क्या भारत में तीसरे दर्जे के शहरों में खेती करना अच्छा व्यवसाय है?

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क्या भारत में तीसरे दर्जे के शहरों में खेती करना अच्छा व्यवसाय है?

किसी अन्य बिजनेस की अपेक्षा खेती का व्यवसाय करना हमेशा से फायदे का सौदा रहा है, बशर्ते खेती के बिजनेस को सुनियोजित और वैज्ञानिक तरीके से किया जाये। भारत तो सदियों से खेतिहर देश रहा है और आज भी है। वर्तमान समय में भारत की आधी से अधिक आबादी खेती-किसानी से सीधे जुड़ी है। मानव जीवन के खान-पान से जुड़े होने के कारण  जुड़ी खेती का व्यवसाय लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं में शामिल है। इंसान किसी अन्य के बिना तो जीवन यापन आसानी से कर सकता है लेकिन खेती से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्नों के बिना जीवित नहीं रह सकता है। इसलिये खेती का व्यवसाय सदाबहार और फायदे वाला बिजनेस हमेशा से रहा है और हमेशा ही रहेगा।

भारत में कृषि व्यवसाय की सम्भावनाएँ

खेती किसानी आज भी भारत की 58 प्रतिशत आबादी का जीवनयापन का साधन बना हुआ है। दूसरे शब्दों में कहा जाये कि देश के 58 प्रतिशत लोग आज भी खेती पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं। यानी कि यही उनका मुख्य व्यवसाय है। खेती और खेती से जुड़े कृषि, वानिकी और मछली का कुल व्यवसाय भारत की जीडीपी का 20 प्रतिशत है। खाद्य पदार्थों और खेती किसानी से जुड़े बिजनेस में भारत चीन-अमेरिका को बाद विश्व में प्रथम है। वित्तीय वर्ष 2020 में कृषि और कृषि से सबंधित उद्योगों ने 4 प्रतिशत की तरक्की की है। कहने का मतलब यह है कि भारत में खेती आज भी महत्वपूर्ण व्यवसाय है। इसका भविष्य सुनहरा है। इस बिजनेस में काम करने वालो को हमेशा ही अच्छी आय होती है। इसीलिये खेती को सबसे उत्तम कहा गया है।

देश की तरक्की से गांवों, कस्बों व शहरों में आया है बहुत बड़ा बदलाव

भारतीय खेती का व्यवसाय आज भी परंपरागत तरीके से गांवों में किया जाता है। खेती किसानी ग्रामीण क्षेत्र की मुख्य आर्थिक आय का स्रोत बनी हुई है। आधी से अधिक आबादी वाला और जीडीपी में 20 प्रतिशत जैसे महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाने वाला खेती का व्यवसाय जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है वहीं देश की अर्थव्यवस्था को भी आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहा है। अब यह विचार करने वाली बात है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली खेती शहरी क्षेत्रों में कितनी लाभकारी साबित हो सकती है। हालांकि आजादी के 73 साल बाद भारत ने जिस गति से तरक्की की है, उससे शहरों, गांवों व कस्बों की शकलें बदल गयीं हैं। जो पहले बहुत ही छोटे गांव हुआ करते थे, वे मझोले गांव बन गये हैं, जो मध्यम दर्जे के गांव हुआ करते थे, वे अच्छे खासे कस्बों में बदल गये हैं। और जो कस्बे हुआ करते थे वे आजकल  शहर बन कर उभर गये हैं। कहने का मतलब देश तेजी से तरक्की कर रहा है तो उसमें गांवों, कस्बों, शहरों की भी अहम भूमिका है।

