किसी व्यापार को चलाने के लिए तीन महत्वपूर्ण व्यापारिक कड़ियां होतीं हैं। इन तीनों महत्वपूर्ण कड़ियों के आपसी सामंजस्य के बाद ही कोई चीज ग्राहक तक पहुंच पाती है। इसलिये यह जरूरी है कि इन तीनों व्यापारिक कड़ियों के बीच अच्छा तालमेल होना चाहिये। तभी वो व्यापार अच्छी तरह ये चलता है तथा अधिक मुनाफा कमाता है। व्यापार की ये तीनों महत्वपूर्ण कड़ियां आज ही पैदा नहीं हुईं हैं बल्कि जब से व्यापार शुरू हुआ है तब से ये तीनों कड़ियां विभिन्न स्वरूपों में मौजूद हैं। पहले भले ही इन्हें किसी अन्य नाम से जाना जाता हो, आज किसी अन्य नाम से जाना जाता है।
पहले आढ़ती ही होलसेलर्स होते थे
पुराने जमाने में जब खेती से ही व्यापार होता था तो उस समय शहरों की बड़ी-बड़ी मंडियों में आढ़ती हुआ करते थे। जो किसानों या बाजार में माल बेचने वाले से सारा माल ले लेते थे। वो माल फिर शहर की बाजारों व गलियों में दुकान खोले बैठे दुकानदारों को अपना माल बेचते थे। फिर ये छोटी बाजार व गलियों के दुकानदार अपना माल सीधे ग्राहकों को बेचते थे।
क्या रिश्ता है होलसेलर्स और रिटेलर्स का?
पूरी दुनिया में किसी भी बिजनेस प्रोडक्ट को ग्राहक तक पहुंचाने का एक चेन सिस्टम की मजबूत जोड़ वाली कड़ी हैं होलसेलर्स और रिटेलर्स। ये दोनों कड़ियां किसी भी उद्योग के चलाने में अहम भूमिका निभातीं हैं। इन दोनों के बिना किसी तरह के बिजनेस के चलने की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। हालांकि इस बीच तेजी से चल रहे ऑनलाइन बिजनेस से होलसेलर्स और रिटेलर्स के बिजनेस पर खतरा मंडराने लगा था लेकिन लाख ऑनलाइन बिजनेस होने के बावजूद होलसेलर्स और रिटेलर्स की जरूरत आज भी महसूस की जा रही है। इन दोनों के बीच बहुत ही अच्छा तालमेल का रिश्ता होता है। होलसेलर्स जहां निर्माता के माल को बेच कर उनका व्यापार चलाते हैं। वहीं रिटेलर्स को रोजगार देते हैं। दूसरी ओर रिटेलर्स भी होलसेल का माल खरीदकर उन्हें रोजगार देते हैं और ग्राहकों को माल बेच कर मुनाफा कमा कर स्वयं रोजगार हासिल करते हैं। साथ ही ग्राहकों को उनकी मनमानी सुविधायें देते हैं।
भारत में क्या है होलसेल व रिटेलर्स इंडस्ट्री का भविष्य?
हालांकि 2020 का वर्ष भारत के रिटेलर्स और होलसेल इंडस्ट्री के लिए काफी खराब बीता है। इस दौरान कोविड-19 की महामारी के कारण होलसेलर्स और रिटेलर्स का काम ठप पड़ गया था। कोविड-19 को नियंत्रित करने के सरकारी उपायों यानी लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेंसिंग के कारण उपभोक्ताओं ने फिजिकली सामान लेना ही छोड़ दिया था। इससे रिटेल और होलसेल इंडस्ट्री के बिजनेस में 7 प्रतिशत की बहुत भारी गिरावट आयी थी। इस दौरान ऑनलाइन बिजनेस करने वालों की चांदी हो गयी थी। उसके बाद अनलॉक होने पर तस्वीर फिर से बदलनी शुरू हो गयी है। अब फिर से रिटेल और होलसेल का बिजनेस पटरी पर लौटने लगा है। वैसे इस बिजनेस के बारे में एक्सपर्ट की बहुत अच्छी राय है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले चार वर्षों यानी 2025 तक रिटेल और होलसेल का बिजनेस 11 प्रतिशत तक उछाल मार सकता है।
क्या कहता है ये अनुमान?
