स्टेप्स, लागत एवं अन्य टिप्स
भारत में मेडिकल सप्लाई का बहुत बड़ा कारोबार है। भारत में बनी दवाइयां और मेडिकल उपकरण केवल भारत में हीं नहीं इस्तेमाल होते हैं बल्कि उन्हेंं विदेशों में भी भेजा जाता है। भारत की बनी दवाइयों की विदेशों में बहुत बड़ी मांग है। भारत प्रतिवर्ष ढाई करोड़ अमेरिकी डॉलर की दवाएं केवल अमेरिका को ही निर्यात करता है। भारत की दवाइयों की डिमांड का ताजा उदाहरण हाल ही में कोविड-19 वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बनाई गई भारतीय वैक्सीन का है। यह वैक्सीन विश्व के लगभग 65 देशों में सप्लाई की गई है। यह बात अलग है कि सरकार ने इस वैक्सीन डोज को सीमित संख्या में निशुल्क इन देशों को भेजा है लेकिन सरकार की ओर से जितनी डोज भेजी गयीं हैं, वो उनकी जरूरत का 10 प्रतिशत है। यानी उन देशों को अभी इस तरह की भारतीय वैक्सीन 90 परसेंट डिमांड और है। भारतीय वैक्सीन का रिजल्ट अच्छा आ रहा है। इसलिये इन देशों द्वारा बाकी के 90 प्रतिशत वैक्सीन की डिमांड भारत से आ रही है। जिससे भारत के मैन्यूफैक्चरर्स और होलसेल सप्लायर्स को अच्छा खासा बिजनेस मिल जायेगा। इसके अलावा भारत में बनने वाली अनेकों दवाइयोंं का बड़े पैमाने पर विदेशों को निर्यात होता है। साथ ही हमारे ही देश में भी दवाइयों की भारी खपत होती है।
स्टेप-1: बहुत बड़ा मार्केट है भारत
चूंकि भारत विश्व का दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। यहां की आबादी को देखते हुए मेडिकल सप्लाई का काम बहुत ही बड़ा है। दवाइयों और मेडिकल उपकरणों के उत्पादन में भारत का विश्व के मेडिकल इंडस्ट्री में 13 वां स्थान है। ये आंकड़े बताते हंैं कि भारत का फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में कितना बड़ा मार्केट है। इसके अलावा विश्व के अनेक देशों में भारत के ही विशेषज्ञ डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनसे भारत के कारोबारियों को बहुत बड़ा बिजनेस मिलता है। इन सबको देखते हुए इस बिजनेस में काफी अच्छी संभावनाएं दिखतीं हैं। ये बिजनेस फायदे वाला है। वैसे तो हर बिजनेस में थोड़ा बहुत उधार चलता है लेकिन इस बिजनेस की खास बात है कि यह बिजनेस कैश पर चलता है। यहां मैन्यूफैक्चरर्स से लेकर होलसेलर्स तक इस बिजनेस में एक खास ट्रिक अपनाते हैं, वो यह है कि जो रिटेलर्स लेन-देन में अच्छा नहीं होता है। उनको वो दवाएं नहीं देते हैं जो महंगी होती है। ऐसे दुकानदारों के लिए महंगी दवाओं की शार्टेज यानी कमी हमेशा बनी रहती है, होलसेलर्स यही कह कर उनसे पल्ला झाड़ लेते हैं। जो नकद या कम समय में पैसे का भुगतान कर देता है। उनको सारी दवाइयां मिल जातीं हैं। उनको आॅफर भी मिलते रहते हैं।
स्टेप-2: इस तरह शुरू करें बिजनेस
मेडिकल सप्लाई का होलसेल बिजनेस कैसे शुरू किया जाये? इस सवाल का जवाब यह है कि यह बिजनेस आम बिजनेस से थोड़ा हटकर है। यह बिजनेस आम आदमी की जिन्दगी-मौत से जुड़ा होता है। इसलिये बिजनेस मैन के लिए सरकार और मेडिकल क्षेत्र ने कुछ खास योग्यताएं और दिशानिर्देश निर्धारित कर रखें है। मेडिकल का होलसेल बिजनेस शुरू करने के लिए उन निर्धारित योग्यताओं और शर्तों को पूरा करना होता है। वैसे यह बिजनेस अन्य होलसेल बिजनेस से सबसे अच्छा है। अच्छा मुनाफा देने वाला है। समाज में सम्मान भी दिलाने वाला है।
