पेप्सी या पेप्सिको, पहले एक थे, अब अलग हैं। पहले नाम था पेप्सी। अब नाम है पेप्सिको। पेप्सी एक कंपनी है जो पेप्सिको के अंडर में काम करती है। यह साफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनी है। भारत में यह दशकों से सक्रिय है। पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में इसके अनेक प्लांट हैं। यह दुनिया भर की लीडिंग साफ्टड्रिंक बनाने वाली कंपनियों में सिरमौर मानी जाती है। यह न सिर्फ साफ्टड्रिंक बनाती है बल्कि चिप्स की कई रेंज भी तैयार करती है।
भारत में चुनौती
भारत में पेप्सिको को हाल के दिनों में जबरदस्त चुनौती मिली है। यह चुनौती देश में तैयार अनेक लोकल साफ्टड्रिंक बनाने वाली कंपनियों से मिल रही है। इनमें सबसे बड़ा नाम है पतंजलि का। पतंजलि ने पेप्सिको के बाजार को लगभग संकुचित कर दिया है, कम कर दिया है। हालांकि टक्कर दोनों तरफ से जारी है। पतंजलि योग गुरु बाबा रामदेव चलाते हैं। वह कोक, पेप्सिको जैसी कंपनियों के खिलाफ लगातार बोलते रहे हैं। वह निरंतर ही पतंजलि के उत्पादों को प्राथमिकता देते रहे हैं। वह इसे लोकल वर्सेस बाहरी के नाम पर चला रहे हैं। वह लोगों से कहते हैं कि आप साफ्टड्रिंक ही पीना चाहते हैं तो फिर स्थानीय साफ्टड्रिंक पीयें जो सेहत से भरपूर हैं, जिसमें दही, दूध, मक्खन है, न कि किसी किस्म का केमिकल।
देश में बदल गया साफ्टड्रिंक का ट्रेंड
भारत में साफ्टड्रिंक का व्यवसाय बहुत पहले से चल रहा है। कोई 50 के दशक से। तब इसका रूप अलग था। अब चीजें बदल गई हैं। पेप्सिको का भारत में आगमन 1988 में हुआ। पेप्सिको को भारत में आने के लिए पंजाब का रास्ता चुनना पड़ा। 1988 में पेप्सिको ने पंजाब सरकार के अधीन पंजाब कृषि औद्योगिक निगम और एयरकंडीशनर बनाने वाली कंपनी वोल्टास के साथ ज्वाइंड वेंचर में अपना प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। 1988 से 1991 तक भारतीय बाजार में जो साफ्टड्रिंक प्रोडक्ट सबसे ज्यादा बिका, उसका नाम था लहर पेप्सी। जबरदस्त बिक्री होती थी। यह नया स्वाद था लोगों के लिए। कंजम्श्न बढ़ता ही चला जा रहा था। देश भर में लहर पेप्सी की डिमांड बढ़ने लगी। चूंकि पेप्सिको ज्वाइंट वेंचर में चल रहा था, इसलिए इसके सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन भी ज्वाइंटली ही चल रहे थे। 1994 में पेप्सिको ने उनके हिस्से के भी शेयर खरीद लिए और पार्टनरशिप खत्म कर दिया। अब पेप्सिको सिंगल प्लेयर बन गई थी। साफ्टड्रिंक के प्रोडक्शन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक का काम यही कंपनी करने लगी।
लगातार विवादों से सामना
भारत में पेप्सिको को लगातार विवादों का सामना करना पड़ा। 1970 में, जब यह पेप्सी के नाम से जाना जाता था, तब भी इस पर प्रतिबंध लगा था। कारण यह था कि इस साफ्टड्रिंक में क्या-क्या मिलाया जाता है, उसकी सूची यह कंपनी न तो जारी करती थी और न ही भारत सरकार को इसने कभी दिया। आजिज आकर 1970 में भारत सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया।
पंजाब से शुरू हुई कहानी
1998 में जब पंजाब से पेप्सिको की शुरुआत हुई तो यह सूची जारी होने लगी। इसके बावजूद इस कंपनी का अदालतों में चक्कर कभी कम नहीं हुआ। कभी इसमें कीड़े मिलते तो कभी यह बताया जाता कि यह साफ्टड्रिंक आंतों को सड़ा देता है। कभी अनेक वीडिओ वायरल किये गए जिसमें एक स्वस्थ आदमी को पेप्सी पीने के बाद अस्पताल में दाखिल कराया गया तो कभी अन्य कारणों से यह कंपनी लगातार मीडिया की सुर्खियां बटोरती रही। अभी भी पेप्सिको पर अनेक मामले अदालतों में चल रहे हैं।
एनजीओ का खुलासा
अगर 2003 की बात करें तो एक एनजीओ ने खुलासा किया था कि पेप्सिको और कोका कोला के प्रोडक्ट में लिंडेन, डीडीटी, मेलाथियान मौजूद थे। ये मूलतः कीटनाशकों की श्रेणी में आते हैं। इनके सेवन से कैंसर, इम्युनिटी का कम होना और जन्म के समय विकृति पैदा होने की आशंका जताई गई।
सीएसई ने पाया कि भारत में जो प्रोडक्ट बनते हैं, उनमें यूरोपीय संघ के नियम के खिलाफ 36 गुऩा अधिक कीटनाशक अवशेष पाए गए। हालांकि कंपनी ने इसका खंडन जोरदार तरीके से किया पर उसे मान्यता नहीं मिली। हां, यह जरूर हुआ कि विवाद बढ़ता देख कर भारत सरकार ने 2004 में कुछ सांसदों की एक समिति बना दी और उसे जांच की जिम्मेदारी सौंप दी। इसका पेप्सिको ने विरोध किया। इस समिति के फैसलों को पेप्सिको ने नहीं माना। 2006 में भी इस किस्म की कवायद की गई।
