ऐसे कुछ कानूनों को समझने से पहले हमें समझना होगा कि ऑनलाइन बिजनेस या ईकॉमर्स बिजनेस किस तरीके से होता है और इसका मतलब क्या होता है। इंटरनेट की सहायता से सामान को खरीदना और बेचना ही ई कॉमर्स कहलाता है। जैसा कि हमें पता है कि इसके दौरान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की मदद ली जाती है इसीलिए इस प्रकार के व्यापार को इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के नाम से जाना जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पूरे विश्व की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में ई-कॉमर्स का योगदान सर्वाधिक है। भारत में भी ई-कॉमर्स मार्केट काफी तेजी से फैल रहा है।
पिछले कुछ सालों में ही अमेजन जैसी बड़ी कंपनी का भारतीय मार्केट में प्रवेश हुआ और वह अत्यधिक सफल रही, इसी के साथ अमेरिकन ई-कॉमर्स जायंट वॉलमार्ट के द्वारा भारतीय कंपनी फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण के बाद दोनों प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों में काफी ज्यादा कंपटीशन बढ़ गया है।
परंतु इसी सिक्के का एक और पहलू यह भी है कि इतनी बड़ी कंपनियों से कंपटीशन लिए बिना भी आप छोटे स्तर पर ई-कॉमर्स व्यवसाय कर सकते हैं।
ई-कॉमर्स वेबसाइट कई तरीके का होता है जैसे कि :-
- बिजनेस टू बिजनेस ई-कॉमर्स:-
इसके अंतर्गत एक कंपनी किसी अन्य कंपनी को अपना सामान बेचती है या उससे खरीदती है इस प्रकार की ई-कॉमर्स में वे कंपनियां शामिल की जाती हैं जो स्वयं के उपयोग के लिए सामान खरीदती हैं
- बिजनेस टू कंजूमर ई-कॉमर्स :-
इसके अंतर्गत हम और आप के जैसा कोई कंजूमर कंपनी से सीधे सामान खरीदता है
- कन्जयूमर टू कन्जयूमर :-
इसके अंतर्गत एक उपभोक्ता दूसरे उपभोक्ता से सीधा संपर्क करता है। इसमें अलग-अलग कंपनी और पोर्टल की कोई भूमिका नहीं रहती है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इकोनामिक सर्वे 2017-18 में बताया गया है कि ई-कॉमर्स मार्केट ने पिछले एक वर्ष में 20% से ज्यादा की ग्रोथ रेट प्रदर्शित किया है, जो कि किसी भी अन्य सेक्टर की तुलना में सर्वाधिक है।
यदि आप भी इस तरीके का इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो आपको निवेश के साथ साथ उपभोक्ता तक पहुंच के अलावा कुछ कानूनों की जानकारी भी होनी चाहिए, भारत में मुख्य रूप से सूचना तकनीक अधिनियम 2000 में ई-कॉमर्स से संबंधित सभी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है।
आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ कानून:-
सबसे पहले बात करते हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए एक महत्वपूर्ण कानून के बारे में जो कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के द्वारा बनाया गया है -
1. इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स अथार्त बौद्धिक संपत्ति की सुरक्षा :-
इसी क़ानून को कॉपीराइट और पेटेंट एक्ट के रूप में भी जाना जाता है।इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के द्वारा इजाद किया गया कोई भी आविष्कार ,दूसरे व्यक्ति या संस्था के द्वारा इस्तेमाल ना किया जाए।
जैसे कि यदि भारत की कोई भारतीय कंपनी कोविड-19 की वैक्सिंग निर्माण कर लेती है तो वह उस वैक्सीन का पेटेंट करवा सकती है,इसके बाद इस वैक्सीन में काम लिया गया फार्मूला या पदार्थ एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट) जोकि किसी भी वैक्सीन या दवाई में पाया जाने वाला पदार्थ होता है , किसी अन्य कंपनी के द्वारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और उस के माध्यम से मुनाफा नहीं बनाया जा सकता है।
2. व्यवसाय का रजिस्ट्रेशन :-
यदि आप अपनी एक ई-कॉमर्स कंपनी बनाना चाहते हैं तो उसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में रजिस्टर करवाना आपको कई खतरों से दूर ले जाता है क्योंकि यदि आपकी कंपनी के द्वारा कोई ऐसा गलत काम हो जाता है जो कि आपको कानूनी दांवपेच में फंसा सकता है, आप रजिस्ट्रेशन के माध्यम से एक अलग मॉडल तैयार कर देते हैं जिसमें कोई बिजनेसमैन पैसा इन्वेस्ट करते हैं और कम्पनी के प्रति आपकी जिम्मेदारी केवल आपकी ही जिम्मेदारी नहीं रह जाती है।
अपनी ई-कॉमर्स कंपनी को रजिस्टर करने के लिए सबसे पहले डायरेक्टर आईडेंटिफिकेशन नंबर यानी डीआईएन के लिए ऑनलाइन या फिजिकल फॉर्म में आवेदन किया जा सकता है।