स्टेप-3: कई सरकारी नियम व शर्ते हैं इस बिजनेस के लिए
आइये जानते हैं कि मेडिकल का होलसेल बिजनेस शुरू करने से पहले आपको किन-किन शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है। भारत में द ड्रग्स एण्ड कास्मेटिक एक्ट,1940 (1945 में संशोधित) लागू है। इसके तहत भारत में दवाइयों के निर्माण करने, वितरण करने और आयात करने के लिए गाइडलाइन बनी हुई है। मेडिकल का बिजनेस शुरू करने के लिए आपको सेन्ट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आफ आर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) अथवा स्टेट ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल बॉडी यानी संस्था से फार्म-19 के तहत लाइसेंस लेन जरूरी होता है।
स्टेप-4: लाइसेंस के लिये योग्यताएं
1.मेडिकल होलसेल का बिजनेस शुरू करने वाले को कम से कम किसी भी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्था यानी एजूकेशन इंस्टीट्यूट अथवा किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से फार्मेसी में डिग्री या डिप्लोमा होना चाहिये।
2.मेडिकल के होलसेल बिजनेस करने वाले को दवाइयों के सप्लाई से जुड़े कारोबार में एक वर्ष का अनुभव भी होना चाहिये।
3. यदि आप स्वयं फार्मेसिस्ट नहीं हैं तो आपको एक रजिस्टर्ड फार्मेस्टि को फुल टाइम जॉब पर रखना होगा।
स्टेप-5: लाइसेंस कैसे बनवायें
1.निर्धारित फार्म में आपको सारी जानकारियां भर कर एक आवेदन देना होगा
2.इस आवेदन के साथ होलसेल बिजनेस मैन को अपना नाम, पद की जानकारी देते हुए अपने हस्ताक्षर करके होलसेल मेडिकल बिजनेस शुरू करने का उद्देश्य भी बताना होता है।
3.ड्रग लाइसेंस के लिए मांगी गई सरकारी फीस का चालान भर कर आवेदन के साथ जमा करना होता है।
4.आवेदन के साथ ही आपको निर्धारित फार्म में घोषणा पत्र यानी डिक्लेयरेशन फार्म भी जमा करना होता है।
5.आपको अपने परिसर में किये जाने वाले बिजनेस का मुख्य प्लान भी बताना होगा
6.अपने परिसर में किये जाने वाले अन्य कार्यों के लिए साइट प्लान भी बताना होगा
7.आपको अपने परिसर के अधिकार यानी मालिकाना हक या किरायेदारी के दस्तावेज भी देने होते हैं
8.यदि आप बिजनेस परिसर किराये पर ले रहे हैं तो उसके मालिक के मालिकाना हक के दस्तावेजी सबूत पेश करने होंगे
9.बिजनेस का संविधान (इनकारपोरेशन सर्टिफिकेट/एमओए/एओए/पार्टनरशिप डीड) भी देनी होगी।
10.ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट, 1940 के तहत प्रोप्राइटर/पार्टनर/डाइरेक्टर्स के फार्मासिस्ट न होने का शपथ पत्र देना होगा
11.रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट या सक्षम व्यक्ति को फुल टाइम नियुक्त करने का शपथ पत्र देना होगा।
12.यदि किसी कर्मचारी को नियुक्त करते हैं तो उस रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट या सक्षम व्यक्ति का नियुक्ति पत्र देना होगा।
लाइसेंस लेने के बाद आपकी कानूनी कार्रवाई यही पर पूरी नहीं होती है बल्कि सीडीएससीओ की निगरानी में ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया द्वारा नियुक्त फार्मेसी इंस्पेक्टर से नियमित रूप से निरीक्षण भी कराना होगा। इसमें दवाइयों की बिक्री, स्टोरेज व दवाइयों के डिस्प्ले आदि के मानकों को बनाये रखना होता है।