पूरे विश्व के व्यापारिक जगत में होलसेलर्स और रिटेलर्स की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। एक अन्य अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक होलसेलर्स और रिटेलर्स की इंडस्ट्री विश्व की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं। एक व्यापारिक शोध के अनुसार सन् 2023 तक होलसेलर्स और रिटेलर्स इंडस्ट्री का बिजनेस लगभग 82 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इस तरह से यह समझा जा सकता है कि होलसेलर्स और रिटेलर्स की इंडस्ट्री पूरी दुनिया के व्यापार के लिये कितनी अधिक महत्वपूर्ण हैं।
कौन हैं तीन प्रमुख व्यापारिक कड़ियां?
आज जमाना बदल गया है। आम इंसान की जरूरत की तमाम चीजें बनने लगीं हैं। इसके लिए तमाम फैक्ट्री, कारखाने चल रहे हैं। ये अपनी चीजों को तैयार करते हैं, फिर उन्हें बेचने की तैयारी करते हैं। व्यापार में तीन प्रमुख कड़ियों के रूप में भूमिका निभाने वाले निर्माता, थोक विक्रेता और खुदरा या फुटकर विक्रेता होते हैं। इन तीनों के माध्यम से वितरण व्यवस्था सुचारु रूप से चलती है और उसी के मुताबिक ग्राहकों तक प्रोडक्ट पहुंच पाता है।
मैन्यूफैक्चरर या निर्माता
मैन्यूफैक्चरर यानी निर्माता को व्यापार की नींव कहा जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि यही वो शख्स है जो अपनी फैक्ट्री से किसी चीज को तैयार करता है और उसे बेचता है।
- मैन्यूफैक्चरर वह व्यक्ति होता है जो तमाम तरह की मशीनों और काम करने वाले कर्मचारियों की मदद से कच्चा माल से उपभोक्ताओं के इस्तेमाल के लिए आवश्यक वस्तुएं बनाता है।
- मैन्यूफैक्चरर उपभोक्ताओं की मांग या आवश्यकता को देखते हए उनकी जरूरत का सामान अपनी फैक्ट्री व कारखाने में तैयार करवाता है।
- उपभोक्ता वस्तुओं को भारी मात्रा में तैयार करवाने के बाद मैन्यूफैक्चरर अपने तैयार माल को बेचकर मुनाफा कमाने की रणनीति बनाता है।
- मैन्यूफैक्चरर इतनी बड़ी मात्रा में माल बनवाता है जिसे वह एक-एक व्यक्ति को नहीं बेच सकता। हालांकि एक-एक माल बेचने में सबसे अधिक फायदा होता है लेकिन वह जितनी देर में एक-एक माल बेचने की सोचेगा उतनी देर में कई गुना माल बनाकर उससे कई गुना अधिक मुनाफा कमा सकता है।
- मैन्यूफैक्चरर अपनी इसी रणनीति के तहत वह विभिन्न शहरों में अपने माल को थोक में बेचने के लिए थोक विक्रेताओं को तलाशता है, जिसे होलसेलर्स कहते हैं।
होलसेल उद्योग क्या होता है?
रिटेलर्स को थोक रेट पर प्रोडक्ट बेचने वाले समूह को होलसेल उद्योग कहते हैं। रिटेलर्स को होलसेल में माल बेचने का काम होलसेलर्स यानी थोक व्यापारी करता है। यह होलसेलर्स आर्गनाइजेशन (संगठन), एकल व्यापारी (सोलो बिजनेसमैन) और साझेदारी (पार्टनरशिप) में भी हो सकते हैं। होलसेलर्स का सीधा संबंध कृषि, खनन, मैन्यूफैक्चरिंग, सूचना उद्योग से जुड़ा उद्योंगों व कल कारखानों से होता है। इन होलसेलर्स का मुख्य काम चीजों को थोक में खरीदना, उनको स्टोर करना और रिटेलर्स को बेचना। इसके साथ उन थोक व्यापारियों को अपने प्रोडक्ट को बेचना जो भारी मात्रा में अपने ग्राहकों को कई तरह की सेवाएं प्रदान करते हैं।
होलसेल इंडस्ट्री में वे होलसेल एजेंट या ब्रोकर भी शामिल होते हैं जो अपनी फीस या कमीशन पर चीजों को खरीदते, और बेचने की सारी व्यवस्थाएं कराते हैं। होलसेल इंस्डस्ट्री में बिजनेस टू बिजनेस इलेक्ट्रानिक मार्केट व प्लेटफार्म उपलब्ध कराने वाले तथा वो एजेंट भी शामिल हैं जो होलसेल व्यापार की सारी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। इस होलसेल उद्योग में एक खास बात यह है कि इस उद्योग में ऐसा एक भी व्यक्ति या कंपनी अथवा फर्म नहीं मिलेगी जो अपना माल स्वयं ही तैयार कराती हो।
होलसेलर्स के कार्य कितने महत्वपूर्ण होते हैं?
