एफडीआई यानी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट जिसे अगर शुद्ध हिंदी में कहें तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। सरल भाषा में, एफडीआई वह पूँजी है जो कोई भी देश किसी दूसरे देश की कंपनी में लगाता है। उदाहरण के तौर पर यदि रिलायंस कंपनी में विदेश की माइक्रोसॉफ्ट कंपनी अपनी पूँजी लगाती है तो इसे भारत में एफडीआई आना कहा जाएगा। इस निवेश से निवेशक को उस कम्पनी के प्रबंधन में हिस्सा मिल जाता है। एफडीआई की श्रेणी में आने के लिए यह हिस्सा 10 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। भारत में निवेश करने के दो मार्ग हैं - स्वचालित मार्ग, जिसके लिए किसी भी सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है, और सरकारी मार्ग, जिसके लिए अधिकारियों की अनुमति की आवश्यकता होती है। एफडीआई किसी भी देश के के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में एफडीआई, 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा फेमा के तहत लाया गया था। भारत जैसे देश के लिए एफडीआई एक ऐसी आर्थिक मदद की तरह है जो देश को किसी ऋण में न बांधते हुए ,तरक्की के नए आयाम खोलती है। एफडीआई में पूंजी से हमारा मतलब केवल पैसे से न होकर कौशल, प्रक्रिया, प्रबंधन, प्रौद्योगिकी आदि से भी है। भारत एक विकासशील देश है, जब कोई भी अन्य देश अपनी पूँजी यहाँ निवेश करता है , तो वह न सिर्फ देश की तरक्की में आर्थिक सहयोग देता है , बल्कि अपने निवेश के साथ वह देश में नयी तकनीकें और रोज़गार भी लाता है। विदेशी कंपनियों को भारत में कम वेतन में ज़्यादा काम मिल रहा है ,जिसके चलते वे भारत में निवेश करने की नयी संभावनाएं तलाश रही हैं। साथ ही निवेश में सरकार द्वारा दिए जा रहे विशेषाधिकार भी विदेशी निवेशकों को लुभा रहे हैं।आज की तारीख में भारत एफडीआई के लिए निवेशकों का पसंदीदा बन गया है। दूरसंचार, निर्माण-कार्य, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर आदि ऐसे सेक्टर हैं जो विदेशी निवेशकों को काफी आकर्षित कर रहे हैं ।भारत की उदार एफडीआई नीति, सरकार द्वारा केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर किए गए संरचनात्मक सुधार, और तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार उन कई कारणों में से हैं, जो भारत को एफडीआई के लिए अन्य देशों के मुकाबले अधिक आकर्षक बनाता है।
हाल के वर्षों में सरकार ने रक्षा, पीएसयू तेल रिफाइनरियों, दूरसंचार, पावर एक्सचेंज, और स्टॉक एक्सचेंज जैसे कई क्षेत्रों में एफडीआई मानदंडों को ढील देने की पहले की हैं।
इमर्जिंग मार्केट प्राइवेट इक्विटी एसोसिएशन (ईएमपीईए) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार आने वाले 12 महीनों में भारत वैश्विक भागीदारों (जीपी) के लिए सबसे आकर्षक बाजार बनकर उभरेगा।
एफडीआई से कितना निवेश?
