बिज़नेस संस्थापकों के बीच औपचारिक करार स्थापित करने से लेकर बौद्धिक सम्पदा अधिकार सुरक्षित करने और बिज़नेस कॉन्ट्रैक्ट लागू करने तक कई ऐसे काम हैं, जिन्हें सही तरीके से करने के लिए उद्यमियों को मार्किट और बिज़नेस के कायदे-क़ानूनों के विषय में जागरूक रहना चाहिए। नीचे दिए गए कुछ कानून ऐसे ही हैं, जो अपना बिज़नेस शुरू करने वाले हर व्यक्ति को जानने चाहिए।
1 -बिज़नेस संरचना परिभाषित करें
बिज़नेस संस्थापकों को सबसे पहले अपने बिज़नेस की संरचना परिभाषित करनी होगी। कंपनी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह स्पष्टता लाना आवश्यक है कि आपका बिज़नेस किस तरीके का है।।
एक बिज़नेस कई तरह से किया जा सकता है, जिसमें यह चार सिस्टम प्रमुख हैं -एकल स्वामित्व, पार्टनरशिप, प्राइवेट लिमिटेड और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप।
हर बिज़नेस टाइप के साथ उसके अलग कायदे क़ानून जुड़े होते हैं। आप अपने बिज़नेस टाइप के हिसाब से इनका ध्यान रखें।
2 - संस्थापकों के बीच औपचारिक समझौता बनाएं
हो सकता है आप बिज़नेस अपने किसी दोस्त या सगे-सम्बन्धियों के साथ मिलकर शुरू कर रहे हों, और आप आपस में काफी भरोसा रखते हों परन्तु बिज़नेस की रूलबुक कहती है कि व्यापार में संबंधों को हावी न होने दें। बिज़नेस के सभी संस्थापकों के साथ एक औपचारिक समझौता बनाएं। अंग्रेजी में फाउंडर्स एग्रीमेंट कहलाने वाले इस समझौते में संस्थापक टीम और बिज़नेस की जिम्मेदारियाँ, मुआवज़े, कामकाज प्रणाली, बिज़नेस से अलग होने की प्रक्रिया आदि समेत कई धाराएं होती हैं जो भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए पहले से ही कम्पनी को तैयार रखती हैं। मतभेदों की स्थिति में यह एग्रीमेंट गाइड का काम करता है। बिज़नेस शुरू करने और बढ़ाने के लिए यह एक मजबूत नींव है।
3 - बिज़नेस लाइसेंस के लिए अप्लाई करें
लाइसेंस के बग़ैर कोई भी बिज़नेस कानून की नज़र में वैध नहीं माना जाता। बिना लाइसेंस पकड़े जाने पर आपको कोर्ट के चक्कर लगाने के साथ-साथ भारी जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
बिज़नेस लाइसेंस वह वैधानिक डॉक्यूमेंट है जो आपके बिज़नेस रजिस्ट्रेशन का सबूत होता है और आपको अपना बिज़नेस चलाने की अनुमति देता है। बिज़नेस रजिस्ट्रेशन एक आधिकारिक प्रक्रिया है जिसमें बिज़नेस को रजिस्ट्रार के ज़रिये सूचीबद्ध कराया जाता है।
हर बिज़नेस पर लागू होने वाला एक लाइसेंस है 'शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट ' जो सभी व्यवसायिक क्षेत्रों में मान्य है। अन्य लाइसेंस सम्बंधित इंडस्ट्री के मुताबिक बदलते रहते हैं। जैसे एक ई-कॉमर्स कम्पनी को वैट, सर्विस टैक्स, प्रोफेशनल टैक्स रजिस्ट्रेशन आदि से जुड़े लाइसेंस की आवश्यकता पड़ सकती है, वहीँ एक रेस्टोरेंट को अन्य लाइसेंसों के साथ फ़ूड सेफ्टी, एनवायरनमेंट क्लीयरेंस, प्रिवेंशन ऑफ़ फ़ूड अडल्ट्रेशन, हेल्थ ट्रेड आदि लाइसेंसों की आवश्यकता पड़ सकती है।
किसी भी बिज़नेस को शुरू करने से पहले बिज़नेस टाइप के हिसाब से ज़रूरी लाइसेंसों के लिए अप्लाई ज़रूर कर दें।
4 - टैक्स नियमों को समझें
टैक्स और बिज़नेस का पुराना नाता है। सेंट्रल टैक्स, स्टेट टैक्स, लोकल टैक्स जैसे कई टैक्स हैं जो बिज़नेस पर लागू होते हैं। अलग-अलग तरह के बिज़नेस के लिए अलग-अलग तरह के टैक्स होते हैं। इनकी पूर्व जानकारी आपके बिज़नेस के लिए फायदेमंद है।
