बचत और निवेश के तरीके बदलते समय के साथ बदले हैं। तिजोरियों, गुल्लकों से निकलकर पहले वह सेविंग अकाउंट, एफडी, आरडी (Recurring Deposit) आदि में पहुंचे और अब ज़माना है इक्विटी और फण्ड का। हालाँकि इसमें शामिल जोखिम के कारण लोग इसमें पड़ने से बचते रहे हैं। इस तरह के निवेश पर लाभ कमाने के लिए सही जानकारी की आवश्यकता होती है।
क्या है म्यूच्यूअल फण्ड?
म्यूच्यूअल फण्ड एक ऐसा निवेश है जो निवेशकों के पैसे एक जगह इकठ्ठा करके स्टॉक, बांड जैसी प्रतिभूतियां खरीदता है। निवेशों की सूची संभालने वाला मैनेजर यह डिसाइड करता है कि पैसे का निवेश कहाँ और कैसे करना है। इसके लिए उसे एक फीस दी जाती है, जो फंड के पैसे से आती है।
कौन सी म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी कितनी सफल है, यह इस बात पर निर्भर करता है की उसके द्वारा खरीदी गयीं प्रतिभूतियां (सिक्योरिटीज ) मार्किट में कैसा परफॉर्म कर रही हैं।
अलग है म्यूच्यूअल फण्ड और स्टॉक
एक म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करना स्टॉक के शेयर में निवेश करने से अलग है। म्यूच्यूअल फंड निवेशकों को ,स्टॉक शेयर निवेशकों की तरह, कोई मताधिकार नहीं दिए जाते। साथ ही, म्यूच्यूअल फण्ड का निवेश किसी एक संपत्ति में किया गया निवेश नहीं है बल्कि यह कई अलग-अलग स्टॉक में आपका निवेश दर्शाता है।
कैसे होती है म्यूच्यूअल फण्ड से कमाई?
- फण्ड की निवेश सूची में रखे गए स्टॉक और बांड पर क्रमशः लाभांश और ब्याज के रूप में आमदनी होती है। एक फण्ड पूरे साल में कमाई गयी लगभग सारी इनकम फण्ड मालिकों में बाँट देता है । फण्ड अपने निवेशकों को पैसा लेने या उस पैसे को पुनः निवेश कर अधिक शेयर खरीदने के विकल्प देता है।
- अगर फण्ड अपनी होल्डिंग में से एक ऐसी सिक्योरिटी को बेचता है जिसका दाम बढ़ गए हों, तो फण्ड को कैपिटल गेन होता है।अधिकतर फण्ड इस लाभ को भी निवेशकों में बाँट देते हैं।
- अगर फण्ड होल्डिंग के दाम बढ़ जाएं लेकिन फिर भी मैनेजर द्वारा उसे न बेचा जाए तो फण्ड के शेयर के दाम बढ़ जाते हैं। तब आप अपने म्यूच्यूअल फण्ड शेयर्स को लाभ कमाने के लिए मार्किट में बेच सकते हैं।
निवेश से पहले केवाईसी है ज़रूरी-
म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने से पूर्व आपको अपनी पहचान के लिए केवाईसी करानी होगी। इस प्रक्रिया में आपको अपनी पहचान और पते सम्बंधित दस्तावेज जमा कराने होंगे। यह प्रक्रिया ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरीकों से की जा सकती है।
म्यूच्यूअल फण्ड शुल्क-
इन्हें दो भागों में बांटा गया है -
- सालाना ऑपरेटिंग शुल्क -
- यह फण्ड का 'एक्सपेंस रेश्यो' होता है जिसमें परामर्श, प्रबंधन आदि शुल्क शामिल हैं।
- शेयरहोल्डर शुल्क -
- फ्रंट एन्ड लोड - यह शेयर को खरीदते समय निर्धारित किये जाने वाला शुल्क है।
- बैक एन्ड लोड - यह शेयर को बेचते समय निर्धारित किये जाने वाला शुल्क है।
जब सीधा किसी निवेशक कम्पनी द्वारा फंड वितरित किये जाते हैं तो नो-लोड म्यूच्यूअल फण्ड प्रस्तावित किया जाता है।
ज़ुर्माना - समय से पूर्व फण्ड से पैसा निकालने के लिए यह शुल्क आपको चुकाना होता है।
म्यूच्यूअल फण्ड के प्रकार
ओपन एंडेड म्यूच्यूअल फण्ड-
म्यूच्यूअल फण्ड अमूमन 'ओपन एंडेड' होती हैं, जिसका मतलब होता है कि निवेशक किसी भी समय फण्ड में शामिल हो सकते हैं। इसमें कोई भी लॉक-इन पीरियड या निर्धारित मेच्यूरिटी तिथि नहीं होती। यह चार प्रकार की होते हैं -
