तक पर लगाया जा सके।प्रोडक्शन और Sale का अलग-अलग पेंच खत्म करने के ​लिए जीएसटी का सिर्फ एक आधार तय कर दिया गया और वह है सप्लाई। इसके लिए बाकायदा Tax कानूनों में बदलाव किया गया। संसद में बाकायदा संविधान संशोधन की प्रक्रिया अपनाई गई। जिसके कारण GST कानून पारित होने में इतना लंबा समय लग गया था।

GST ke बड़े फ़ीचर्ज़ | Major Features of GST

मैन्यूफैक्चरिंग के बजाय उपभोग पर टैक्स

GST  टैक्स वस्तु और सेवा का इस्तेमाल करने वाले को देना पड़ता है। हालांकि इसकी वसूली की जिम्मेदारी सामान या service देने वाले पर होती है। मतलब ये कि दुकानदार जब कोई सामान देगा तो उसमें GST को अलग से लिखकर बताएगा। जो भी खरीदार होगा उसे जीएसटी को मिलाकर पूरा पैसा देना होगा। service tax के मामले में आपने ऐसा ही देखा होगा। मोबाइल के बिल में साफ-साफ service tax अलग से लिखा होता है लेकिन सर्विस टैक्स को छोड़ तमाम दूसरे मामलों में खरीदार को पता ही नहीं होता था कि किसी product में कितने tax लगे हैं। अब आपको पता है कि किसी प्रोडक्ट पर कुल कितना टैक्स लगा है। सरकार ने सबकी दरें पहले से तय कर दी है।

टैक्स क्रेडिट सिस्टम

किसी सामान के निर्माण से लेकर कंज्यूमर तक पहुंचने में पूरी चेन शामिल होती है। सामान कई बार खरीदा बेचा जाता है। अब GST के नियमों के मुताबिक सप्लाई चेन में हर खरीद बिक्री पर तय टैक्स देना होगा। तो क्या हर स्तर पर टैक्स लगने से चीजें बहुत महंगी हो जाएंगी? जरूर महंगी हो जातीं, अगर Tax Credit System नहीं होता। इस सिस्टम में सप्लाई चेन का हर अगला खरीदार अपने से पहले वाले विक्रेता के द्वारा दिए गए टैक्स के वापस पा जाता है।

जीएसटी सिस्टम में, आ​खिरी स्टेज पर टैक्स लगने से पहले जहां-जहां Tax जमा किया गया है, उसको वापस पाने की भी व्यवस्था है। अगर आप अंतिम या वास्त​विक Consumer नहीं हैं और पहले के किसी Stage में आपने जीएसटी जमा किया है तो यह आपके खाते में वापस हो जाएगा। हर महीने GST रिटर्न भरने के दौरान आप Tax Credit System के माध्यम से अपना जीएसटी एडजस्ट करा सकते हैं। ये Tax Credit System क्या है, इसको अलग से हमने Example के साथ नीचे समझाया है।

टैक्स पर टैक्स नहीं चढ़ेगा | No Cascading Of Taxes

पहले के सिस्टम में न सिर्फ कई अलग-अलग Tax लगते थे, अक्सर टैक्स के ऊपर Tax  भी लग जाते थे। क्योंकि बहुत सी वस्तुएं या सेवाएं दो या दो से अधिक तरह की  Categories में आ जाते थे। अब ऐसा नहीं होगा। क्योंकि अब जीएसटी अंतिम रूप से Consumer को ही अदा करना है। बीच में अगर किसी ने Deposit किया है तो उसका पैसा टैक्स क्रेडिट सिस्टम से वापस यानी Adjust हो जाता है। लेकिन अब सवाल आता है कि टैक्स क्रेडिट मिलेगा कैसे? यहां हम देखते हैं कि माल की खरीदारी के क्रम में GST तो सबने अदा किया। पहले Whole-Saler ने, फिर Retailer ने और फिर Consumer ने। तो फिर जो पहले बताया गया कि सिर्फ Consumer जीएसटी अदा करेगा, उसका क्या फंडा है? आइए समझते हैं। दरअसल Whole-Saler और Retailer ने अपनी बारी में जो GST जमा किया था, उसे वो आगे चलकर Tax Credit के माध्यम से सरकार से वापस पा सकते हैं। जीएसटी का Monthly Return भरते समय वे इसे अपने उपर बन रही देनदारी में Adjust करा सकते हैं।

ये जो टैक्स के Adjust होने की प्रक्रिया है इसे ही जीएसटी में Tax Credit System नाम दिया गया है। इस Tax Credit की व्यवस्था का फायदा बीच के स्टेजों में आने वाले व्यवसायी तभी उठा पाएंगे, जब उनके पास उन स्टेजों पर की गई बिक्री की रसीद हों। क्योंकि जो खरीदार होगा, उसकी भी रसीदें सरकार के पास Online मौजूद होंगी और जिसने बेचा है उसकी भी। जब दोनों स्तर की रसीदों का मिलान सही होगा, तभी उन बीच वाले व्यवसायियों को Tax Credit का फायदा मिल सकेगा।

पूरी तरह से ऑनलाइन सिस्टम | Complete Online System

जीएसटी में Self Monitoring पर विशेष जोर दिया गया है। सारे सौदों की जानकारी Online अपडेट रखनी है। हर सौदे की रसीद लेने वाले और देने वाले, दोनों के पास रहनी है। दोनों  अपनी-अपनी रसीदों के माध्यम से Tax Credit पा सकेंगे। कहीं भी सौदों का ​मिलान न हुआ तो Online ही गड़बड़ी पकड जानी है। सौदों में GST जमा होने की ​जिम्मेदारी हर स्टेज पर उपर वाले कारोबारी की होने से Tax की चेन नहीं टूट पाएगी क्योंकि कोई भी कारोबारी अपने Tax Credit का नुकसान नहीं चाहेगा।

टैक्स रेट पर मनमानी नहीं

पहले राज्य सरकारें अपने यहां ​बिकने वाले किसी भी सामान पर अपनी मनमर्जी से Tax लगा देती थीं। इसका Rate भी अपना-अपना रखती थीं। अब ऐसा नहीं हो सकेगा। GST के प्रावधानों में या रेट में किसी तरह के Changes के लिए GST Council बनाई गई है। इसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे और राज्यों के वित्त मंत्री इसके सदस्य होंगे।

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