वैसे होलसेलर्स को तो इतना ही समझा जाता है कि वो मैन्यूफैक्चरर्स से माल लेकर रिटेलर्स को बेच देता है और उससे वो अपने हिस्से का मुनाफा कमा लेता है लेकिन बिजनेस में होलसेलर्स की बहुत बड़ी भूमिका होती है, वा चाहे जिस प्रोडक्ट को ब्रांड बना सकता है और वो चाहे तो जिस ब्रांड को डुबा सकता है।
दूसरे शब्दों में समझना चाहें तो इस प्रकार से समझ सकते हैं कि जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी से दीपक, कुल्हड़, सुराही, मटका आदि बनाकर उन्हें बाजार में बेचने काबिल बनाता है। उसी तरह से होलसेलर्स अपने दिमागी हुनर से किसी भी मैन्यूफैक्चरर के प्रोडक्ट को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकता है तो अर्श से फर्श तक भी पहुंचा सकता है।
यदि बिजनेस शुरू करने वाली पहली सीढ़ी होलसेलर्स को कहें तो कोई गलत बात नहीं होगी। इसका प्रमुख कारण यह है कि मैन्यूफैक्चरर्स ने अपना माल तैयार करके होलसेलर्स के हाथों बेच दिया है। उसके बाद होलसेलर्स की सारी टेंशन शुरू हो जाती है। वह यह प्रयास करना शुरू कर देता है कि जो भारी पूंजी लगाकर मैन्यूफैक्चरर्स से माल थोक में खरीद लिया है, किस तरह से बिजनेस करे कि उसका लगा पैसा भी वापस हो जाये तथा उस पर उसे मुनाफा भी मिल सके।
इसलिये होलसेलर्स शहर से दूर सस्ती जगह पर अपना गोदाम बनाता है, जहां पर माल लोड-अनलोड हो सके। इसके अलावा मैन्यूफैक्चरर्स से लिये गये माल पर कोई पैसा नहीं लगाता है। वो मैन्यूफैचरर्स से जैसा माल लेता है वैसा ही माल रिटेलर्स को सप्लाई करता है। न तो उसे सजाता संवारता है और न ही उसका कोई डेमो करता है।
होलसेलर्स सबसे अधिक पैसा अपने पास मौजूद प्रोडक्ट की मार्केटिंग पर खर्च करता है। डिमांड के अनुरूप रिटेलर्स को अपना प्रोडक्ट देता है। साथ ही उसको इस बात का आश्वासन देता है कि यह माल आसानी से बिकेगा और कोई भी परेशानी होगी तो हल करने के लिए रिटेलर्स की हर तरह से मदद करने को भी तैयार रहता है।
यह बात तो हो गई लोकल प्रोडक्ट वाले होलसेलर्स की। जबकि ब्रांडेड कंपनी के होलसेलर्स के पास तो फुर्सत ही नही होती है। ब्रांडेड प्रोडक्ट के लिए होलसेलर्स को अच्छी खासी रकम कंपनी को चुकता करनी होती है। उसके बाद उसे लिमिटेड मुनाफे पर रिटेलर्स को माल बेचने के लिये मिलता है। इस तरह के बिजनेस में होलसेलर्स की टेंशन कम होती है क्योंकि प्रोडक्ट की मार्केटिग कंपनी करवाती है। इससे ब्रांड के नाम पर रिटेलर्स भी आसानी से मिल जाते हैं।
ब्रांडेड कंपनी के होलसेलर्स की दो तरह की भूमिका होती है। एक तो यह होता है कि अधिकतर रिटेलर्स उसके पास आकर अपनी जरूरत का माल ले जाते हैं। दूसरा यह कि उसके एजेंट मार्केट में रिटेलर्स के पास जाकर ऑर्डर लिख कर अपनी फर्म के गोदाम में बैठे सप्लाई करने वाली टीम को सूचित कर देते हैं जहां से वह दुकानदारों के आर्डर के मुताबिक माल की सप्लाई करते हैं।
