देश की अर्थव्यवस्था और विकास दर को समझने के लिए जीडीपी का उपयोग किया जाता है। इसे कैलकुलेट करने के तीन मुख्य तरीके हैं। अपनी कुछ सीमाएं होने के बावजूद भी जीडीपी का आंकड़ा नीति निर्धारकों, निवेशकों और व्यवसायियों के लिए एक महत्वपूर्ण मानक है। आगे हम जीडीपी से जुड़ी ऐसी ही कुछ जानकारीपूर्ण बातों के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे ।
जीडीपी के विषय में जानना क्यों है ज़रूरी?
जीडीपी की गणना हमें एक देश की तरक्की के बारे में बहुत कुछ बताती है। बढ़ती जीडीपी, निशानी है बढ़ती इनकम और बढ़ती खरीददारी की। एक मज़बूत जीडीपी एक मज़बूत अर्थव्यवस्था की पहचान है । जीडीपी डाटा यह भी दर्शाता है कि अन्य देश और आर्थिक क्षेत्र तरक्की के मामले में एक-दूसरे के मुकाबले कहाँ खड़े होते हैं। आप भी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं इसलिए इन पहलुओं के बारे में जानना आपके लिए ज़रूरी है।
समझिये जीडीपी को -
जीडीपी यानि 'ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट' या हिंदी में कहें तो सकल घरेलु उत्पाद किसी भी देश की सीमा के भीतर निर्मित सभी वस्तुओं और सेवाओं की मौद्रिक या मार्किट वैल्यू है। जैसे अंतरिक्ष से देखती एक सेटेलाइट धरती का मौसम बता सकती है ,उसी तरह देश में बन रहे वस्तुओं और सेवाओं पर नज़र रखती जीडीपी, उस देश के आर्थिक हालातों के विषय में बता सकती है।एक देश की जीडीपी की गणना में सभी तरह के पब्लिक, प्राइवेट उपभोग, सरकारी खर्चे, निवेश, विदेशी बैलेंस ऑफ़ ट्रेड (व्यापार संतुलन) आदि आते हैं।
कैसे कैलकुलेट होता है जीडीपी?
सांख्यिकीविदों और गणितज्ञों द्वारा तीन अलग-अलग तरीकों से जीडीपी की गणना की जाती है। हालाँकि इन तीनों तरीकों से एक ही आंकड़ा निकलकर आना चाहिए। इन तरीकों में जिन तीन अलग-अलग फैक्टर्स को ध्यान में रखकर गणना की जाती है, वे इस प्रकार हैं -
- खर्च - यह देश में होने वाले हर एक खर्चे और देश के शुद्ध निर्यात का मूल्य होता है।
- आय - यह देश के सभी लोगों और व्यवसायों की आय की मूल्य होता होती है। इसे घरेलू आय भी कहा जाता है।
- उत्पादन - यह देश में उत्पादित होने वाले सभी उत्पादों की मार्किट वैल्यू होती है।
कहाँ से जानें किसका कितना है जीडीपी?
जीडीपी से सम्बंधित सबसे विश्वसनीय डेटाबेस विश्व बैंक द्वारा इंटरनेट पर जारी किये जाते हैं। विश्व बैंक के पास उन बड़े देशों की एक उत्तम और व्यापक लिस्ट होती हैं, जिनके जीडीपी डाटा उसके द्वारा ट्रैक किए जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक निधि (इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड) भी वर्ल्ड इकनोमिक आउटलुक और इंटरनेशनल फाइनेंशियल स्टेटिस्टिक्स जैसे कई डेटाबेस की मदद से जीडीपी का डाटा उपलब्ध कराता है।
एक अन्य बेहतरीन स्रोत है ओईसीडी यानि आर्गेनाईजेशन फॉर इकनोमिक कारपोरेशन एंड डेवलपमेंट। ओईसीडी न सिर्फ इतिहासपरक डाटा देता है बल्कि यह जीडीपी विकास दर को लेकर पूर्वानुमान लगाने में भी मदद करता है। हालाँकि यह ऐसा सिर्फ ओईसीडी सदस्य देशों और कुछ-एक बाहरी देशों के लिए ही करता है।
जीडीपी का सम्बन्ध:
निवेश से -
जीडीपी आपके निजी आय-व्यय, निवेश से लेकर आपकी नौकरी में तरक्की तक को प्रभावित करता है। निवेशक एक देश की जीडीपी विकास दर को देखकर ही संपत्ति आवंटन के विषय में निर्णय लेते हैं। सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय मौके तलाशने के लिए वे देशों की ग्रोथ रेट की भी तुलना करते हैं। वे उन्हीं कंपनियों के शेयर खरीदना पसंद करते हैं जो तेज़ी से विकसित हो रहे देशों में काम करती हैं।