तीसरे दर्जे के शहर में खेती को व्यवसाय मेंं तबदील करना होगा

रहा सवाल तीसरे दर्जे के शहरों में खेती का व्यवसाय करने का तो जवाब यही सामने आता है कि यदि कोई इन शहरों के आसपास खेती का व्यवसाय करना चाहे तो उसे खेती को व्यवसाय बनाकर ही काम करना होगा। इन शहरी क्षेत्रों में केवल पारंपरिक खेती करने से काम नहीं चलने वाला और न ही बीज बोना, सिंचाई, निराई-गुड़ाई करके फसल काटना तक सीमित रहना होगा। तीसरे दर्जे के शहरों के आसपास स्मार्ट खेती करनी होगी। यह  खेती सुनियोजित तरीके और आधुनिक वैज्ञानिक रीति से करनी होगी।

स्मार्ट खेती करनी होगी

तीसरे दर्जे के शहरों के पास खेती करने वाले परम्परागत खेती गेहूं, चावल, दलहन, तिलहन की फसलों से हटकर व्यावसायिक फसल पैदा करने पर विचार करना होगा। ऐसे व्यक्ति को नकदी खेती को व्यवसाय के रूप में शुरू करना होगा। तीसरे दर्जे के शहरों में खेती शुरू करने से पहले अपने क्षेत्र का सर्वे करें और वह यह देखें कि कौन सी ऐसी चीज है, जिसकी शहर में अच्छी खासी मांग है और उसे खेती करके पूरा किया जा सकता है। साथ ही उस वस्तु की खेती करके अच्छी आय कमायी जा सकती है। यही नहीं उन फसलों का चुनाव करना होगा जो कम समय में तैयार होती हों और एक के बाद एक आसानी से खेतों में उगाई जा सकें।

Tractor cultivating field at spring

बहुउद्देश्यीय खेती के विकल्प को चुनना होगा

खेती का कॉन्सेप्ट बहुत बड़ा है। चूंकि आप कुदरत से जुड़ा व्यवसाय शुरू करने जा रहे हो तो आपको इस खेती के लिए सही योजना और सूक्ष्म प्रबंधन की सख्त आवश्यकता होती है। इसके लिए आप खेती को बहुउद्देश्यीय बनाना होगा। इसका मतलब यह है कि आपको अपनी खेती में वे सारी चीजों को पैदा करना होगा जो इंसान के साथ-साथ, पशुओं, मुर्गियों एव अन्य जरूरतों को पूरा करने वाली हों। इस तरह की खेती करने वाले को परम्परगत खेती के उत्पादक से बहुत अधिक आय हो सकती है।

इस तरह की खेती को दो श्रेणी, तीन श्रेणी और चार श्रेणी की खेती में बांटा गया है।

दो श्रेणी की खेती: दो श्रेणी की खेती में मानवीय जरूरत को पूरा करने वाले कृषि पदार्थ के साथ पशुपालन में काम आने वाली फसलें भी शामिल होतीं हैं।

तीन श्रेणी की खेती: इस तरह की खेती में मानवीय जरूरतों की फसलें, पशुपालन संबंधी फसलें और मुर्गी पालन में काम आने वाली वस्तुओं की फसलें शामिल होतीं हैं।

चार श्रेणी की खेती: इस तरह की खेती में मानवीय जरूरत की फसलें, पशुपालन की जरूरत वाली फसलें, पोल्ट्री उद्योग की जरूरत वाली फसलों के साथ वानिकी क्षेत्र की आवश्यक फसलों की भी खेती की जाती है।

अलग हट कर खेती करने पर करना होगा विचार

अब यदि आप तीसरे दर्जे में सफल खेती व्यवसाय करना चाहते हैं तो आपको मानवीय जरूरत की फसलों में भी कुछ ऐसा अलग हटकर करना होगा जिससे आपका किसी कंपटीशन न हो । और यदि हो तो वो बहुत कम हो। इसके अलावा तेजी से उभरता हुई बाजारी फसलों की खेती करेंगे तो उससे उम्मीद से ज्यादा आमदनी होगी। इसलिये शहरों के पास खेती करने वालो को नये नजरिये से सोचना होगा। और नई जरूरतों और नई सोच वाली फसलों में से कुछ खास फसलें इस प्रकार हैं:-