आंकड़ों की मानें तो डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के अनुसार, अप्रैल 2000 से मार्च 2020 के बीच भारत में 469.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश एफडीआई के तहत किया गया, जो इस बात का प्रमाण हैं कि कारोबार को आसान बनाने और एफडीआई सम्बंधित मानदंडों में ढील देने के लिए जो प्रयास सरकार द्वारा किए गए, वे सफल रहे हैं।
भारत पिछले तीन वर्षों से लगातार अपनी रैंकिंग में 10 अंक से अधिक सुधार करने वाला एकमात्र देश बन गया है। इस कारण निवेशकों का भारत में विश्वास बढ़ा है और खुदरा बाजार के लिए भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ा है।
यही नहीं, भारत ने पिछले पांच वर्षों में ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में भी काफी सुधार किया है। यह रैंकिंग यह बताती है कि किसी भी देश में बिज़नेस करना कितना आसान है।
इन क्षेत्रों में एफडीआई
2019-20 में भारत में FDI इक्विटी प्रवाह 49.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। 2019-20 के आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक एफडीआई (7.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर) सेवा के क्षेत्र में रहा, इसके बाद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर क्षेत्र में (7.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर), दूरसंचार क्षेत्र (4.44 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और कारोबार के क्षेत्र में (4.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर) रहा।
यूनियन बैंक ऑफ़ स्विटज़रलैंड (यूबीएस) की रिपोर्ट के अनुसार अगले पांच वर्षों में देश में वार्षिक एफडीआई की आमद 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकती है।
अगर देशों की बात करे ,तो 2019-20 के दौरान, भारत को सिंगापुर (US $ 14.67 बिलियन) से अधिकतम FDI इक्विटी प्रवाह प्राप्त हुआ, उसके बाद लिस्ट में रहे मॉरीशस (US $ 8.24 बिलियन), नीदरलैंड (US $ 6.50 बिलियन), USA (यूएस $ 4.22 बिलियन) और जापान (US) $ 3.22 बिलियन)।
भारत की छवि
कोविड-19 के इस दौर में भारत द्वारा दिखाई गयी बेहतर प्रबंधन व्यवस्थाओं ने विश्व भर में भारत को एक ज़िम्मेदार और विश्वसनीय राष्ट्र के तौर पर उभारा है। वहीं दूसरी ओर चीन ने गलत सूचनाओं और अपनी अवसरवादी अधिग्रहण की नीति से अपनी छवि धूमिल की है। भारत के एचडीएफसी बैंक में चीन के निवेश से जो खतरे की घंटी बजी, उसी का नतीजा है की हाल ही में भारत ने अपनी एफडीआई पालिसी में संशोधन किये किये हैं । 22 अप्रैल 2020 को किए गए इस नए संशोधन के मुताबिक़ भारत की सीमा से लगे देशों को अब भारत में निवेश करने के लिए सरकार की मंज़ूरी लेना आवश्यक है। हालाँकि यह बांग्लादेश, भूटान, नेपाल आदि देशों को भी प्रभावित करेगा परन्तु सबसे अधिक प्रभाव इसका चीन पर पड़ेगा जो पिछले कुछ वर्षों में भारत में आक्रामक रूप से निवेश कर रहा है।
बीते दिनों, व्हाइट हाउस के आर्थिक सलाहकार, लैरी कुडलो ने कहा कि गूगल और फेसबुक जैसे अमेरिकी टेक दिग्गज भारत में बड़े निवेश की घोषणा कर रहे हैं, यह दर्शाता है कि लोग चीन पर भरोसा खो रहे हैं और भारत निवेश के क्षेत्र में एक बड़े प्रतियोगी के रूप में उभर रहा है।
क्या एफडीआई से आसान हुई मुश्किलें?
देश के खुदरा व्यापारियों की बात करें तो एफडीआई से उनकी मुश्किलें भी आसान की जा सकती हैं। ई-कॉमर्स से कम्पटीशन, नई टेक्नोलॉजी, जागरूकता आदि की कमी से यह रीटेल सेक्टर पिछड़ रहा था। एफडीआई इन समस्याओं में इन व्यापारियों की मदद कर सकता है। बिज़नेस में पूँजी लगाने से लेकर आधुनिक टेक्नोलॉजी लगाने तक का सफर एफडीआई की मदद से बेहतर तरीके से संभव हो सकता है।
भारत में एफडीआई के नियमित प्रवाह से देश के रीटेल सेक्टर में तेज़ी आयी है। तेज़ी से बढ़ते विदेशी निवेश के साथ देश के संगठित रीटेल शेयर के भाव बढ़ने की उम्मीद है। यह अर्थव्यवस्था में उपभोग के माध्यम से आने वाली बढ़त में योगदान देगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, बड़े शहरों में लगभग 70 % किराना स्टोर्स लेटेस्ट टेक्नोलॉजी अपने बिज़नेस में लगाना चाहते हैं। वहीँ टियर-2 शहरों के भी लगभग 37 % दुकानदार टेक्नोलॉजी के इस युग में पीछे नहीं रहना चाहते हैं।
जो निवेशक खुदरा बाजार यानि रीटेल मार्किट में अपना पैसा लगाना चाहते हैं, उनके लिए भारत बेहद आकर्षक है क्योंकि भारत आने वाले समय में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खुदरा बाजार होगा। पारम्परिक रीटेल मार्किट में वैश्विक ब्रांड्स की एंट्री से स्थानीय बाज़ारों को निवेश के लिए पूँजी, नयी टेक्नोलॉजी, और बुनियादी ढांचे आदि में मदद मिली है। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में खुदरा व्यापारियों के लिए एक स्थायी मॉडल लाने में एफडीआई का सहयोग अहम हो सकता है ।फिलहाल भारत सरकार अगले दो वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
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