कैसा रहा जीएसटी का रियल इस्टेट पर असर?

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कैसा रहा जीएसटी का रियल इस्टेट पर असर?

GST और रियल इस्टेट

भारत में टैक्स की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लाया गया है। जीएसटी लागू होने के बाद भी काफी समस्याएं बानी हुई है जिस पर जीएसटी परिषद् ने नजर बनाये राखी हुई है व उसमे संसोधन करते जा रही है। वहीँ अगर बात करें रियल एस्टेट की तो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने इसकी दशा को सुधरने में मदद की है और व्यापारिक लेनदेन को आसान बनाया है। लेकिन घर खरीदने पर कीमतों में कोई गिरावट नहीं है ना ही इसके कुल लागत में कमी आयी है, वहीँ कुछ मामलों में तो बढ़ गयी है। इसका एक कारण यह भी है की जीएसटी आने के पहले घर खरीदने वालों को एक औसत कर 6 फीसदी ही देना होता था लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद से निर्माणाधीन मकान या संपत्ति पर सरकार ने इसे 12% कर के स्लैब में रखा था। वैसे तो रियल एस्टेट डेवलपर्स को निर्माण सामग्री की खरीद में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) मिल जाता है लेकिन कर राहत के मामले में यह मामूली ही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का रियल एस्टेट सेक्टर बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है। क्योंकि रोजगार के नजरिये से देखें तो यह रोजगार सृजन करता है। कृषि के बाद अगर कोई सेक्टर है तो वो रियल एस्टेट ही है क्योंकि यह 300 से भी अधिक सहायक उद्योगों की डिमांड को पूरा करता है और 5 से 6% जीडीपी में योगदान भी देता है। जीएसटी आने से इसमें पारदर्शिता आ गयी है वहीँ ब्लैक मनी से संपत्ति खरीदने पर रोक लगी है क्योंकि सारे काम ऑनलाइन हो रहे हैं और नकदी लेना मन कर दिया गया है। पहले ठेकेदारों और उत्पाद शुल्क, प्रवेश कर, जकात (LBT) से वसूल किये गए वैट और सर्विस टैक्स पर भुगतान करना होता था। अब सभी कर को हटा दिया गया है जिससे डेवलपर/ठेकेदार के पास ज्यादा मार्जिन बच रहा है।

सीमेंट जिसपे कर 25 - 30% तक लगता है उस पर अब 18% लग रहा है वही लोहे की छड़ यानि सरिया जिसकी कर दर 19.5% थी अब घाट कर 18% रह गयी है। इमारतों या घर के निर्माण में लगने वाले अन्य वस्तुएं जैसे स्मारक पत्थर, कांच, एल्युमीनियम, लैंप और फिटिंग टैक्स भी 18% में आ गये हैं जो पहले 26% था।

रियल एस्टेट में निर्माणाधीन मकान पर लगने वाले 12% जीएसटी को काम कर 5% और किफायती मकानों पर 8% से घटाकर जीएसटी 1% कर दिया है। यह फैसला जीएसटी परिषद् ने 24 फरवरी 2019 को लिया जिसका अनुपालन 1 अप्रैल 2019 से लागू हुआ। इसके अलावा ठेकेदार को कच्चे माल एवं सेवाओं पर मिलने वाला आईटीसी भी खत्म कर दिया गया है।


जीएसटी परिषद के नए संसोधन के अनुसार यदि कोई रियल-एस्टेट प्रोजेक्ट पहले से ही निर्माणाधीन है (या) जहां वास्तविक बुकिंग 31 मार्च, 2019 से पहले की जा चुकी है तो बिल्डर निम्न प्रकार से जीएसटी कर भर सकता है।

  • महंगे परियोजनाओं पर बिल्डर पुराने जीएसटी दर @ 12% (इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ) या नए जीएसटी दर 5% दोनों में से कोई भी एक कर भर सकता था।
  • सस्ती परियोजनाओं पर बिल्डर पुराने जीएसटी दर @ 8% (आईटीआर के साथ) या नई संशोधित जीएसटी दर @ 1% के साथ भर सकता था।

यह केवल एक निश्चित समय सीमा के लिए था अब नए संसोधन सब पर लागू हो चुके हैं तो सभी बिल्डर को नए जीएसटी दरों के अनुरूप ही भरना होगा। नई GST दरें 1 अप्रैल, 2019 को या उसके बाद शुरू होने वाली परियोजनाओं के लिए हैं। 20 मई 2019 तक जिन बिल्डर ने विकल्प का प्रयोग नहीं किया है उन्हें भी नए जीएसटी के अनुसार ही कर लिया गया है।