यह पहचान संख्या मिलने के बाद उस व्यक्ति को अपनी कंपनी का रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी यानी की आरओसी के पास रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी इस बात की जांच करता है कि आप कंपनी का जो भी नाम चाहते हैं ,वह पहले से ही किसी और के द्वारा रजिस्टर्ड तो नहीं किया गया है।
इस कंफर्मेशन के बाद आप अगले 6 महीने में कभी भी अपनी कंपनी की शुरुआत कर सकते हैं।
जीएसटी एक्ट 2016 के अनुसार यदि आप एक ई कॉमर्स कंपनी खोलना चाहते हैं तो कंपनी अधिनियम 2013 में रजिस्ट्रेशन के बाद आपको एक जीएसटी सर्टिफिकेशन के लिए भी अप्लाई करना पड़ेगा।
3. विक्रेता समझौता (वेंडर अग्रीमेंट) :-
ई-कॉमर्स कंपनी दो मॉडल पर आधारित होती है जिनमें से एक मॉडल होता है - मार्केटप्लेस मॉडल।
इसके अंतर्गत आपको आपके ई-कॉमर्स पोर्टल पर रजिस्टर किए गए सभी विक्रेताओं के साथ एक एग्रीमेंट हस्ताक्षर करना पड़ता है , जोकि दोनों पक्षों की पॉलिसी और जिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है।
यदि आप बिना मार्केटप्लेस मॉडल के अलावा स्वयं के सामान को ई-कॉमर्स के माध्यम से बेचना चाहते हैं तब आपको आप के कच्चे माल की सप्लाई करने वाले विक्रेता के साथ समझौता करना पड़ता है , उसमें भी ऐसी ही बातें लिखी जाती है।
4. प्राइवेसी पॉलिसी या गोपनीयता नीति :-
इसके अंतर्गत आपके पोर्टल या वेबसाइट को इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता को उनके अधिकार और जिम्मेदारी के बारे में जानकारी दी जाती है।
मुख्य रूप से प्राइवेसी पॉलिसी का उपयोग कंपनी की उपभोक्ता के प्रति जिम्मेदारी कम करने के लिए किया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोई भी ई-कॉमर्स वेबसाइट स्थापित करने के लिए उस वेबसाइट की प्राइवेसी पॉलिसी और सर्विस टर्म के साथ-साथ डाटा सिक्योरिटी को भी प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए।
आने वाले समय में ई-कॉमर्स व्यवसाय और अधिक प्रगति पर रहेगा , इसके साथ ही हम आपको बताते है इसी समय इससे जुड़ने पर होने वाले कुछ लाभ :-
- ई-कॉमर्स की उपस्थिति की वजह से एक विक्रेता से कंजूमर तक सामान पहुंचाने में में बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है , इसी वजह से उनका कमीशन नहीं बन पाता,जिस कारण सामान काफी सस्ता मिलता है और बाजार में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहती है।
- ई-कॉमर्स की वजह से छोटे व्यापारियों को भी एक प्लेटफार्म मिल जाता है जिसके माध्यम से वह ग्राहकों को उनकी मांग के आधार पर माल पहुंचा सकते हैं
ई-कॉमर्स व्यवसाय में जगह बनाने से पहले आपको इसकी कुछ चुनौतियां भी जान लेनी चाहिए :-
- ई-कॉमर्स वेबसाइट की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उपभोक्ता के मन में हमेशा संदेह बना रहता है कि उसने जो सामान खरीदा है वह सही है या नहीं है इसके पीछे एक कारण यह भी है कि कई प्रतिष्ठित ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ बहुत अधिक मात्रा में उपभोक्ता न्यायालयों में शिकायत दर्ज की जाती है
- ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए सरकार की तरफ से कोई सुव्यवस्थित और परिभाषित ठोस कानून का अभाव है
- कॉमर्स कंपनियां एक सुरक्षित भुगतान माध्यम का इस्तेमाल ना करने की वजह से हमेशा चर्चा का विषय बनी रहती है क्योंकि इनकी इस गलती की वजह से कहीं ग्राहकों के बैंकिंग जानकारियां एक हो जाती है जिस कारण उनके बैंक बैलेंस से रुपए निकाल लेने की शिकायतें सामने आती हैं ।
इन समस्याओं के अलावा आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत में ई-कॉमर्स सेक्टर में कई बड़ी कंपनियां जैसे कि स्नैपडील , उस स्तर पर सफल नहीं हो पाई है जिस स्तर पर इनमें निवेश किया गया था।
इन बड़ी कंपनियों के सफलता के पीछे घटित कुछ कारणों के बारे में जानकारी निकाल कर उनमें सुधार किया जाए तो ,भारतीय ई-कॉमर्स सेक्टर और अधिक ऊंचाइयों को छू सकता है
आने वाले समय में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और सस्ता इंटरनेट कनेक्टिविटी के माध्यम से यह क्षेत्र भारतीय इकोनॉमी और विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान निभाता हुआ नजर आएगा। इन सभी समस्याओं को मध्य नजर रखते हुए ई-कॉमर्स कंपनी व्यवसाय में पैर जमाने से पहले आपको अपने पोर्टल को उच्च स्तरीय सुरक्षा प्रदान करनी पड़ेगी तथा व्यवसाय शुरू करने के साथ ही बेहतरीन सेवा के माध्यम से ग्राहकों का विश्वास भी जीतना पड़ेगा।
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