अधिकांश होलसेलर्स सीधे ग्राहकों को फुटकर माल बेचने से कतराते हैं, उसका कारण उनका हिसाब-किताब गड़बड़ा जाता है। यदि कोई ग्राहक होलसेलर्स पर दबाव डालकर कोई भी प्रोडक्ट खरीदना चाहता है तो वह उस ग्राहक को एक निश्चित क्वांटिटी में माल खरीदने की शर्त रखते हैं। ग्राहक को अच्छी तरह से मालूम होता है कि रिटेलर्स से काफी कम रेट पर होलसेलर्स से वही प्रोडक्ट मिल सकता है। इसलिये वो होलसेलर्स के पास जाने की कोशिश करता है।
क्या होता है रिटेलर्स उद्योग?
जिस तरह से होलसेलर्स उद्योग व्यापार जगत की जान होता है। उसी तरह रिटेलर्स उद्योग भी व्यापार की प्रमुख कड़ी होते हैं। इनके बिना बिजनेस की कल्पना तक नहीं की जा सकती है, ये वही असली इकाई है जो मैन्यूफैक्चरर के प्रोडक्ट को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाती है।
रिटेल उद्योग में वो लोग शामिल होते हैं जो अपना आर्गनाइजेशन, एकल कंपनी या पार्टनरशिप में शॉप या शोरूम, मिनी मार्ट, शॉपिंग मॉल में रिटेल स्टोर खोलकर ग्राहकों तक कंपनियों के प्रोडक्ट बेचकर मुनाफा कमाते हैं।
ये रिटेलर्स ग्राहकों को उनकी सुविधानुसार वाली जगह पर उनके द्वारा मांगी जाने वाली क्वांटिटी पर आसानी से प्रोडक्ट उपलब्ध कराते हैं।
ये रिटेलर्स होलसेलर्स से थोक में माल खरीद कर उन्हें अपनी दुकान में स्टोर करके, उनका डिस्प्ले करके ग्राहकों को आकर्षित करते हैं और उन्हें माल बेचकर मुनाफा कमाते हैं। ये रिटेलर्स होलसेलर्स से खरीदे हुए सामान को ऑनलाइन भी बेचते हैं और कभी कभी तो होम डिलीवरी भी करते हैं।
रिटेलर्स माल बेचने के लिए क्या-क्या करता है?
होलसेलर्स तो मैन्यूफैक्चरर्स से प्रोडक्ट बहुत भारी मात्रा में सामान खरीद कर शहर से बाहर सस्ती सी जगह पर गोदाम बनाकर अपना माल स्टोर कर लेता है। उस माल को लोड-अनलोड करने के अलावा उस पर एक पैसा भी खर्च नहीं करता है। लेकिन रिटेलर्स के लिए ऐसा नहीं है उसे अपना माल बेचने के लिए कई तरह से पैसा लगाना पड़ता है और कई तरह के प्रयास करने होते हैं तब कहीं जाकर उसका माल बिक पाता है, आइये जानते हैं कि रिटेलर्स कौन-कौन से काम करके अपने प्रोडक्ट को बेचने की कोशिश करता है।
- सबसे पहले रिटेलर्स प्राइम लोकेशन वाली जगह पर एक महंगी से दुकान लेता है।
- प्राइम लोकेशन वाली इस दुकान में वो इंटीरियर डेकोरेटिंग पर काफी पैसा खर्च करता है
- इसके अलावा अपनी दुकान में प्रोडक्ट को करीने सजाने का काम करता है
- दुकान को सजाने के लिए वो विशेषज्ञों की सलाह भी लेता है
- दुकान को मेनटेन रखने के लिए कर्मचारियों को सैलरी पर रखता है।
- ग्राहकों को शोरूम या मिनी मार्ट में बुलाने के लिए तरह-तरह के आकर्षक स्कीमें निकालता है
- ग्रोसरी की दुकानों और कपड़े की दुकानों के सामने आपने कई पुतले आदि देखे होंगे, वो बिजनेस बढ़ाने और ग्राहक को आकर्षित करने का ही एक तरीका है
- ब्रांडेड माल के साथ नान ब्रांडेड माल को भी बेचने के लिए ग्राहकों से अपनी ओर से एप्रोच करता है
- लोकल ब्रांड के माल को बेचने के लिए उसे अलग से प्रयास करता है
- त्योहारों व सीजन पर अपने शो रूम या दुकानों पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर ग्राहकों को आकर्षित करता है
- ऑफलाइन शोरूम के साथ ऑनलाइन बिजनेस करके ग्राहकों को उनकी जरूरत का सामान उनके घर पहुंचवाता है
रिटेलर्स के रेट क्यों अधिक होते हैं?