भारत का बाजार
आज अगर देखें तो देश की आबादी 135 करोड़ से ज्यादा की है। इतने बड़े मार्केट को कोई यूं ही नहीं छोड़ देना चाहेगा। पेप्सिको भी नहीं। लेकिन, जिस तरीके से भारत में सेवदेशी कंपनियां साफ्टड्रिंक के बिजनेस में आ रही हैं, उससे पेप्सिको को झटका लगना स्वाभाविक है। खास कर तब, जब भारत दुनिया के टाप 5 बाजारों में से एक हो।
कम हो रहे हैं ग्राहक
मोटे तौर पर आप मान सकते हैं कि 2003 में भारत में प्रति व्यक्ति साफ्टड्रिंक की खपत 6 बोतल की थी। इनमें भी 4 बोतलें पेप्सिको की होती थीं। बदलते वक्त के साथ चीजें तेजी से बदल गईं हैं। 2021 के आंकड़े के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति खर्च तो 6 बोतलों का ही है पर इसमें पेप्सिको का शेयर मात्र डेढ़ बोतल का रह गया। साढ़े बोतलों की शेयरिंग स्थानीय कंपनियों ने कर ली हैं।
Pepsico के प्रोडक्ट
पेपिस्को मूलतः पेप्सी वनीला, डाइड पेप्सी, पेप्सी लाइम, पेप्सी के साथ कैफीन फ्री, क्रिस्टल पेप्सी, पेप्सी नेक्सट, पेप्सी टेविस्ट, पेप्सी कोला, पेप्सी वाइल्ड चेरी, पेप्सी जीरो शुगर, माउंटेन ड्यू, 7 अप, लेज पोटैटो चिप्स, लिप्टन चाय, ट्रापिकाना बेवरेज, टारटिला चिप्स, चीतोज, एक्वाफिना पानी, मिरिंडा, पेप्सी मिक्स, रफेल्स पोटैटो चिप्स, वाकर चिप्स, कार्न चिप्स आदि बनाती है।
कंपनी के बारे में
इस कंपनी की शुरुआत अमरीका में हुई। 1893 में। पेप्सी बनाने का मूल कार्य पेप्सिको कंपनी करती है। इसका मुख्यालय न्यूयार्क में है। मोटे तौर पर माना जाता है कि पूरी दुनिया में इसके 3 लाख से भी ज्यादा कर्मचारी हैं। 2021 तक कंपनी का रेवेन्यु 78.37 बिलियन अमेरिकी डालर था।
एक बात और समझ लें। पेप्सी कंपनी का मालिक पेप्सिको कंपनी है और पेप्सिको कंपनी के संस्थापक का नाम था कैलेब डेविस ब्राधम। उन्हें ही साफ्टड्रिंक का आविष्कारक भी माना जाता है। फिलहाल पेप्सिको कंपनी के चेयरमैन और सीईओ Ramon Laguarta हैं। वही कंपनी के सारे काम-काज देखते हैं। उन्हें असिस्ट करने के लिए दर्जनों लोग हैं। वह इस पद पर 2018 से अब तक बरकरार हैं।
Coca Cola से मुकाबला
पेप्सी को कड़ी टक्कर दे रहा है कोक। मोटे तौर पर पहले जिस बाजार में पेप्सी के 10 बोतल और कोक के पांच बोतल बिकते थे, अब कोक के 6 और पेप्सी के 4 बोतल ही रह गए हैं। यह जो चेंज आया है, यह पैन इंडिया है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोक कंपनी अपने डिस्ट्रीब्यूशन चैनल को दुरुस्त कर ले तो फिर जो आंकड़ा आएगा, वह लोगों को हतप्रभ कर देगा। खास कर भारत के बादार में जिस तरीके से कोक का प्रचलन बढ़ा है, वह पेप्सी के लिए गंभीर चिंता का विषय है। कोक अपने डिस्ट्रीब्यूशन को फिलहाल गांवों में लेकर बहुत संजीदा नहीं है। उसका पूरा फोकस शहरों में ही है। गांवों में पेप्सी आराम से उपलब्ध है। वह पहले से है भी और डिस्ट्रीब्यूशन पर उसने काम भी किया है। इसके बावजूद, रेट और टेस्ट में कोक का जलवा लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले भारत की स्वदेशी कंपनियां तो उसे टक्कर दे ही रही थीं, अब कोक भी देने लगी है।
वो लोग, जो Pepsi के शौकीन हैं
दुनिया में तमाम लोग ऐसे हैं जो पेप्सी के मुरीद हैं। इनमें जस्टिन बीवर, पवन सिंह, अलीशा चिनाय, अनिल शर्मा, मीका सिंह, आंद्रे आगासी आदि प्रमुख हैं।
कुल मिलाकर 100 साल से ज्यादा की हो चुकी इस कंपनी ने अमेरिका की पहचान दुनिया भर के देशों में करा दी है। भारत के बाजार में कंपनी की हिस्सेदारी ठीक है लेकिन कोक उसे बहुत तेजी के साथ चुनौती दे रहा है। आने वाले दिनों में अगर इस कंपनी को भारत समेत दुनिया के बाजार में अपना डंका बजवाना है तो उसे साफ्टड्रिंक के टेस्ट में जरूरी बदलाव करने होंगे, डिस्ट्रीब्यूशन चेन को सही करना होगा और अब किसी विवाद में पड़ने की कोई जरूरत नहीं। यह विवादों में पड़ने का ही नतीजा है कि कंपनी को आज जहां होना चाहिए था, वहां नहीं है।
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