बैंकों की ब्याज दर से –
अगर किसी देश में जीडीपी बढ़ रही है तो वहाँ के लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है ,जिससे मांग भी बढ़ने लगती है, जिसके फलस्वरूप चीज़ों के दाम बढ़ते हैं। ऐसे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों के ब्याज दर बढ़ा दिए जाते हैं जिससे लोग खर्च करने के बजाय, पैसा बैंक में डालकर बचत करने की ओर आकर्षित हों। इस तरह से मांग को घटाकर महंगाई कम की जाती है। वहीं अगर ग्रोथ कम हो रही हो तो ब्याज दरों को कम कर दिया जाता है जिससे कि लोग बैंक में पैसा न रखकर अधिक खर्च करें और अर्थव्यवस्था में पैसे का फ्लो बढ़ाएं।
विदेशी बैलेंस ऑफ़ ट्रेड से -
इसके अंतर्गत दो टर्म आते हैं - ट्रेड सरप्लस और ट्रेड डेफिसिट।
ट्रेड सरप्लस - इस स्थति में देश का जीडीपी बढ़ता है।यह लाभ की वह स्थिति है जिसमें घरेलू उत्पादकों द्वारा विदेश में बेची गयीं वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत, घरेलु उपभोक्ताओं द्वारा विदेश से खरीदी गयीं वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत के मुकाबले अधिक होती है।
वहीं दूसरी और ट्रेड डेफिसिट नुकसान की स्थिति है जहाँ जीडीपी में गिरावट देखने को मिलती है। इसमें घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा विदेशी बाज़ारों से खरीदी गयी वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत, घरेलू उत्पादकों द्वारा विदेश में बेची गयी वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत के मुकाबले अधिक होती है।
रोज़गार से –
अगर जीडीपी की विकास दर धीमी हो जाए या फिर कम होने लगे तो यह आपकी नौकरी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। कम जीडीपी के माहौल में मांग घट जाती है इसलिए कंपनियां छंटनी करती हैं जिससे लोग बेरोज़गार होते हैं। कोरोना काल में देशों का घटता जीडीपी ऐसे ही कई लोगों की नौकरियां जाने का गवाह है।
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जीडीपी मानक में है सुधार की गुंजाइश -
- जीडीपी सम्पूर्ण रूप में लोगों के जीवन स्तर को नहीं दर्शाता। चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद ,जीवन स्तर के मामले में पिछड़ा हुआ है और एक मध्यम आय-वर्गीय देश माना जाता है। जीडीपी को कुल जनसँख्या से विभजित करके जीवन स्तर यानि स्टैण्डर्ड ऑफ़ लिविंग निर्धारित किया जा सकता है। इसे जीडीपी पर कैपिटा (घरेलू सकल उत्पाद प्रति व्यक्ति) कहा जाता है।
- जीडीपी में ब्लैक मार्किट अर्थव्यवस्था नहीं जोड़ी जाती। ड्रग लेन-देन, अवैध वेश्यवृत्ति, गैर-क़ानूनी मज़दूरी आदि जैसे कई काले-धंधे हैं जिनकी गणना जीडीपी कैलकुलेट करते समय नहीं की जाती है।
- बच्चों की देखभाल, खाना बनाना ,साफ़ सफाई अदि जैसे कई असूचित कार्य जो पुरुष व महिलाएं अपनी इच्छा से घर पर रहकर करते हैं, वे भी अर्थव्यवस्था के राष्ट्रीय आंकड़ों में नहीं जोड़े जाते।
- पर्यावरण से जुड़ी कई तरह की लागतें भी जीडीपी में नहीं जोड़ी जाती हैं। जैसे एक प्लाटिक कप जो बनाया और बेचा गया वह तो जीडीपी में कैलकुलेट किया गया परन्तु उससे जुड़ी दीर्घकालिक लागतें जो उसके निराकरण में लगेंगी और जो नुकसान उससे वातावरण को पहुंचेगा, उसकी गणना जीडीपी में नहीं होती।
- जीडीपी जहाँ एक देश का जीवन स्तर बता सकती है, वहीं यह वहाँ रहने वाली जनसँख्या की व्यापक कुशलता, स्वस्थ्य और खुशहाली को संज्ञान में नहीं लेती।
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