अक्सर ग्राहकों के बीच इस तरह की चर्चा होती है कि होलसेल में तो ये माल काफी सस्ता मिलता है लेकिन इस शोरूम पर वो माल इतना अधिक महंगा क्यों मिलता है। इसके कई कारण हैं, इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं।
- कभी आपने होलसेलर्स का गोदाम देखा है, यदि नहीं तो एक बार देख आओ आपको मालूम हो जायेगा कि रिटेलर्स के शोरूम और होलसेलर्स के गोदाम में क्या अंतर होता है।
- रिटेलर्स अपना जो शोरूम के लिए Ñशॉप किराये पर लेता है, उसका और होलसेलर्स के गोदाम के किराये से जमीन आसमान का अंतर होता है।
- शॉप का इंटीरियर डेकोरेशन कराने में भी काफी पैसा खर्च होता है।
- शॉप में बिजली का भी खर्चा होता है।
- शॉप को अट्रैक्टिव बनाने के लिए उसका बाहरी डेकोरेशन भी करना पड़ता है
- रिटेलर्स को शोरूम में स्टैडर्ण्ड के मुताबिक एयरकंडीशन आदि भी लगवाना होता है
- रिटेलर्स के शोरूम में ग्राहकों को अच्छी तरह की सर्विस देने के लिए काम करने वाले कर्मचारी भी रखने होते हैं, उन्हें सैलरी भी देनी होती है।
- रिटेलर्स के शोरूम काफी महंगे होते हैं और उनमें लाखों का माल भरा होता है। उसके लिए इंश्योरेंस कराना होता है। सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं। इसके बावजूद सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी गार्ड तैनात करने होते हैं, उन्हें भी सैलरी देनी होती है।
ये जो सारे तामझाम रिटेलर्स को ग्राहकों को अपने शोरूम में करवाने होते हैं। उनके मेंटीनेंस पर काफी पैसा खर्च होता है। वो पैसा व्यापारी कहां से लायेगा। वो सारे खर्चे तो उस प्रोडक्ट की बिक्री में शामिल होते हें। इसलिये वे प्रोडक्ट आपको महंगे पड़ते हैं। ये बात रिटेलर्स भी अच्छी तरह से जानते हैं और वे अपने ग्राहकों पर पूरा बोझा नहीं डालना चाहते हैं। इसलिये कुछ ऐसे प्रोडक्ट रखते हैं जो मार्केट रेट बेचने पर अधिक मुनाफा देते हैं। उनसे यह रिकवरी करते हैं। तभी तो आपको ब्रांडेड प्रोडक्ट उसी फिक्स रेट पर देते हैं। कुछ लोकल प्रोडक्ट अवश्य महंगे मिलते हैं। इसी वजह से आजकल स्मार्ट ग्राहक ऑनलाइन ऑर्डर देकर वो सामान मंगाने की कोशिश करते हैं जो ऑफलाइन शोरूम में महंगे मिलते हैं। शोरूम वालों ने उसका विकल्प यह निकाला है कि वो भी स्वयं ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन बिजनेस भी करते हैं।
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