भारत सरकार ने हाल ही में शुरू होने वाले कारोबारों को बढ़ावा देने के लिए 'स्टार्टअप इंडिया' नाम की पहल की है। इसके तहत नए व्यवसायों को कई तरह के टैक्स से छुटकारा दिया गया है। बिज़नेस द्वारा तीन साल तक इस छूट का लाभ उठाया जा सकता है। यह सुविधा पाने के लिए स्टार्टअप की उम्र स्थापना की तारीख से अधिकतम 7 साल होनी चाहिए। कम्पनी एक रजिस्टर्ड पार्टनरशिप, लिमिटेड लायबिलिटी कंपनी या प्राइवेट लिमिटड कंपनी होनी चाहिए। शर्त यह भी है कि कम्पनी का टर्नओवर किसी भी वर्ष में 25 करोड़ से अधिक न हो और साथ ही स्टार्टअप किसी पुराने बिज़नेस की नींव पर नहीं खड़ा होना चाहिए।
5- एकाउंटिंग का रखें ख़ास ख़्याल
जहाँ तक बिज़नेस एकाउंटिंग का सवाल है, एकाउंट्स और ऑडिट बुक्स सही से संभालना एक अच्छी बिज़नेस प्रैक्टिस है। एकाउंट्स सही समय पर ऑडिट करते रहने से यह पता लगता रहता है कि सभी नियमों का अच्छे से पालन हो रहा है या नहीं। शुरुआत में बिज़नेस छोटा होने से कई बार लोग इसे अनदेखा कर देते हैं। हालाँकि लम्बे समय में यह अनदेखी आपके बिज़नेस पर भारी पड़ सकती है। एकाउंटिंग आसान करने के लिए आप ऑनलाइन मौजूद ऐप्स का सहारा ले सकते हैं। यह बिलकुल सेफ होते हैं और आपके बिज़नेस का सही हिसाब किताब रखते हैं।
6 -श्रम कानून का करें पालन
आपकी आर्गेनाईजेशन का साइज चाहे कितना भी हो,जब आप एक बिज़नेस के रूप में स्थापित होते हैं और अपने साथ काम करने के लिए लोगों को नियुक्त करते हैं तो आप कई तरह के लेबर कानून के दायरे में आ जाते हैं।
न्यूनतम मजदूरी एक्ट 1948, मातृत्व लाभ एक्ट 1961, कारखाना एक्ट 1948, यौन उत्पीड़न, अवकाश, बोनस आदि से जुड़े कई श्रम कानूनों का पालन आपको करना होगा। आप चाहें तो किसी लीगल काउंसलर की मदद भी ले सकते हैं ताकि आप अपने बिज़नेस के मुताबिक़ लगने वाले कानूनों का पालन कर पाएं।
जितने भी नए बिज़नेस 'स्टार्टअप इंडिया इनिशिएटिव' के तहत रजिस्टर्ड हैं, वे स्थापना के एक वर्ष के भीतर इन नौ लेबर कानूनों को लेकर अपना घोषणा-पात्र जारी कर और श्रम निरिक्षण से मुक्त हो सकते हैं –
- औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम 1946
- भारतीय औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947
- पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972
- कर्मचारी भविष्य निधि एक्ट 1952
- कर्मचारी राज्य बीमा एक्ट 1948
- द इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस ) एक्ट, 1979
- द ट्रेड यूनियंस एक्ट, 1926
- बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस ) एक्ट, 1996
- अनुबंध श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970
ध्यान रखें:
किसी भी बिज़नेस को शुरू करने व अच्छे ढंग से चलाने के लिए उससे जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं के विषय में सही जानकारी होना,और उन जानकारियों के अनुरूप सभी प्रक्रियाएं पूरी करना बहुत ज़रूरी है। अगर आपका बिज़नेस बड़ा है तो एक कानूनी सलाहकार नियुक्त करना आपको आगे होने वाली कई बड़ी परेशानियों से बचा सकता है।
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