1. डेब्ट या इनकम फण्ड -
यह सबसे कम जोखिम वाला म्यूच्यूअल फण्ड निवेश है। इसमें आपका पैसा सरकारी प्रतिभूतियों, ऋणपत्रों या अन्य ऋण-सम्बन्धी दस्तावेजों में लगया जाता हैं। इसमें नियमित आय होती है।
2. मनी मार्किट या लिक्विड फण्ड -
ये फण्ड जमा किया हुआ पैसा लघु-कालिक वित्तीय दस्तावेजों में लगाते हैं। बचत का निवेश करने के लिए यह एक बढ़िया फण्ड है जिसमें आपको एफडी और सेविंग अकाउंट के मुकाबले बेहतर लाभ प्राप्त होंगे।
3. इक्विटी / ग्रोथ फण्ड -
सबसे ज़्यादा रिटर्न देने वाला म्यूच्यूअल फण्ड है इक्विटी। जमा किया हुआ फण्ड इक्विटी में निवेश किया जाता है इसलिए इसमें जोखिम भी ज़्यादा परन्तु लाभ भी अन्यों के मुकाबले अधिक है। अगर आपको दीर्घकालिक निवेश करना है तो यह एक आदर्श निवेश है। इसके प्रकार -
इंडेक्स स्कीम -
इसमें निफ़्टी और सेंसेक्स जैसे इंडेक्स में निवेश किया जाता है। इंडेक्स के उतार-चढ़ाव के साथ ही आपके निवेश का लाभ भी घटता-बढ़ता रहता है।
सेक्टोरल स्कीम -
इसके तहत किसी एक सेक्टर में निवेश किया जाता है । जैसे - दवा, इंफ्रास्ट्रक्चर, आईटी आदि। यह फण्ड लघु,मध्यम और बड़ी कंपनियों में भी इन्वेस्ट करते हैं। इसमें मौजूद जोखिम सेक्टर के जोखिम से जुड़ा हुआ है ।
टैक्स सेविंग स्कीम -
इसे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस)भी कहा जाता है। ऐसे म्यूच्यूअल फंड का लॉकइन पीरियड तीन साल का होता है। इसमें आपको टैक्स-लाभ भी मिलते हैं। इस फण्ड का पैसा इक्विटी सम्बन्धी दस्तावेजों में निवेश किया जाता है। दीर्घावधि में इसमें पूंजी की वृद्धि देखने को मिलती है। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 (सी) के अंतर्गत, ईएलएसएस में किए गए निवेश पर इनकम टैक्स माफ़ है।
1. बैलेंस्ड फण्ड -
बैलेंस्ड फण्ड में एक पूर्व-निर्धारित प्रतिशत पर इक्विटी और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी का मिश्रण होता है। इनमें आपको बढ़त के साथ-साथ तय अंतरालों पर आमदनी भी प्राप्त होती रहती है।
क्लोज़ एंडेड फण्ड
ऐसे फण्ड की एक निश्चित मेच्यूरिटी अवधि होती है। इनमें आप सिर्फ लांच या फिर नई फण्ड ऑफर (एमएफ़ओ) के समय ही निवेश कर सकते हैं। इसके दो प्रकार हैं –
1. कैपिटल प्रोटेक्शन फण्ड -
ऐसे फण्ड आपके मूल निवेश को बचाने पर ध्यान देते हैं इसलिए इसमें मुख्यतः इसमें ऊँची दरों वाली फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में ही निवेश किया जाता है। पैसे का एक छोटा हिस्सा इक्विटी में भी निवेश किया जाता है।
2. फिक्स्ड मेच्यूरिटी प्लान (एफएमपी) -
नाम के अनुसार इस स्कीम में एक निश्चित मेच्यूरिटी अवधि होती है। इसमें जमा पैसे को ऋण सम्बन्धी प्रपत्रों में निवेश किया जाता है जो फण्ड की मेच्यूरिटी के साथ मेच्यूर होते हैं। ऐसे प्लान में एक निश्चित कमाई होती है।
इंटरवेल फंड
यह ओपन और क्लोज एंडेड फण्ड का मिश्रण होते हैं जो आपको पूर्व निर्धारित अंतरालों पर निवेश करने की सुविधा देते हैं। इसमें दोनों तरह के फण्ड का फायदा आपको मिलता है।
ध्यान रखें –
म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता, निवेश की समय-सीमा और अपेक्षित लाभ का सही से आंकलन करें। एक ऐसा फण्ड चुनें जो आपको वित्तीय स्थिरता, बढ़त और आमदनी देकर आपको आपके निवेश पर अधिकतम लाभ दिला पाए।
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