  1. मेडिकल प्लांट की खेती
  2. सुगंधित फूलों की खेती
  3. सब्जियों की खेती
  4. जैविक खेती
  5. ग्रीनहाउस खेती

मेडिकल प्लांट की खेती

मेडिकल प्लांट की खेती की आजकल बहुत डिमांड है। इस तरह की खेती से अच्छी आमदनी भी होती है। वर्तमान समय में कोविड-19 का प्रकोप पूरे विश्व में है। इस महामारी से बचाव के लिए औषधीय गुणों वाले पौधों की मांग काफी तेजी से बढ़ गयी है। इन पौधों में गिलोय, तुलसी का पौधा, एलोवेरा का प्लांट, पथरचटा, पुदीना, अश्व गंधा, लैवेंडर, स्टीविया के अलावा कई अन्य जडृी बूटियों के पौधे शामिल हैं। इनकी खेती काफी लाभदायक होती है।

सुगंधित औषधीय पौधों की खेती

इस तरह के वे पौधें होते हैं, जो मसाले व औषधि दोनों ही तरह की जरूरत में काम आते हैं।  इन पौधों के पत्ते, फल व तने आदि इस्तेमाल किये जाते हैं, जिनसे सुगंध भी मिलती है और औषधि के काम भी आते हैं। इनमें लौंग, इलायची, तेज पत्ता, सर्पगंधा, कुलंजन, मेथी, अजवायन, आंवला, ब्राह्मी, चिरायता,गुग्गुल,सतावरी आदि शमिल हैं।

सब्जियों की खेती

सब्जियों की खेती में आलू, टमाटर, धनिया,मिर्चा, पुदीना, लौकी, सीताफल, गोभी,पत्ता गोभी, शिमला मिर्च की खेती करना शामिल है। इनकी खेती से बिजनेस मैन को फसल तैयार हो जाने के बाद रोजाना आमदनी होती है।

जैविक खेती

आजकल आधुनिक खेती में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का भरपूर प्रयोग करके अच्छी फसल लेने का प्रचलन है। इस तरह की खेती से उगने वाले अनाज, फल व सब्जियोंं के प्रयोग से आम इंसान में अनेक बीमारियां हो रहीं हैं। इससे लोग परेशान हैं। अब इस खेती की जगह आर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती का प्रचलन तेजी से चल गया है। प्रत्येक व्यक्ति जैविक खेती से उत्पन्न अनाज,सब्जी व फल को किसी भी कीमत पर खरीदना चाहता है। इस लिये इस तरह की खेती करना आज के समय में बिजनेसमैन के लिए काफी फायदे का सौदा है। जैविक खेती में जैविक,वर्मी कम्पोस्ट और हरी खात का इस्तेमाल करके फसल तैयार की जाती है। इन फसलों में कीटनाशक का भी प्रयोग नहीं होता है। यदि बहुत ही जरूरी होता है और फसल बचाने के लिए सुरक्षित कीटनाशकों का बहुत कम मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इस तरह की खेती से होने वाली फसलें आम इंसान के लिए स्वास्थ्यकर होतीं हैं।

ग्रीनहाउस खेती

ग्रीन हाउस खेत में सब्जियों , फलों और औषधीय पौधों की मिली जुली खेती की जाती है। कई तरह की फसलों को एक साथ पैदा किये जाने के कारण खेती करने वाले को अधिक आय होती है।