स्टेप-6: ये चार काम भी करने होंगे
लाइसेंस लेने की प्रक्रिया से तो आपको यह मालूम हो गया है कि आपको इस बिजनेस शुरू करने से पहले कौन-कौन से चार प्रमुख काम करने जरूरी होंगे।
1.पहला यह कि आप खुद फार्मेसिस्ट हैं तो अच्छा है वरना आपको एक फार्मेसिस्ट को नियुक्त करना होगा,उसके बिना काम नहीं शुरू हो सकेगा।
2.दूसरा यह कि आपको अपने शोरूम कम गोडाउन के मालिकाना हक के कागजात को भी सरकार के समक्ष पेश करने होंगे।
3.तीसरा यह कि आपको अपने दुकान कम गोदाम में रेफिजरेटर और एसी लगानी जरूरी होंगी क्योंकि इसके बिना वैक्सीन, सेरा, इंसुलिन, इंजेक्शन आदि का सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है।
4.चौथा यह कि आपको अपने दुकान या गोदाम में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना होगा। इसके आसपास भी विशेष सफाई रखनी होगी।
स्टेप-7: कितनी लागत आयेगी
होलसेल बिजनेस शुरू करने के लिए आपको किन-किन वस्तुओं की जरूरत पड़ सकती है और उन पर कितना खर्चा आयेगा। इसको इस तरह से जाना जा सकता है।
1.लाइसेंस और अन्य दस्तावेज: लाइसेंस व रजिस्ट्रेशन फीस पर लगभग 30 हजार रुपये खच हो सकते हैं
2.दुकान/शोरूम/गोदाम के लिए आपको फर्नीचर, अलमारियां, एसी और रेफ्रिजरेटर पर 2 से ढाई लाख रुपये तक का खर्चा हो सकता है।
3. कम्यूटर सिस्टम पर 50 हजार रुपये तक का खर्चा आ सकता है
4. यदि दुकान/शोरूम/गोदाम आपका अपना है तो उसकी भी लागत निकालनी होगी/ किराये की है तो किराया लगाना ही होगा।
5. दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की खरीद पर होने वाला खर्चा अलग से।
6. इसके अलावा आपको फार्मेसिस्ट सहित कई कर्मचारियों की भी जरूरत होगी। इस पर एक लाख रुपये के आसपास खर्चा होगा
7. थोक में दवाइयां व मेडिकल उपकरण खरीदने में भी अच्छी-खासी रकम खर्च करनी होगी।
8. इस तरह से इस बिजनेस में 40 से 80 लाख रुपये की लागत आयेगी।
स्टेप-8: कितना मुनाफा मिलेगा
इस बिजनेस में मुनाफा यानी लाभ कितना हो सकता है। यह आपके बिजनेस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह का बिजनेस करते हैं जैसे
1.ब्रांडेड या अन ब्रांडेड मेडिसिन
2.जेनरिक मेडिसिन
3.ब्रांड वैल्यू मेडिसिन
3.आपकी फर्म के रेप्यूटेशन पर
4.एथनिक या अनएथिकल प्रैक्टिस
5.बिना डॉक्टरी सलाह वाली दवाइयों का बिजनेस
बिजनेस के बाद आप किस तरह का होलसेल बिजनेस करना चाहते हैं। मेडिकल के होलसेल बिजनेस के भी कई रूप होते हैं। उसी हिसाब से उनका प्राफिट तय होता है।
1. सी एण्ड एफ एजेंट (कैरियर एण्ड फारवर्ड एजेंट)
2. स्टॉकिस्ट
3. डिस्ट्रीब्यूटर
4. केमिस्ट
5. फार्मेसी
यदि आप होलसेलर या स्टाकिस्ट हैं तो आपको 6 से 10 प्रतिशत का मुनाफा मिल सकता है। इसके अलावा समय-समय पर मैन्युफैक्चरर्स द्वारा दी जाने वाले प्रमोटर्स स्कीमों का भी लाभ मिल सकता है। इसके अलावा अन्य तरह के होलसेल बिजनेस में कंपनियों द्वारा मुनाफा तय किया जाता है।
स्टेप-9: एक्सपायरी डेट से रहना होगा सतर्क