रियल-एस्टेट पर जीएसटी की प्रयोज्यता

  • जिन निर्माणाधीन संपत्ति या रेडी-टू-मूव फ्लैट्स के लिए बिक्री के समय पूर्णता प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया उनके भुगतान पर नयी जीएसटी दरें लागू हैं। अगर संपत्ति को पुनः बेचा जाता है तब जीएसटी वापस से लागू नहीं होगा।
  • क्रेडिट लिंक्ड बचत योजना के माध्यम से ख़रीदे गए निर्माणाधीन संपत्ति को सरकार द्वारा 'किफायती आवास' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • जीएसटी को विकास अधिकार (संयुक्त विकास समझौता), दीर्घकालिक पट्टा, एफएसआई आदि पर छूट देता है।

रियल एस्टेट संशोधन जीएसटी:

  • बिल्डर अधिक GST चार्ज नहीं कर सकता पीएलसी (अधिमान्य स्थान), पार्किंग आदि जैसी सेवाओं के लिए। यह सेवा "समग्र निर्माण सेवा" में ही माना जायेगा और निर्माण के रूप में एक ही लेवी मान्य होगा। (इसे 04 मई 2019 को अपडेट किया गया)
  • अगर घर खरीददार ने वित्त वर्ष 2018-19 में फ्लैट बुक किया है और उसे रद्द करता है उस घर खरीदारों द्वारा भुगतान किया गया जीएसटी बिल्डर को वापस करना होगा। और रियल-एस्टेट डेवलपर ऐसे रिफंड के लिए क्रेडिट समायोजन का लाभ उठाने में सक्षम होगा। (इसे अपडेट किया गया: 08-May-2019)
  • गृह खरीदारों को 31 मार्च 2019 तक आवास परियोजना को पूर्णता प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है, तो बिल्डर के कारण शेष राशि पर 12% या 8% जीएसटी (1 अप्रैल, 2019 से पहले की दरें) का भुगतान करना होगा। (इसे मई -2019 में अपडेट किया गया है)
  • यदि फ्लैट की कीमत 7,500 रुपये से अधिक है, तो फ्लैट मालिकों को 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी चुकाना होगा। नियमानुसार, यदि भुगतान प्रति माह 7,500 रुपये से अधिक है और सेवाओं और वस्तुओं की आपूर्ति के माध्यम से आरडब्ल्यूए का वार्षिक कारोबार 20 लाख रुपये से अधिक है तो आरडब्ल्यूए को मासिक सदस्यता / अंशदान पर जीएसटी लगेगा। (23-जुलाई-2019 को अपडेट किया गया)
  • यदि सदस्य प्रति माह 7,500 रुपये से अधिक देता है, तो पूरी राशि पर कर देना होगा। उदाहरण के लिए, यदि रखरखाव शुल्क प्रति सदस्य प्रति माह 9,000 रुपये है, तो GST 18 प्रतिशत पूरी राशि पर 9,000 रुपये देय होगा और न कि 9,000 रुपये (7,500 रुपये) = 1,500 रुपये।
  • यदि कोई व्यक्ति जो आवास सोसायटी या आवासीय परिसर में दो या अधिक फ्लैटों का मालिक है, तो उसके स्वामित्व वाले प्रत्येक आवासीय अपार्टमेंट के लिए प्रति सदस्य प्रति माह 7500 रुपये की छत अलग से कर लिया जायेगा।

दो श्रेणियों में किफायती आवास को विभाजित किया गया है:

  • छोटे और मंझोले शहरों में 90 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र की संपत्ति इस श्रेणी में आएगी।
  • महानगर या गैर-महानगर क्षेत्रों में 45 लाख रुपये तक के लागत वाले 60 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र की संपत्ति इस श्रेणी में आएगी।

क्या स्टांप ड्यूटी देनी होगी?

राज्य द्वारा और म्युनिसिपल द्वारा प्रॉपर्टी टैक्स वसूले जाने के कारण जीएसटी के दायरे से स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज को बाहर रखा गया है।

क्या रियल एस्टेट और खरीददारों को जीएसटी से फायदा होगा?

जी हाँ, जीएसटी के अंतर्गत रियल एस्टेट को लाने से घर खरीदने वाले ग्राहकों को फायदा होगा क्योंकि ग्राहक को केवल एक टैक्स चुकाना होगा पूरे उत्पाद पर। वहीँ जीएसटी का स्लैब 12 फीसदी होने बिल्डर व ग्राहक दोनों को हानि थी जिसके कारण इसे संसोधन कर 5 फीसदी कर दिया गया है।

निष्कर्ष - रियल एस्टेट के बिल्डर से बात करने पर सबकी अलग अलग राय आ रही है जहाँ कुछ लोग इसे नकारात्मक बता रहे हैं वहीँ कई लोगों का मानना है की इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। ग्राहक इसमें इन्वेस्ट कर रहा है साथ ही लागत में कमी आने से मुनाफा भी हो रहा है।

रियल एस्टेट को जीएसटी से काफी लाभ हो रहा है क्योंकि इससे बहुत ज्यादा पारदर्शिता और जवाबदेही आ गयी है। ठेकेदार और डेवेलपर्स को करों में छुटकारा मिलने से इनपुट क्रेडिट का लाभ भी मिल रहा है।

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