काफी अधिक प्रबंधन मांगती है शहरी खेती

तीसरे दर्जे के शहरों में इस तरह की खेती का व्यवसाय करने वालों को काफी मेहनत करनी होती है और हर समय अपने व्यवसाय के प्रति सतर्क रहना होता है। चंूंकि इस खेती होने वाली प्रत्येक फसल नकदी फसल होती है। नकदी फसल की अच्छी पैदावार,अच्छी क्वालिटी की फसल तैयार करने के लिए खेती की प्रत्येक मांग को पूरा करना होता है। जैसे फसल के अच्छी से अच्छी क्वालिटी के बीज का प्रबंधन करना होता है, समय पर खेत की गुड़ाई यानी जुताई करनी होती है, समय पर बीज होना होता है, समय-समय पर सिंचाई करनी होती है, खर-पतवार की निराई भी समय-समय पर करनी होती है ताकि मुख्य फसल खर पतवार के कारण कमजोर न हो जाये। इन सब बातों के अलावा बेमौसम फसल ली जाती है। जिससे बेमौसम उत्पाद काफी महंगे बिकते हैं। जैसे जून,जुलाई में पत्ता गोभी, गोभी,मकई के भुट्टे आदि काफी महंगे बिकते  हैं। नई नई फसल होने के कारण लोगों द्वारा काफी पसंद भी किये जाते हैं।

शहरी खेती की शुरुआत कैसे करें

तीसरे दर्जे के शहरों की भौगोलिक स्थिति ग्रामीण अंचल से मिलती जुलती है। इन शहरों को कस्बों के नाम से भी जाना जाता है। यहां के लोगों की मानसिकता शहरों जैसी तो नही बल्कि शहरियों के अनुकरण जैसी होती है। यहां के निवासियों की आमदनी मध्यम दर्जे की होती है। इसलिये इनके खर्च करने की क्षमता भी मध्यम दर्जे की ही होती है। कहने का मतलब कस्बों की आबादी के लाइफस्टाइल और उनकी जरूरतों को देखकर खेती का व्यवसाय करना चाहिये।

इसके अलावा इन कस्बों में खेती करने का एक और लाभ यह होता है कि यहां से शहरों व नगरों तथा महानगरों को खेत की फसल को बेचने के लिए आसानी से भेजा जा सकता है। इसलिये इन तीसरे दर्जे के शहरों में खेती करने के लिए नजदीकी बड़े शहरों व नगरों की मेन मार्केट की डिमांड को भी टारगेट करना चाहिये। कस्बों के अलावा पास के नगरों व महानगरों की जीवनचर्या में काम आने वाले रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने वाली चीजों की खेती करना लाभकारी साबित होगा।

कस्बों में जमीन की कीमत भी गांवों की अपेक्षा काफी अधिक होती है। इसलिये हमें गांव की  तरह खेती नहीं करनी चाहिये। बल्कि महंगी जमीन को देखते हुए कम समय में अधिक पैदावार या अधिक आय देने वाली फसलें उगानी चाहिये। साथ ही ऐसा प्रबंधन किया जाना चाहिये कि इन खेतों में लगातार 12 महीने खेती होती रहे और आय हासिल होती रहे।

Gold Wheat flied panorama with tree at sunset

शहरी खेती की लागत अधिक क्यों होती है

1. शहरी खेती की लागत अधिक होती है। ऐसा क्यों होता है, इस पर विचार करने से यह मालूम होता है कि गांवों में तो सीधी-सादी पारंपरिक वस्तुओं की खेती होती है। आम तौर पर बीज की बुआई, सिंचाई, खाद-कीटनाशकों का उपयोग के बाद फसल तैयार हो जाती है तो उसकी कटाई-मढ़ाई कर ली जाती है। लेकिन शहरी खेती में अधिकांश फसलें नकदी होती हैं। यानी सब्जियों,फलों व औषधीय पौधों तथा सुगंधित पौधों की खेती होती है। इसके लिए किसान या बिजनेस मैन को सदैव खेत पर तैनात रहना होता है। खेती की रोजाना जरूरतों को पूरा करना होता है।

2. शहरी खेती में उन्नत और अच्छी नस्लों का बीज इस्तेमाल करना होता है जो काफी महंगा होता है। इस तरह की फसलों के लिए खेतों को तैयार करने में काफी मेहनत व लागत आती है। शहरों में पानी के साधन काफी महंगे होते हैं। फसलों की अच्छी पैदावार और बचाव के लिए तरह तरह की खादें व कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही शहरी खेती में मजदूरों को हमेशा तैनात रहना होता है। प्रत्येक वस्तु बाजार से आने के कारण इस खेती की लागत काफी बढ़ जाती है।