भारत में ड्रग्स एंड कॉसमेटिक्स एक्ट (1948) की धारा बी (नियम 98) के अनुसार किसी भी दवाई को 5 वर्ष से अधिक स्टोर नहीं कर सकते। वह भी रखरखाव की दशा पर निर्धारित करेगा। दवाई के बिजनेस में बिजनेस मैन को एक्सपायरी डेट को लेकर हमेशा सतर्क रहना होगा। अपने स्टोर को लगातार चेक करते रहना होगा। उन दवाइयों को सबसे पहले बेचने की कोशिश करनी होगी जिनकी एक्सपायरी डेट काफी नजदीक है। इसे लिए आपको अपने स्टोर में रखी दवाओं की लिस्ट बनानी होगी या कंप्यूटराइज्ड कर उसकी एक्सपायरी डेट को भी लिखना होगा। इसकी चेकिंग के लिए डेली एक रूटीन वर्क करना होगा। जिससे रोजाना ही एक्सपॉयरी डेट वाली दवाओं की जानकारी होती रहे।
स्टेप-10: क्यों हो जाती हैं दवाएं एक्सपायर
जो दवाइयां केवल रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स द्वारा लिखी जातीं हैं, उनको कम मात्रा में स्टोर करना चाहिये। क्योंकि ये दवाइयां वहीं लोग खरीदने आयेंगे जिन्हें डॉक्टर लिख कर देगा। आपको उन दवाइयों पर अधिक ध्यान देना होगा जो मेडिकल स्टोर, पर ग्रोसरी स्टोर पर आम बीमारियों में इस्तेमाल की जातीं हैं, जिन्हें डॉक्टर की सिफारिश के बिना ही लोग खरीद लेते हैं। ऐसे दवाइयों की डिमांड काफी होती है। इसके अलावा बीमारियों के सीजन में इस तरह की दवाइयों की डिमांड काफी बढ़ जाती है।
स्टेप-11: माल बेचने के लिये क्या-क्या करें
अपना माल बेचने के लिए होलसेलर्स को लोकल क्लीनिक, प्राइवेट हॉस्पिटल, हेल्थ केयर सेन्टस, चैरिटी व धार्मिक व सोशल सर्विस वाले संगठनों द्वारा चलाये जाने वाले अस्पतालों से सम्पर्क करना चाहिये। इन सभी लोगों को आॅफर्स और अन्य बेनीफिट्स का प्रलोभन भी देना चाहिये। लोकल फार्मेसी व क्लिनिक को अधिकतम मुनाफे के साथ अच्छी क्वालिटी वाली दवाइयों को कम दामों पर देने से आपका बिजनेस अच्छी तरह चल जायेगा।
छोटे-छोटे शहरों व कस्बो की क्लीनिकों में ब्रांडेड कंपनियों की आल्टरनेट प्रोडक्ट यानी दूसरे कम दामों वाले विकल्प वाली दवाइयां देने और उनसे होने वाले लाभ के बारे में बताना होगा। बड़े शहरों के मेडिकल स्टोर व क्लीनिक अच्छी क्वालिटी वाली दवाइयां भारी डिस्काउंट में चाहते हैं। वो उन दवाइयों को एमआरपी पर बेच कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
स्टेप-12: सरकारी योजनाओं में किस्मत आजमाएं
मेडिकल होलसेलर्स को सरकारी योजनाओं में अपनी दवाइयां व उपकरण सप्लाई करने की प्लानिंग बनानी चाहिये। देश भर में सरकारी व अर्धसरकारी अस्पतालों, क्लीनिकों की भरमार है। इनमें सप्लाई के लिए समय-समय पर टेंडर आदि निकाले जाते हैं। उनकी सप्लाई करके अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके साथ ही होलसेलर्स को चाहिये कि वो उन-उन दवाइयों की लिस्ट बना ले जो उस क्षेत्र में कम बिक रहीं हो जबकि उसी तरह की दूसरी कंपनी की दवा अधिक बिक रही हो। उसके लिए मैन्युफैक्चरर्स कंपनी पर दबाव डालना चाहिये कि वो एमआर (मेडिकल रिप्रजेन्टेटिव) रख कर सभी डॉक्टरों के पास अपनी दवाओं का प्रचार करायें तथा इन डॉक्टरों को कुछ मुफ्त सैंपल भी भेजें। इससे डिमांड बढ़ेगी तो होलसेलर्स का माल बिकेगा।
स्टेप-13: इम्पोट-एक्सपोर्ट के लिए करना होगा ये काम
यदि आप होलसेल के साथ विदेशों में भी सप्लाई करना चाहते हैं तो आपको उसके लिए इंडियन इम्पोर्ट एण्ड एक्सपोर्ट नंबर लेना होगा। इसके बिना आप अपना इंम्पोर्ट या एक्सपोर्ट का कारोबार नहीं शुरू कर पायेंगे।
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