3. चूंकि यहां की खेती व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है। इसलिये गांवों की खेती की तरह शहरी खेती में किसी तरह से कोई समझौता नहीं किया जाता है कि गांव में तो चार बार की जगह तीन बार ही खाद से काम चला लिया जाता है लेकिन शहर की खेती में चार बार खाद डाली जायेगी अन्यथा फसल कमजोर और पैदावार कम होने से बिजनेसमैन को घाटा हो जायेगा।

4. परंपरागत खेती के उत्पादों के रखरखाव पर उतना अधिक नहीं खर्च होता है जितना शहरी खेती से उत्पन्न होने वाली फसलों के रखरखाव व सुरक्षा पर खर्च करना पड़ता है।

5. शहरों में खेती-किसानी करने वाले अधिकांश किसान कृषि यंत्र अपने स्वयं के नहीं रखते हैं वे किराये पर लाये जाते हैं। इन पर भी खर्चा होता है। इसके अलावा शहरी श्रमिक भी गांवों के श्रमिकों से अधिक वेतन लेते हैं। इन्हीं सब कारणों से शहरी खेती गांव की खेती की अपेक्षा काफी अधिक महंगी होती है।

मुनाफा किसमें अधिक मिलता है, शहरी या देहाती खेती में?

यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि खेती में मुनाफा किसमें ज्यादा मिलता है, शहरी या देहाती खेती में, तो इसका जवाब यही सामने आता है कि शहरी खेती में लागत व मेहनत गांव की खेती की अपेक्षा अधिक होती है। साथ ही कम जगह में अधिक से अधिक फसलें उगाने के लिए जो जद्दोजहद करनी होती है। उससे तो यही स्पष्ट प्रतीत होता है कि शहरी खेती में गांव की खेती की अपेक्षा अधिक लाभ होता है।

इसका प्रमुख कारण यह है कि गांवों में दो से तीन फसलें साल भर में ली जातीं हैं। अधिक रकबा या खेती का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण किसान परंपरागत खेती की फसलें लेतें हैं और वो खेती में उतनी ही लागत लगाते हैं जितनी जरूरी होती है। कई किसान तो पुराने तरीके से खेती करते हैं जो काफी पिछड़े रहते हैं।

जबकि शहरों की स्मार्ट खेती में एक साथ कई फसलों को उगाने का काम किया जाता है। साल में कम से कम चार फसलों के पैदा करने की कोशिश की जाती है। शहर में खेती करने वाला व्यक्ति खेती के साथ कोई जोखिम नहीं लेता है। वो समय-समय पर खेती की सारी जरूरतों को पूरा करता है। इसके लिए उसे चाहे जितना पैसा खर्च करना पड़े वह पीछे नहीं हटता है क्योंकि जितना पैसा लगाता है उतना ही अधिक मुनाफा भी उसे मिलता है। इसलिये शहरी खेती अधिक लाभकारी होती है।गांव व शहरी खेती के मालिकों में एक और बड़ा अन्तर होता है। वो यह है कि गांव की खेती करने वाले व्यक्ति को साल की प्रमुख फसलों की कटाई के बाद माल बेचने से एक ही बार में मोटी आमदनी होती है। उसे इस आमदनी से अगले साल की खेती की लागत भी निकालनी होती है। जबकि शहरी खेती में ऐसा नहीं होता है। वहां पर किसानों व खेत मालिक को रोजाना आमदनी होती है और रोजाना ही खर्च करना होता है। यहां कोई फसल एक बार में नही काटी जाती इसलिये एक बार में उसको आमदनी नहीं मिल पाती है। लेकिन गांव की खेती वाले से अधिक शहरी खेती वाले की आमदनी होती है।

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